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Chief Justice NV Ramana : मानवाधिकारों का सबसे ज्यादा खतरा पुलिस स्टेशन में हो रहा, जानें वजह

Chief Justice NV Ramana : चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा पुलिस थानों में मानवाधिकार को लेकर सबसे ज्यादा खतरा बना हुआ है।

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Newstrack NetworkPublished By Shraddha
Published on: 9 Aug 2021 5:23 AM GMT (Updated on: 9 Aug 2021 5:49 AM GMT)
मानवधिकारों का सबसे ज्यादा खतरा पुलिस स्टेशन में हो रहा
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मानवधिकारों का सबसे ज्यादा खतरा पुलिस स्टेशन में हो रहा (फाइल फोटो - सोशल मीडिया)

Chief Justice NV Ramana : देश के पुलिस स्टेशनों (Police Stations) में मानवाधिकार (Human Rights) के नियमों पर संकट बना हुआ है। इस विषय पर चिंता व्यक्त करते हुए चीफ जस्टिस एनवी रमना (Chief Justice NV Ramana) ने कहा है कि पुलिस थानों में मानवाधिकार को लेकर सबसे ज्यादा खतरा बना हुआ है। विशेषाधिकार प्राप्त लोगों पर भी इस थर्ड डिग्री ट्रीटमेंट (Third Degree Treatment) से बख्शा नहीं जाता है।

चीफ जस्टिस एनवी रमना (Chief Justice NV Ramana) ने भारतीय राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा विजन एंड मिशन स्टेटमेंट और एनएएलएसए द्वारा विजन एंड मिशन स्टेटमेंट और एनएएलएसए के लिए मोबाइल ऐप (Mobile App) लॉन्च करने के लिए एक कार्यक्रम में सम्बोधित करते वक्त अपनी चिंता व्यक्त की।


देश के पुलिस स्टेशनों में मानवाधिकार पर संकट (कॉन्सेप्ट फोटो - सोशल मीडिया)


चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कार्यक्रम के दौरान कहा मानवाधिकारों (Human Rights) और गरिमा का सबसे बड़ा खतरा पुलिस स्टेशनों से है। पुलिस स्टेशन में हिरासत में यातना और अन्य पुलिस द्वारा अत्याचार की समस्याएं उत्पन्न हैं। जो आज भी हमारे समाज में व्याप्त है। यहां तक विशेषाधिकार प्राप्त लोगों पर भी इस थर्ड डिग्री ट्रीटमेंट (Third Degree Treatment) से बख्शा नहीं जाता है।


चीफ जस्टिस (Chief Justice) ने कहा पुलिस की ज्यादतियों को रोकने को लेकर एक नियम बनाना आवश्यक है। प्रत्येक पुलिस स्टेशनों में एक डिस्प्ले बोर्ड और आउटडोर होर्डिंग की स्थापना इस दिशा में एक बड़ा कदम बताया जा रहा है। उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा है कि अत्यधिक विशेषाधिकार प्राप्त लोगों और सबसे कमजोर लोगों के बीच न्याय के अंतर को पाटना बहुत जरुरी है।


उन्होंने कहा है कि 'एक संस्था के रूप में न्यायपालिका नागरिकों का विश्वास जीतना चाहती है। तो हमें हर किसी को आश्वस्त करना होगा कि हम उनके लिए मौजूद हैं। काफी लम्बे समय तक कमजोर आबादी इस न्याय प्रणाली से बाहर रही है। कोरोना महामारी के बावजूद हम अपनी कानूनी सहायता सेवाओं को सफलतापूर्वक जारी रखने में सक्षम हैं।'


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