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Corona Third Wave: जनसहभागिता से सरकार बहुत आसानी से पा लेगी तीसरी लहर पर काबू

Corona Third Wave: सरकार को बहुत सुलझी हुई रणनीति के तहत तीसरी लहर के नियंत्रण के लिए जनसहयोग लेकर जागरुकता बढ़ानी चाहिए

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Ashiki
Published on: 29 May 2021 12:32 PM IST (Updated on: 29 May 2021 1:10 PM IST)
Corona third wave
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कांसेप्ट इमेज (Photo-Social Media)

Corona Third Wave: कोरोना की तीसरी लहर के मुकाबले के संबंध में महामारी से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड-19 की तीसरी लहर को लेकर लोगों को न तो बहुत दहशत में आना चाहिए और न ही इसे लेकर नकारात्मक बातें फैलानी चाहिए और सरकार को भी बहुत सुलझी हुई रणनीति के तहत तीसरी लहर के नियंत्रण के लिए जनसहयोग लेकर जागरुकता बढ़ानी चाहिए।

विशेषज्ञों का कहना है कि हमें एक सिंड्रोमिक एप्रोच के साथ एक्टिव ऐण्ड पैसिव सर्विलेंस को डेवलप करना चाहिए जिसमें सभी अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवक (आशा) को एक्टिव होकर अपने क्षेत्र में रहने वाले विभिन्न समुदायों का निरंतर दौरा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस दौरान इन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को घरों में जाकर पूछना चाहिए कि शरीर में दर्द, जुकाम, दस्त, सिरदर्द, कहीं अन्य दर्द, खांसी, पेट दर्द आदि के किसी भी लक्षण के साथ बुखार का कोई मामला तो नहीं है।

पंचायत स्तर पर आइसोलेट सेंटर

एपिडेमियोलॉजिस्ट का कहना है कि यदि ऐसा कोई मामला सामने आता है तो उस मामले को पंचायत स्तर पर आइसोलेट सेंटर बनाकर इलाज किया जाना चाहिए। इसके लिए ग्राम स्तर पर बुखार उपचार डिपो की स्थापना की जानी चाहिए। जहां बुनियादी दवाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

सेल्फ चेकअप ऐप हो सकता है मददगार

यदि ऊपर बताए गए लक्षणों वाले व्यक्ति में तीन दिनों से अधिक समय तक यह स्थिति बनी रहती है तो तर्क संगत ढंग से बाकी परीक्षण कराए जाने चाहिए। लेकिन सीटी स्कैन का उपयोग बहुत आवश्यक होने पर ही किया जाना चाहिए क्योंकि इसके नकारात्मक और हानिकारक असर भी हो सकते हैं। सेल्फ चेक अप ऐप इसमें मददगार हो सकता है। जिसे लॉन्च किया जाना चाहिए।

यदि वास्तविक सलाह के लिए समुदायों के बीच जाने का फैसला किया जाता है तो इसके बाद टीकाकरण अभियान को भी सफलता पूर्वक किया जा सकता है। इस कंडीशन में लोगों के मन से भय निकल जाएगा और लोगों में टीकाकरण के प्रति जागरुकता बढ़ जाएगी।

गौरतलब है कि पिछले दिनों नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर ल्यूक मॉन्टैग्नियर का एक कथित वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उन्होंने कोविड टीकाकरण को ही नए वेरिएंट के उत्पन्न होने के कारण बताया था। इस वीडियो में यह दावा भी किया गया था कि महामारी विज्ञानियों को इस घटना के बारे में पता है लेकिन फिर भी वो 'चुप' हैं. हालांकि, भारत सरकार के 'प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो' के फैक्ट चेक विभाग ने इसे फर्जी करार दिया था।

COVAXIN को प्राथमिकता

इस संबंध में कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि हम इस बहस में नहीं पड़ना चाहते कि नोबेल विजेता सही हैं या गलत लेकिन यदि टीकाकरण करना अपरिहार्य है तो इसमें COVAXIN को प्राथमिकता दी जानी चाहिए क्योंकि यह वैक्सीन मरे हुए वायरस से तैयार की गई है, इसलिए इस वैक्सीन के लगने के बाद नए वेरिएंट मिलने की संभावना बहुत ही कम रहेगी। इन विशेषज्ञों ने आशंका जताई कि अगर ल्यूक मॉन्टैग्नियर को सही मानें तो कोवैक्सीन के अलावा अन्य सभी टीके कोरोना के नए वैरिएंट्स का उत्पादन करेंगे लेकिन इस पर बहुत शोध की जरूरत होगी। फिलहाल पीआईबी इसे फर्जी करार दे चुकी है तो इस पर विचार की आवश्यकता भी नहीं है। क्योंकि प्रोफेसर ल्यूक को सही मानें तो परिस्थितियां मूल सार्स वायरस की ओर ले जाएंगी जिसमें मृत्यु दर 10% है, यह सही प्रतीत नहीं होता है।

विशेषज्ञों का अंत में यह भी कहना है कि कोरोना की तीसरी लहर पर नियंत्रण के लिए नियमित रूप से जीनोम क्लासीफिकेशन के लिए नमूने भेजे जाऩे चाहिए। सीवेज के पानी के नमूने लें और किसी भी संभावित खतरे को टालने के लिए अस्पतालों में आने वाले मरीजों के स्वाब के नमूने भी नियमित रूप से लिए जाने चाहिए।

ऋणात्मक आरटी-पीसीआर रिपोर्ट वाले रोगसूचक मामलों में वायरस की पहचान के लिए मूत्र और शरीर के अन्य फ्लूड का भी टेस्ट किया जाना चाहिए। और यदि किसी नए वैरिएंट का पता चलता है तो 21 दिनों के लिए उस क्षेत्र को कंटोनमेंट जोन में लाया जाना चाहिए।



Ashiki

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