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कुंवर कन्हैया को अब कौन नहलाएगा, कौन करेगा इतनी मनुहार
कोरोना के कठिन काल ने पंडित राजन –साजन मिश्र की जोड़ी तोड़ दी है। हमसे संगीत की अमूल्य धरोहर छीन ली है।
लखनऊ: आज नहाओ मेरे कुंवर कन्हैया। पंडित राजन –साजन मिश्र को जिसने भी यह गाते हुए सुना है उसे दैविक अनुभूति अवश्य हुई होगी। ख्याल गायकी के पंडित दोनों भाइयों ने कन्हैया स्नान को इस तरह से गाया है कि अगर आप आंख बंद कर सुनें तो आपके सामने कुंवर कन्हैया होंगे और आप उनसे नहाने की विनती, मनुहार कर रहे होंगे। शायद इसीलिए पंडित जी खुद कहते थे कि संगीत साधना वास्तव में ईश्वर साधना है। जब सुर सध जाते हैं तो हम नहीं ईश्वर खुद गाते हैं। जब गायन पूरा होता है तो आपके सामने राजन-साजन होते हैं लेकिन गाते हैं ईश्वर।
कोरोना के कठिन काल ने पंडित राजन –साजन मिश्र की जोड़ी तोड़ दी है। हमसे संगीत की अमूल्य धरोहर छीन ली है। कोरोना की निष्ठुरता के साथ ही मलाल यह भी है कि पंडित जी को यह देश अंतिम समय एक अदद वेंटीलेटर नहीं दे सका। मलाल यह भी है कि अब पंडित जी की अनुपस्थिति में ख्याल के तान कौन भरेगा। दोनों भाइयों की जोड़ी ने बनारस घराने की ख्याल गायकी को न केवल नया गौरव प्रदान किया बल्कि श्रोताओं को भी अहसास कराया कि किस तरह ख्याल से सामान्य गायन भी अलौकिक स्वरूप हासिल कर लेता है।
चलो मन वन्दावन से लेकर जय भगवती देवि नमो वरदे को सुनना सदैव ईश्वरीय आनंद प्राप्त करने जैसा रहा है। लगभग तीन दशक पहले शिव भजनों की श्रंखला में जब इस जोड़ी ने जय शिवशंकर जय गंगाधर, करुणाकर करतार हरे, की रचना प्रस्तुत की तो मानों पूरी काशी साकार हो उठी। इन भजनों को सुनने वाले को अपने घर में काशी के अद़भुत दर्शन का अनुभव होने लगा।
परिवार से मिली संगीत की विरासत
गुरु-शिष्य परंपरा के समर्थक दोनों भाइयों को संगीत की विरासत अपने परिवार से ही मिली। उनका परिवार सात पीढ़ी से संगीत साधना रत रहा। इसका असर दोनों भाइयों की कला साधना में भी दिखा। अपने पिता और चाचा से संगीत की दैनंदिन शिक्षा ग्रहण करने वाले पंडित राजन मिश्र के औपचारिक गुरु पंडित बड़े रामदास मिश्र जी रहे। सबसे पहले उन्होंने राग भैरव की बंदिश सीखी।
उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि संगीत का घर में ऐसा माहौल रहा कि जब बचपन में अपनी मां के साथ सोते थे और कोई अंतरा भूल जाते तो उनकी मां उसे ठीक करा देती थीं। दोनों भाइयों ने बेहद कम उम्र लगभग दस-बारह साल में पहली बार वाराणसी के संकटमोचन हनुमान मंदिर में गायन कला का प्रदर्शन किया। बताते हैं कि पंडित रविशंकर ने इसी मंदिर में पहली बार दोनों भाइयों को सुना और बुलाकर अपने साथ मुंबई ले गए। उन्होंने ही उन्हें विदेश में कार्यक्रम दिलाए। पंडित राजन मिश्र ने खुद बताया कि पहली बार 1978 में उन्होंने श्रीलंका में गायन किया।
बॉलीवुड से रिश्ता
मुंबई के बॉलीवुड से भी दोनों भाइयों का रिश्ता बना और सुर संसार फिल्म में उन्होंने गीत भी गाया। उन्होंने यह भी कहा कि ख्याल गायकी दरअसल आध्यात्मिक गायन है। दोनों भाइयों ने श्री श्री रविशंकर के सहयोग से पूना में अंतर्नाद का आयोजन किया, जिसमें सैकड़ों गायकों ने एक साथ राग बसंत बहार का गायन किया। यह अद्भुत प्रयोग था जिसकी संगीत जगत ने भूरि-भूरि सराहना की। गायकी के अलावा दोनों भाई अपने विनोदी स्वभाव के लिए भी मशहूर रहे हैं।
पंडित राजन मिश्र ने कहा कि खुशी कहीं अलग से नहीं मिलती, यह आपके अंदर रहती है। यही वजह है कि वह अपने दोस्तों के साथ हास्य-विनोद बांटते रहते हैं। मलाल यह है कि अब यह जोड़ी टूट गई है। अब न आध्यात्मिक ख्याल गायन सुनने को मिलेगा और न ऐसा सहज सरल विनोद। अब तो केवल यही कह सकते हैं चला गया अंतर्नाद से नाद को भेदने वाला सुर। अब स्वर साधना को ईश्वर से कौन जोड़ेगा।