21 साल की जुदाई के बाद मिले पति-पत्नी, CJI रमन्ना बने माध्यम

निचली अदालत ने 2002 में पति को आईपीसी की धारा 498ए (दहेज प्रताड़ना) के तहत दोषी ठहराया था और जुर्माना लगाने के अलावा एक साल की जेल की सजा सुनाई थी।

Akshita
Written By AkshitaPublished By Monika
Published on: 2 Aug 2021 7:54 AM GMT
Judge NV Ramanna helps couples reunite after 21 years
X

न्यायाधीश एन वी रमन्ना (फोटो :सोशल मीडिया ) 

दिल्ली के सर्वोच्च न्यायालय में एक मामला सामने आया । जिसकी अध्यक्षता न्यायाधीश एन वी रमन्ना कर रहे थे। शीर्ष अदालत आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ महिला की अपील पर सुनवाई कर रही थी, हालांकि उसके पति की सजा को बरकरार रखा गया था। निचली अदालत ने 2002 में पति को आईपीसी की धारा 498ए (दहेज प्रताड़ना) के तहत दोषी ठहराया था और जुर्माना लगाने के अलावा एक साल की जेल की सजा सुनाई थी।

आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के रहने वाले एक दंपति की शादी 1998 में हुई । पर यह शादी बहुत ज्यादा वक्त तक नही चल सकी और 2001 में ही दोनों ने अलग होने का फैसला लिया । हालांकि इस बीच दोनों को एक पुत्र प्राप्ति हुई। दोनों के अलग होने की वजह दहेज प्रताड़ना थी।

2001 में पत्नी ने अपने पति के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज कराया। पति के साथ पत्नी ने सास और ननद पर भी मुकदमा किया। सेशन कोर्ट ,फिर हाई कोर्ट और फिर अंत में सुप्रीम कोर्ट तक यह बात गयी। पति को एक साल की सजा हुई तथा अन्य आरोपियों को बरी कर दिया गया।

20 सालों से पति दे रहा पैसे

पिछले 20 सालों से पति अपनी पत्नी और बेटे को भरण पोषण का गुजारा भत्ता दे रहा था। पर पत्नी उसकी सजा और बढ़ाना चाहती थी । जिसके लिए उसने सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दायर की थी। जिसके खिलाफ पति ने भी कोर्ट के दरवाजे खटखटाये।

जब न्यायाधीश इस मामले की सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कर रहे थे तो उन्होंने पत्नी को समझाने की कोशिश की । पर पत्नी अंग्रेजी भाषा में चल रही इस सुनवाई में असहज महसूस कर रही थी और इस बात का अंदाज़ा न्यायाधीश को हो चुका था। इसीलिए वे अब तेलुगू में पूरी बात समझाने लगे और कहा यदि आपके पति को जेल हो जाती है तो आपको मिल रहा गुजारा भत्ता नही मिलेगा।चूँकि आपके पति राज्य सरकारी नौकरी में कार्यरत है तो स्वभावतः उसकी नौकरी छूट जायेगी और वह आपको पोषण भत्ता देने में असमर्थ हो जायेगा।

याचिका वापस लेने के लिए मंजूर हई महिला

एन वी रमन्ना की यह बात सुनकर पत्नी सहमति हो जाती है और अपनी याचिका वापस लेने के लिए मंजूर हो जाती है। लेकिन इस बात का आश्वासन सुप्रीम कोर्ट से माँगती है कि उसके पति उसका और उसके एकलौते बेटे का अच्छे से देखभाल करेंगे । इस बात के लिए सुप्रीम कोर्ट दोनो से दो हफ्ते में हलफनामा दाखिल करने को कहा है जिसमें इस बात का जिक्र हो कि दोनों ही साथ रहने के लिए राजी है। पति भी तलाक की याचिका वापस ले लेता है।

IPC की धारा 498A के तहत दहेज उत्पीड़न का अपराध केवल आंध्र प्रदेश में एक कंपाउंडेबल अपराध है जबकि भारत के अन्य हिस्सों में अपने दम पर इन विवादों को नहीं सुलझाया जा सकता है।

इस तरह मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना ने गुंटूर के एक परिवार को फिर से मिलाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । जो केस पिछले 21 सालों से सुलझ नही पा रहा था उस मामले को न्यायाधीश ने कुछ ही पलों में सिर्फ समझाइश के माध्यम से सुलझा दिया।

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

Next Story