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BP Mandal: जानें कौन हैं बीपी मंडल, जिन्होंने पिछड़ों को आरक्षण दिलाने में निभाई अहम भूमिका
BP Mandal Kon Hai: आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि पिछड़ों को आरक्षण का मुद्दा कहां से आया और कौन थे मंडल, जिनके मंडल कमीशन को पिछड़ों को आरक्षण देने का सेहरा बांधा जाता है।
BP Mandal Kon Hai: पिछड़ा वर्ग के आरक्षण (Aarakshan) का मुद्दा एक बार फिर जोरशोर से चर्चा में है। इस बार इसे भाजपा नीत केंद्र सरकार ने गररमाया है। इसके पीछे वोट की राजनीति कहें या कुछ और लेकिन केंद्र सरकार (Central Government) की इस गुगली से विपक्ष की राजनीति जरूर धराशायी हो गई है। वजह थी राज्यों को पिछड़ों की सूची तैयार करने के अधिकार की वापसी का फैसला। और ये फैसला भी ऐसे समय लिया गया जबकि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) अभी बीती 5 मई को ही कह चुका था कि राज्यों को पिछड़ों की सूची बनाने का अधिकार नहीं है।
विपक्ष के पास इसके समर्थन के अलावा कोई विकल्प नहीं था। भाजपा की उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार (Yogi Adityanath Government) भी पिछड़ों की सूची तैयार करने में जोरशोर से जुट गई है। खैर हम आपको बताने जा रहे हैं कि पिछड़ों को आरक्षण का मुद्दा कहां से आया और कौन थे मंडल, जिनके मंडल कमीशन को पिछड़ों को आरक्षण देने का सेहरा बांधा जाता है।
संविधान लागू होने के बाद से उठने लगी थी आरक्षण की मांग
गौरतलब है कि पिछड़ों को आरक्षण की बात संविधान लागू होने के बाद से ही उठने लगी थी, 1952-53 में जब इस मांग ने जोर पकड़ा तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) ने एक खांटी ब्राह्मण काका कालेलकर (Kaka Kalelkar) को पिछड़ों को आरक्षण देने के लिए सिफारिशें तैयार करने का काम सौंपा। हालांकि कांग्रेस कभी भी पिछड़ों को आरक्षण देने के लिए मन से तैयार नहीं थी।
काका कालेलकर आयोग की डिवाइडेड सिफारिशें आयीं लेकिन उसकी एक बड़ी कमी थी कि उसमें सिर्फ हिन्दुओं में पिछड़ों की पहचान की गई। नेहरू के दबाव में कालेलकर ने भी आयोग की सिफारिशों के खिलाफ राय दे दी और इस आयोग की बात वहीं दफन हो गई।
बीपी मंडल को सौंपी गई बड़ी जिम्मेदारी
पिछड़ों को आरक्षण की मांग उठती रही। नेहरू और उनके बाद इंदिरा गांधी ने भी इस बारे में सांस नहीं ली। 1977 में जब जनता पार्टी सरकार आयी तो एक बार फिर से पिछड़ों को आरक्षण की मांग उठी। खास बात यह थी कि इंदिरा विरोधी लहर में पिछड़े वर्गों के तमाम नेता भी चुनाव जीतकर संसद में आए थे इसलिए बात सुनी गई। लेकिन मोरारजी देसाई ने कालेलकर आयोग की सिफारिशें पुरानी हो गई हैं कहकर नया आयोग बनाने की बात कही। और उस समय इस काम की जिम्मेदारी के लिए जिस नाम को चुना गया वह थे बीपी मंडल (BP Mandal)।
बीपी मंडल बिहार के मघेपुरा से पंद्रह किलोमीटर दूर मुरहो गांव के जमींदार घराने (BP Mandal Kis Jati Ke The) से थे। इनका जन्म (BP Mandal Birthday) बनारस में 25 अगस्त 1918 को हुआ था। इनका गांव बहुत ही पिछड़ा था। खासकर इस गांव में मुसहर जाति (Musahar Dalit community) के लोग रहा करते थे। हालांकि बीपी मंडल यादव बिरादरी से ताल्लुक रखते थे। वह एक बार एक माह के लिए बिहार के मुख्यमंत्री (Bihar Chief Minister) भी रह चुके थे।
खैर बीपी मंडल ने पूरी ईमानदारी से अपना काम शुरू किया। लेकिन इस बीच मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई। इंदिरा गांधी की वापसी हो गयी। इंदिरा गांधी ने इन्हें रोका नहीं अपना काम करने दिया। लेकिन इनकी सिफारिशों पर उनका फिर पुराना रवैया सामने आया। इंदिरा गांधी के न रहने पर राजीव गांधी सत्ता में आए लेकिन उन्होंने भी इन सिफारिशों को खोलकर नहीं पढ़ा।
नौकरियों में लागू किया गया आरक्षण
काल चक्र चलते हुए वीपी सिंह के युग में आ गया। विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री हुए भाजपा की उन दिनों राम मंदिर की राजनीति परवान चढ़ रही थी, ऐसे में हिन्दुओं को विभाजित करने के इरादे से उन्होंने मंडल आयोग की सिफारिशों को ठंडे बस्ते से निकाला और एक सिफारिश नौकरियों में पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण की बात को लागू कर दिया। इस पर कोहराम मचना था, मचा। आत्मदाह और देश व्यापी प्रदर्शनों की बाढ़ आ गई लेकिन तब तक पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने की सिफारिश करने वाला यह नायक दुनिया से जा चुका था।
इस घटनाक्रम के लंबे समय बाद उनके बेटे (BP Mandal Son) मनींद्र कुमार मंडल 2005 में दो बार जनता दल यू से विधायक बने और अब उनके पोते निखिल मंडल अपने दादा और पिता की सियासत की विरासत संभालते हुए नीतिश कुमार के साथ जनता दल यू के प्रवक्ता के रूप में राजनीति कर रहे हैं।
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