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घर में रहकर ऐसे बढ़ाए ऑक्सीजन लेवल को, जाने क्या है विशेषज्ञों की राय
महामारी की दूसरी लहर से हालातों इतने ज्यादा बुरे हो गए हैं जिसका अंदाजा लगा पाना भी मुश्किल है।
नई दिल्ली: पूरे देश में कोरोना के मामलों में तेजी आने से स्वास्थ्य सेवाएं भी मरीजों को नहीं मिल पा रही है। बीते एक हफ्ते से संक्रमितों का आकड़ा लाखों में है। ऐसे में स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, बीते 24 घंटे में तीन लाख 60 हजार से ज्यादा नए मामले सामने आए हैं। वहीं 3200 से अधिक लोगों की मौत हुई है। ये पहला दिन है जब पहली बार मौतों का आकड़ा 3000 के पार हुआ।
महामारी की दूसरी लहर से हालातों इतने ज्यादा बुरे हो गए हैं जिसका अंदाजा लगा पाना भी मुश्किल है। संक्रमण के मामले बढ़ते जा रहे हैं, इधर अस्पतालों में कोरोना मरीजों की भीड़ लगी हुई है, मरीज को बेड नहीं मिल रहा है और न ही पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन।
ऐसे में अगर आपको घर पर रहकर ही ऑक्सीजन लेवल को नियंत्रित करना है तो चलिए जानते हैं इस बारे में क्या कहते हैं विशेषज्ञ।
राजधानी दिल्ली के आरएमएल अस्पताल के डॉ. ए. के. वार्ष्णेय कहते हैं, 'शुरू में जब कोरोना का संक्रमण होता है और तभी कोई स्टेरॉयड ले लेगा तो नुकसान कर सकता है, शरीर में पोटैशियम की कमी हो सकती है। इसलिए कभी भी खुद से स्टेरॉयड नहीं लेना है। ये एक ऐसा हथियार है, जिसे डॉक्टर ही चला सकते हैं, अगर कोई खुद से चलाने की कोशिश करेंगे तो खुद को ही नुकसान कर सकते हैं, खासतौर पर डायबिटीज वाले मरीज।'
ऑक्सीजन लेवल को खुद बढाएं
डॉ. ए. के. वार्ष्णेय कहते हैं, 'अगर ऑक्सीजन की सुविधा उपलब्ध है या कई और गंभीर लक्षण हैं तो अस्पताल जाना होगा। लेकिन अगर ऑक्सीजन की सुविधा उपलब्ध नहीं है तो सबसे पहले प्रोन ब्रीदिंग करते हैं।
प्रोन ब्रीदिंग का मतलब है कि पेट के बल लेट जाएं और इसके लिए एक तकिया सिर के नीचे, एक तकिया छाती के नीचे और एक तकिया घुटने के नीचे लगा लें। अगर आधे घंटे तक लगाकर स्लो और डीप ब्रीदिंग करेंगे तो सेचुरेशन सामान्य होता है।
साथ ही अगर बहुत ज्यादा गंभीर नहीं है तो जो भी ब्रीदिंग प्राणायाम है, उसे करें। ध्यान दें, बहुत तेज ब्रीदिंग नहीं करना है बल्कि गहरी सांस लेना और छोड़ना है। इसके अलावा गुब्बारा फुलाना, फुकनी फुलाना, आदि कोशिश कर सकते हैं। जिससे 4-5 प्रतिशत ऑक्सीजन लेवल बढ़ जाते हैं।'
आगे डॉ. ए. के. वार्ष्णेय कहते हैं, 'नेबुलाइजर को लेकर भ्रांतियां फैल गई हैं, ये एक विशेष मशीन है जो दवा देने के काम आता है। कोई दवा सीधे फेफड़ों में भेजने के लिए या कोई खा नहीं सकते हैं, उन्हें दिया जाता है। इससे दवा फेफड़ों में जल्दी जाती है। ऑक्सीजन लेवल को लेकर इसका कोई संबंध नहीं है।'
मास्क के बारे में डॉ. ए. के. वार्ष्णेय कहते हैं, 'कोरोना काल की शुरुआत से ही मास्क को लेकर काफी चर्चा होती आ रही है। ऐसे में हम कहते आए हैं कि एन-95 (N-95) मास्क ही वायरस के खिलाफ ज्यादा प्रभावी होते हैं।
आगे बताते हुए उसके बाद डिस्पोजेबल मास्क और फिर आम आदमी के लिए कॉटन का मास्क लगाने को कहा गया है, लेकिन जैसा कि देखा जा रहा है लोग कॉटन के मास्क को ही सही तरीके से नहीं लगाते हैं। ऐसे में मौजूदा स्थिति में उसी तरह लगाएंगे तो संक्रमित हो जाएंगे। इसलिए डबल मास्क कहा जा रहा है, ताकि संक्रमण की संभावना खत्म हो जाए।