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मिलिए 'बुंदेलखंड के मांझी' से: अकेले खोद बना डाला 10 बीघे का तालाब, वजह हैरान कर देगी
Ajab Gajab: संत कृष्णानंद ने अकेले ही अपनी मेहनत से फावड़े की बदौलत 10 बीघे खेत को 3 साल में खोदकर तालाब बना दिया।
Ajab Gajab: 'लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती' आप ने बखूबी अक्सर यह पंक्तियां सुनी होंगी लेकिन वास्तविकता में बेहद चंद लोग ही ऐसे हैं जो इन पंक्तियों को साकार करते हैं। आज के इस अजग-गजब कॉलम में हम बात कर रहे हैं बुन्देलखण्ड के हमीरपुर जिले (Hamirpur) में स्थित पचखुरा बुजुर्ग गांव (Pachkhura Buzurg) के रहने वाले संत कृष्णानंद (Sant Krishnanad) की, जिन्होंने अकेले ही अपनी मेहनत से फावड़े की बदौलत 10 बीघे खेत को 3 साल में खोदकर तालाब (Pond) बना दिया और गांव में मौजूद पानी की समस्या से लोगों को छुटकारा दिलवाया।
आपको बता दें कि शुरुआत में जब कृष्णानंद ने लोगों को पानी की समस्या से बचने के लिए अपनी इस योजना के बारे में बताया तो उनका खूब मजाक बनाया गया। लोगों ने उन्हें सनकी और पागल जैसे उपनामों से पुकारा लेकिन कृष्णानंद ने बगैर किसी की परवाह किए अकेले ही इस काम को अंजाम पर पहुंचाने की ठान ली और कर भी दिखाया।
'बुंदेलखंड के मांझी' नाम से मशहूर
संत कृष्णानंद के इस काम के चलते लोगों द्वारा उन्हें 'बुन्देलखण्ड के मांझी' (Manjhi of Bundelkhand) नाम से जाना जाने लगा।
दरअसल मांझी यानी दशरथ मांझी जो कि बिहार राज्य के गया जिला स्थित गहलौर गांव के रहने वाले थे और वर्ष 1959 में जब उनकी पत्नी की मृत्यु पहाड़ से गिरने के कारण लगी चोट के चलते हुई और पहाड़ के ही कारण अस्पताल ले जाने को लेकर कोई बेहतर सड़क नहीं थी। इसी के चलते दशरथ मांझी ने बड़े पहाड़ को काटकर गहरा रास्ता बनाने का फैसला किया और केवल एक हथौड़ा और छेनी का प्रयोग कर दशरथ मांझी ने 22 साल में अत्री और वज़ीरगंज ब्लॉक के बीच की यात्रा को 55 किमी से घटाकर 15 किमी कर दिया।
पहले कभी इसी जगह पर था तालाब
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, कृष्णानंद ने जिस जगह पर 10 बीघा जमीन को 3 साल में खोदकर तालाब बनाया उस जगह पर पहले कभी गांव में तालाब हुआ करता था। समय के साथ-साथ इस ओर विशेष ध्यान ना देने के चलते यह तालाब सूख गया और खेत में तब्दील हो गया।
आपको बता दें कि इस तालाब का नाम कलारन दाई (Kalaran Dai Pond) है और इसी तालाब के पानी के चलते ही पचखुरा बुजुर्ग गांव में खेती और अन्य कामों के लिए मदद मिलती थी। तालाब सूखने के बाद भी गांववालों और प्रशासन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया जिसके चलते लोगों को धीरे-धीरे सूखे की समस्या सताने लगी।
हरिद्वार से वापस आकर कृष्णानंद ने शुरू की तालाब की खुदाई
कृष्णानंद 1982 में सन्यास लेकर हरिद्वार चले गए थे जिसके बाद 2014 में गांव वापस आने के बाद 2015 से कृष्णानंद ने फावड़े की मदद से तालाब की खुदाई शुरू की और 3 साल बाद 2018 में 10 बीघे खेत को खोदकर तालाब बना दिया। कृष्णानंद को उनके इस कार्य से सरकार से सम्मानित भी किया जा चुका है।
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