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किल्लत के बीच वैक्सीन की बर्बादी, केंद्र और राज्य भिड़े
Vaccine Wastage : केंद्र सरकार ने बर्बादी का राज्यवार आंकड़ा दिया है लेकिन राज्य इसे गलत बता रहे हैं।
Vaccine Wastage : कोरोना वायरस (Corona Virus) बहुत बड़ा खतरा बना हुआ है और फिर कोई लहर आ सकती है लेकिन भारत में वैक्सीनेशन (Vaccination) का काम बहुत पिछड़ा हुआ है। वैक्सीन की किल्लत के चलते अब विदेशी वैक्सीन निर्माताओं को बिना ट्रायल के अपनी वैक्सीन भारत में लांच करने की इजाजत भी दे दी गयी है। लेकिन सबसे हैरानी की बात है कि किल्लत के बीच देश में वैक्सीन की बर्बादी भी खूब हो रही है। केंद्र सरकार ने कुछ राज्यों को चिन्हित किया है जहां सबसे ज्यादा बर्बादी हो रही है लेकिन इन्हीं राज्यों ने केंद्र पर गलत आंकड़े देने और राजनीति करने का आरोप लगाया है।
दरअसल केंद्र सरकार ने बर्बादी का राज्यवार आंकड़ा दिया है लेकिन राज्य इसे गलत बता रहे हैं। राज्यों का कहना है कि आंकड़े गलत हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वैक्सीन बर्बादी का नेशनल औसत 6.3 फीसदी है। राज्यों से कहा गया है कि वे बर्बादी को 1 फीसदी से नीचे रखें लेकिन झारखण्ड जैसे राज्य में वैक्सीन की बर्बादी 37.3 फीसदी तक है, जबकि छत्तीसगढ़ में 30.2 फीसदी और तमिलनाडु में 15.5 फीसदी तक बर्बादी है। वैक्सीन की बर्बादी जम्मू कश्मीर में 10.8 फीसदी, मध्य प्रदेश में 10.7 फीसदी है।
मध्य प्रदेश, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, जम्मू कश्मीर और तमिलनाडु ने तो केंद्र के आंकड़े पर ही सवाल उठा दिए हैं। इन राज्यों ने कहा है कि या तो डेटा में कोई गड़बड़ी है या केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ सही समन्वय नहीं है। मध्य प्रदेश ने कहा है कि राज्य के अनुमान के अनुसार बर्बादी 1.3 फीसदी है। छत्तीसगढ़ और झारखण्ड सरकार ने भी कहा है कि केंद्र गलत डेटा दिखा रहा है। छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने तो केंद्र की नीयत पर ही सवाल उठा दिया है उन्होंने कहा है कि केंद्र राजनीति कर रहा है। केंद्र डेटा अपडेट नहीं कर रहा है और इल्जाम राज्यों पर लगा रहा है।
क्यों होती है बर्बादी
वैक्सीन की बर्बादी सभी टीकाकरण में और पूरी दुनिया में होती है लेकिन उचित प्लानिंग और सावधानी से बर्बादी को कम जरूर किया जा सकता है। इसी साल जनवरी में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि केंद्र द्वारा खरीदी गयी वैक्सीनों में से दस फीसदी बेकार जा सकती है।
वैक्सीन की बर्बादी ट्रांसपोर्टेशन, स्टोरेज और वैक्सीनेशन सेंटर में कहीं भी हो सकती है। कोरोना की वैक्सीन कई डोज़ वाले वायल में सप्लाई की जाती हैं। हर वायल में वैक्सीन की दस डोज़ होती हैं। वैक्सीन की वायल खुलने के चार घंटे के भीतर इस्तेमाल कर ली जानी चाहिए। इस टाइम लिमिट के भीतर अगर दस लोग से कम आये तो बची हुई डोज़ बेकार चली जाती है। ये मसला उन जगहों पर ज्यादा सामने आता है जहाँ लोगों में वैक्सीन लगवाने के प्रति उत्साह नहीं है या जहां जनसंख्या कम है।
खुले वायल और बंद वायल में अलग अलग वजहों से हो सकती है। बंद वायल की बर्बादी इस कारण से हो सकती है कि वह एक्सपायरी डेट के बाद अपने गंतव्य स्थान पर पहुंची हो। या फिर बंद वायल कोल्ड चेन में न रखी गई हो और सामान्य तापमान पर उसे स्टोर किया गया हो या फिर ट्रांसपोर्टेशन में टूटफूट हुई हो। खुले वायल की बरबादी का कारण उसका दूषित जाना, गलत तरीके से वायल खोला जाना, एक वायल से जितने लोगों को वैक्सीन लगनी है उससे कम लोगों को लगना होता है। देखा गया है कि बंद और खुले वायल दोनों की सर्वाधिक बर्बादी ग्रामीण क्षेत्रों और दूरदराज के इलाकों में देखी गयी है।
वैक्सीन की बर्बादी रोकने का एक तरीका एक एक डोज़ की पहले से भरी सिरिंज है। इसमें हर सिरिंज में वैक्सीन की डोज़ पहले से भरी होती है। इससे बर्बादी तो बहुत कम की जा सकती है लेकिन ये काफी महँगा तरीका है।