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वेंटीलेटर की लगातार खराबी से क्या मोदी की छवि पर लग रहा धक्का, ऑडिट से क्या बनेगी बात
कोरोना महामारी में वेंटिलेटर की कमी से लोगों की मौत पर केंद्र सरकार को घेरने के बजाय कुछ राज्य मुद्दा बनाने में मशगूल रहे
लखनऊ: कोरोना की दूसरी लहर के चरम के समय जब आम आदमी पीड़ित हताश और दुखी था, तो ऐसे समय में हमारे देश का विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने में लगा था। कोविड-19 महामारी दुनिया के जितने मुल्कों में आई कहीं पर भी विपक्ष सत्ता पक्ष से अलग हटकर नहीं खड़ा हुआ बल्कि महामारी से मुकाबले में सब एकजुट दिखे, लेकिन भारत में महामारी से निपटने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की मानकर विपक्ष के नेता सिर्फ मीडिया में बयानबाजी तक सीमित रहे।
चौंकाने वाली बात तो यह है कि आपदा से निपटने के लिए पीएम केयर्स फंड से 50,000 वेंटिलेटर खरीदने के लिए जब 2140 करोड़ रुपये जारी किए गए तो कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने इस पर सवाल उठाने शुरू कर दिये। जबकि दूसरी लहर की तीव्रता को देखते हुए गत माह 6 अप्रैल तक पीएम केयर्स के जरिए खरीदे जाने वाले 50,000 वेंटिलेटर में से करीब 35,000 वेंटिलेटर तमाम राज्यों को दिए जा चुके हैं। फिर भी इन राज्यों ने इन वेंटिलेटर को डिब्बों में बंद रहने दिया और उन्हें चलाने के लिए कुशल स्टाफ की भर्ती पर ध्यान नहीं दिया। वेंटिलेटर की कमी से लोगों की मौत को केंद्र सरकार को घेरने का राज्य मुद्दा बनाने में मशगूल रहे।
अब देखने की बात ये है कि इन वेंटिलेटर को राज्यों में किसको कितने दिये गए। इससे पहले यह देख लिया जाए कि पिछले साल तक देश में कितने बेड कितने आईसीयू बेड और वेंटिलेटर थे।
द सेंटर फार डिसीज डायनेमिक्स इकोनामिक्स एंड पालिसी के अनुसंधानकर्ताओं गीतांजलि कपूर, अदिति श्रीराम, ज्योति जोशी, अरिंदम नंदी, रमनन लक्ष्मीनारायण द्वारा 20 अप्रैल 2020 को जारी एक लिस्ट के मुताबिक भारत में लगभग 19 लाख हास्पिटल बेड्स, 95 हजार आईसीयू बेड्स और 48 हजार वेंटिलेटर उपलब्ध थे।
इन सात राज्यों में अधिकांश बेड्स और वेंटिलेटर्स
इनमें अधिकांश बेड्स और वेंटिलेटर्स सात राज्यों में थे- उत्तर प्रदेश में 14.8 प्रतिशत, कर्नाटक में 13.8 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 12.2 प्रतिशत, तमिलनाडु में 8.1 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 5.9 प्रतिशत, तेलंगाना में 5.2 प्रतिशत और केरल में भी 5.2 प्रतिशत थे। उपलब्ध बेड क्षमता अधिकांशतः सरकारी अस्पतालों में थी। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि कोविड-19 के मरीजों की तेजी से बढ़ती संख्या में वर्तमान क्षमता को तेजी से विस्तारित करने की जरूरत होगी या रुटीन मरीजों की देखभाल की नीति में सुधार करना होगा।
इस चार्ट से स्पष्ट है कि देश में सार्वजनिक क्षेत्र के यानी सरकारी अस्पतालों में 17 हजार 850 व प्राइवेट सेक्टर में 29 हजार 631 यानी कुल मिलाकर 47 हजार 481 वेंटिलेटर थे। केंद्र सरकार ने पीएम केयर्स फंड के जरिये खरीद कर वेंटिलेटर की संख्या दो गुनी से अधिक करने का लक्ष्य रखा जो कि कहीं से भी गलत नहीं ठहराया जा सकता है।
अब आते हैं पंजाब पर पंजाब सरकार ने कहा कि यह वेंटिलेटर खराब है जबकि सच्चाई यह है कि पीएम केयर्स फंड से खरीदे गए वेंटिलेटर पंजाब सरकार के अस्पतालों में इंस्टॉल ही नहीं किए। पीएम केयर्स फंड लोगों से दान किए गए रुपयों से बनाया गया है।
यही हाल झारखंड का है राज्य में कुल 1173 वेंटिलेटर हैं। इनमें से 500 वेंटिलेटर केन्द्र सरकार से प्राप्त हुए हैं। इनमें 653 वेंटिलेटर कार्यरत हैं जबकि 520 वेंटिलेटर काम नहीं कर रहे हैं। इस राज्य में भी मुख्य दिक्कत विशेषज्ञ तकनीशियन के नहीं होने अथवा अन्य तकनीकी जानकारी का अभाव अहम है जिसके चलते इन्हें चालू नहीं किया जा सका है।
बिहार में भी 900 वेंटिलेटर पीएचसी से लेकर मेडिकल कॉलेज अस्पताल तक में लगाए गए हैं। इनमें 250 से अधिक बंद हैं। किसी के लिए बिजली कनेक्शन नहीं है तो कहीं मानव संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। जबकि राज्य को 500 नए वेंटिलेटर की आपूर्ति अभी होनी शेष है।
यूपी, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे राज्यों में भी अस्पतालों में पीएम केयर्स के वेंटिलेटर धूल खा रहे हैं। प्रशिक्षित स्टाफ व मैनपावर के अभाव में दोष वेंटिलेटरों के ठीक से काम न करने पर मढ़ा जा रहा है। कहीं वायरिंग ख़राब तो कहीं एडॉप्टर नहीं होने की शिकायत है।
कुल मिलाकर भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुल 60,000 वेंटिलेटर तैयार करने का लक्ष्य रखा है, इसमें से 58850 वेंटिलेटर मेक इन इंडिया के तहत तैयार किए जा रहे हैं। इसके लिए आर्डर भी दिये जा चुके हैं। इन हालात में एक ही उपाय शेष बचता है। जिसका इशारा पीएम मोदी भी कर चुके हैं उन्होंने शनिवार को रिव्यू मीटिंग में सख्त तेवर अपनाते हुए कहा था कि केंद्र सरकार की ओर से भेजे गए वेंटिलेटर्स का ऑडिट कराया जाएगा। इससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।