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कोरोना वायरस की दूसरी लहर का पत्रकारों पर टूटा कहर, 300 से ज्यादा की मौत

अगर फ्रंट लाइन की बात की जाए तो इसबार कोरोनावायरस के शिकार सबसे ज्यादा पत्रकार हुए हैं।

Raghvendra Prasad Mishra
Published on: 18 May 2021 12:59 PM GMT (Updated on: 18 May 2021 1:02 PM GMT)
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फोटो— सांकेतिक (साभार— सोशल मीडिया)

नई दिल्ली। कोरोना की दूसरी लहर ने पूरे देश में तबाही मचाए हुए है। लेकिन इन सबके बीच पहली लहर की अपेक्षा इस बार इस महामारी के शिकार सबसे ज्यादा पत्रकार हुए हैं। वैसे पहली लहर की अपेक्षा इस बार संक्रमितों से लेकर मौत तक के आंकड़े काफी बढ़े हैं। लेकिन अगर फ्रंट लाइन की बात की जाए तो इसबार कोरोनावायरस (Coronavirus) के शिकार सबसे ज्यादा पत्रकार हुए हैं। क्योंकि इनका काम तो फ्रंट लाइन की ही तरह रहा, लेकिन सरकार ने इन्हें फ्रंट लाइन कभी समझा ही नहीं। नतीजन, सैकड़ों पत्रकार इस महामारी के चलते असमय मौत के शिकार हो गए।

बता दें कि पिछली बार कोरोनावायरस की चपेट में आने से अधिकत्तर फ्रंट लाइन वर्कर जैसे डॉक्टर, पुलिसकर्मी व स्वास्थ्य कर्मी शिकार हुए थे। इसी लिए देश में जब वैक्सीन लगनी शुरू हुई तो सबसे पहले फ्रंट लाइन वालों का टीकाकरण किया गया। चूंकि पत्रकारों को सरकार ने फ्रंट लाइन का समझा ही नहीं, इसलिए अधिकतर पत्रकार आज भी टीकाकरण से वंचित रह गए हैं। वहीं टीकाकरण हो जाने से फंट लाइन के वर्कर पिछली बार की अपेक्षा इस बार ज्यादा सुरक्षित रहे। जबकि ग्राउंड पर जाकर रिपोर्टिंग करने वाले व आफिस जाने वाले पत्रकार कोरोना के शिकार बन गए।

आंकड़ों के अनुसार कई नामी पत्रकारों सहित देश के अलग-अलग राज्यों में 300 से ज्यादा मीडियाकर्मी की कोरोना की चपेट में आने से मौत हो चुकी है। आंकड़ों के अनुसार अप्रैल के महीने में रोजाना औसतन तीन पत्रकारों की करोना से मौत हुई। वहीं मई में यह औसत बढ़कर रोजाना चार का हो गया। हकीकत यह है कि कोरोना की दूसरी लहर कई वरिष्ठ पत्रकारों को अपना शिकार बना लिया। जिले, कस्बे, गांवों में काम कर रहे तमाम पत्रकार भी इस महामारी की चपेट में आ गए। दिल्ली आधारित इंस्टीट्यूट ऑफ परसेप्शन स्टडीज की एक रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल, 2020 से 16 मई, 2021 तक कोरोनावायरस की चपेट में आने से कुल 238 पत्रकारों ने अपनी जान गंवाई है।

मई में सबसे ज्यादा हुईं मौतें

रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना की पहली लहर में अप्रैल 2020 से 31 दिसंबर, 2020 तक कुल 56 पत्रकारों की मौत हुई। जबकि दूसरी लहर पत्रकारों के लिए ज्यादा भयावह साबित हुई। 1 अप्रैल, 2021 से 16 मई की बीच कुल 171 पत्रकारों की मौत हुई। वहीं 11 अन्य पत्रकारों का निधन जनवरी से अप्रैल के मध्य हुआ।

इंस्टीट्यूट ऑफ परसेप्शन स्टडीज के रिकॉर्ड में 82 पत्रकारों के नाम ऐसे हैं, जिनका वेरीफिकेशन ही नहीं हो पाया है। इसी के साथ नेटवर्क ऑफ वुमन इन मीडिया, इंडिया के अनुसार भी लगभग 300 पत्रकारों की मौत कोरोना की चपेट में आने से हुई है। बता दें कि इंस्टीट्यूट ऑफ परसेप्शन स्टडीज की रिपोर्ट में उन पत्रकारों को भी शामिल किया गया है जो फील्ड में खबरों का संकलन करते हुए अथवा दफ्तरों में काम करते समय कोरोनावायरस से ग्रसित हुए और उनकी मौत हो गई। इनमें मीडिया संस्थानों के रिपोर्टर से लेकर, स्ट्रिंगर, फ्रीलांसर, फोटो जर्नलिस्ट और सिटिजन जर्नलिस्ट तक को शामिल किया गया है।

प्रेस काउंसिल ने की फ्रंटलाइन वर्कर्स घोषित करने की मांग

पत्रकारों को फ्रंट लाइन वर्कर्स घोषित किए जाने के संदर्भ में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य आनंद राणा ने बताया कि गत वर्ष सितंबर में प्रेस काउंसिल की बैठक में पत्रकारों को फ्रंटलाइन वर्कर्स घोषित किए की मांग उठी थी। इसके बाद काउंसिल के सेक्रेटरी की तरफ से सभी राज्य सरकारों को पत्र भेजा गया था। इसके साथ ही इस वर्ष भी प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन की तरफ से सभी राज्य सरकारों को दोबारा पत्र लिखा गया। इस पत्र में हरियाणा के मॉडल पर पत्रकारों का हेल्थ बीमा कराने का फॉर्मूला भी सुझाया गया। इस हेल्थ बीमा के तहत राज्य सरकार 5 लाख से लेकर 20 लाख रुपए तक पत्रकारों को हेल्थ कवर देती है।

आनंद राणा के मुताबिक करीब 16 राज्य सरकारों ने पत्रकारों को फ्रंटलाइन वॉरियर्स घोषित कर दिया है। इनमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, ओडिशा, तमिलनाडु, मणिपुर, पंजाब, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और केरल शामिल हैं। वहीं ओडिशा सरकार ने पत्रकारों की कोरोना से मौत पर 15 लाख रुपए की आर्थिक मदद देने की घोषणा की है तो राजस्थान सरकार ने 50 लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने का प्रावधान किया है। इसी के साथ ही यूपी सरकार भी 5 लाख रुपए आर्थिक मदद दे रही है।

Raghvendra Prasad Mishra

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