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Coal in India: भारत के लिए कोयला बहुत जरूरी, नहीं बंद कर सकता इसका इस्तेमाल
Coal in India: भारत अभी अगले कुछ दशकों तक कोयले का इस्तेमाल करता रहेगा
Coal in India: जलवायु परिवर्तन (jalvayu parivartan) और ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) से निपटने के लिए कोयले के इस्तेमाल को बंद करने पर जोर है। इसके लिए दुनियाभर के तमाम देशों ने प्लानिंग भी कर रखी है कि किस तरह वे कोयले का इस्तेमाल (koyle ka istemal) कम करते जायेंगे। इसी क्रम में भारत ने संयुक्त राष्ट्र (sanyukt rashtra) को बताया है कि अगले कुछ दशकों तक वह कोयले का इस्तेमाल करता रहेगा। भारत उन देशों में शामिल है जो जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल एकदम बंद करने के खिलाफ हैं। संयुक्त राष्ट्र (sanyukt rashtra) का जलवायु सम्मलेन (jalvayu parivartan) अगले महीने ग्लासगो में होने वाला है जिसमें दुनिया भर के देशों से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन रोकने को कहा जाएगा।
बीबीसी (BBC) ने लीक हुई एक रिपोर्ट के हवाले से खबर दी है कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र (sanyukt rashtra) को स्पष्ट कह दिया है कि अगले कुछ दशकों तक वह कोयले का इस्तेमाल जारी रखेगा। चीन और अमेरिका के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है। क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर (सीएटी) के मुताबिक भारत का लक्ष्य 2030 से पहले अपने कुल बिजली उत्पादन का 40 प्रतिशत हिस्सा नवीकरणीय स्रोतों और परमाणु ऊर्जा से हासिल करने का है, जिसे वक्त से पहले भी हासिल किया जा सकता है।
भारत कोयले (bharat mein koyle ka utpadan) का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है और भारत में जितनी बिजले पैदा होती है उसका 70 फीसदी हिस्सा कोयले से चलने वाले संयंत्रों (use of coal in india) से आता है। बीबीसी की रिपोर्ट है कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट तैयार कर रहे वैज्ञानिकों को बताया है कि कोयले को छोड़ना मुश्किल होगा। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र (sanyukt rashtra) के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) द्वारा तैयार की जा रही है, जिसमें बताया जाएगा कि ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने के क्या-क्या तरीके हो सकते हैं।
भारत ने अब तक यह नहीं बताया है कि वह कार्बन न्यूट्रल या शून्य कार्बन उत्सर्जन करना चाहता है या नहीं और यदि करेगा तो कैसे करेगा। चीन दुनिया का सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस (green house gas) उत्सर्जक और सबसे ज्यादा कोयला उपभोग करने वाला देश है और उसने कहा हुआ है कि वह वर्ष 2060 तक कार्बन शून्य हो जाएगा। चीन में कोयले की मांग (Coal in China) भी तेजी से घटी है। चूँकि भारत बिजली के लिए कोयला चालित बिजली प्लांट्स पर निर्भर है सो यहाँ कोयले का उपभोग जारी रहेगा, जब तक कि अन्य उपाय लागू न कर दिए जाएँ।
जलवायु पर ग्लासगो सम्मलेन(glasgow sammelan) में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हिस्सा लेंगे। मेजबान देश ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के प्रवक्ता ने कहा है कि इसमें भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है और प्रधानमंत्री ने मोदी से जलवायु परिवर्तन की अहमियत पर कई बार चर्चा की है। इसलिए हम उनके साथ और चर्चा को लेकर उत्साहित हैं।
ग्लासगो सम्मलेन में भारत का अधिकारिक रुख क्या होगा ये अभी साफ़ नहीं किया गया है। डी डब्लू की एक खबर के अनुसार, पर्यावरण मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि आने वाले हफ्ते में इस बारे में कोई फैसला हो सकता है। जबकि पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा है कि भारत उत्सर्जन घटाने में अपना काम कर रहा है। जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए भारत की योजनाएं काफी महत्वाकांक्षी हैं, हम अपने हिस्से से ज्यादा काम कर रहे हैं। हमारे लक्ष्य दूसरे बड़े प्रदूषकों से कहीं ज्यादा बड़े हैं। सूत्रों के मुताबिक ग्लासगो में भारत का किसी तरह का वादा करने की संभावना कम ही है क्योंकि मुश्किल समयसीमा तय करने से उसके आर्थिक प्रगति के लक्ष्यों पर असर पड़ सकता है।
भारत समेत 11 देश डेंजर जोन में
एक अन्य खबर के अनुसार, भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान उन 11 देशों में शामिल हैं जिन पर जलवायु परिवर्तन का बेहद बुरा असर पड़ सकता है। अमेरिकी एजेंसियों के मुताबिक ये देश जलवायु परिवर्तन के कारण आने वालीं प्राकृतिक और सामाजिक आपदाओं को झेलने के लिए तैयार नहीं हैं। अमेरिका के ऑफिस ऑफ डायरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलिजेंस (ओडीएनआई) की ताजा रिपोर्ट नेशनल इंटेलिजेंस एस्टीमेट में पूर्वानुमान जाहिर किया गया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण 2040 तक भू-राजनीतिक तनाव बढ़ेंगे जिसका अमेरिका की सुरक्षा पर भी असर होगा। ये पूर्वानुमान अमेरिका की विभिन्न जासूसी एजेंसियों द्वारा जाहिर किए गए हैं। इन 11 में अफगानिस्तान, भारत और पाकिस्तान के अलावा म्यांमार, इराक, उत्तर कोरिया, ग्वाटेमाला, हैती, होंडूरास, निकारागुआ और कोलंबिया भी शामिल हैं। ओडीएनआई की इस रिपोर्ट का कुछ हिस्सा सार्वजनिक किया गया है।
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