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Inflation In India: महंगाई से बेहाल हुआ आम आदमी, इन मोर्चों पर बढ़ी परेशानियां

Inflation In India: महंगाई से बुरी तरह आम आदमी परेशान है। न सिर्फ खाद्य तेलों बल्कि ईंधन के रूप में पेट्रोल डीजल की आग उगलती कीमतों ने उसकी थाली की रोटियां भी निगलनी शुरू कर दी हैं।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Shreya
Published on: 14 July 2021 1:29 PM GMT
Inflation In India: महंगाई से बेहाल हुआ आम आदमी, इन मोर्चों पर बढ़ी परेशानियां
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(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Inflation In India: कोरोना की पहली और दूसरी लहर में तबाह हो चुकी जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए जूझ रहे आम आदमी की जिंदगी में एक तरफ कोरोना की तीसरी लहर (Coronavirus Third Wave) का खतरा मुंह बाए खड़ा है तो दूसरी तरफ इस महामारी ने उसकी आर्थिक हालत पतली कर दी है। तमाम लोगों की नौकरी (Job) छूट गई है तो तमाम लोग ऐसे हैं जिनकी आमदनी (Income) घटकर आधी तिहाई रह गई है।

इन सब हालात से किसी तरह जूझने की कोशिश पर महंगाई (Inflation) की मार ने उसे पूरी तरह चौपट कर दिया है। न सिर्फ खाद्य तेलों बल्कि ईंधन के रूप में पेट्रोल डीजल की आग उगलती कीमतों ने उसकी थाली की रोटियां भी निगलनी शुरू कर दी हैं। ऐसे में न तो बच्चों को पोषक खुराक मिल पा रही है न ही उचित दवा दारू।

12.6 करोड़ लोगों की छिन गईं नौकरियां

अप्रैल 2020 में भारत कोरोना वायरस महामारी (Coronavirus) से प्रभावित हुआ, तो लगभग 12.6 करोड़ लोगों की नौकरियां गईं। यह संख्या उस समय और बड़ी हो जाती है जब एक व्यक्ति पर औसतन तीन से चार लोगों की जिम्मेदारी को जोड़ा जाए। इसमें औसतन नौ करोड़ लोग ऐसे थे जो दिहाड़ी मजदूर थे। जिनकी कमाई के स्रोत बंद हो गए और रोजगार छिन गया। नौकरी गंवाने वाले सभी 12.6 करोड़ लोग दोबारा काम पर लौटे भी नहीं। इनमें से जो लोग लौटे उसमें से भी कुछ ऐसे रह गए जिन्हें काम नहीं मिल पाया। इसके अलावा, सैलरी वाली नौकरियों में लगातार स्थायी गिरावट आई है और इसमें कोई सुधार नहीं हो रहा है।

मोटे तौर पर समझने की बात यह है कि कोरोना महामारी के आने से पहले भारत में 40.35 करोड़ नौकरियां थीं। दिसंबर 2020 से जनवरी 2021 के बीच फिर से (सबसे अच्छे स्तर पर) 40 करोड़ तक नौकरियां पहुंच पाईं। यानी दावों को सच मानें तो बहुत कोशिशों के बावजूद 35 लाख नौकरियां कम पड़ गईं। आज नौकरियों की संख्या 39 करोड़ रह गई है। इसका मतलब है कि अब हालात और बुरे हैं।

(कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

तेजी से घट रही नौकरियां

कोरोना काल में जिन लोगों ने नौकरी गंवाई या कंपनियों ने कोरोना के नाम पर वेतन में कटौती की शुरुआत की इनमें से ज्यादातर लोगों को पुरानी नौकरी वापस मिल नहीं पाई है। जिन लोगों को नौकरियां वापस मिली भी हैं तो उस वेतन या पोजीशन के स्तर की नौकरियां नहीं मिल पाईं जिन पर वे कोरोना काल से पहले काम कर रहे थे। इसके अलावा, वेतन वाली नौकरियों की संख्या भी तेजी से घटती जा रही है।

बात अगर कोरोना की दूसरी लहर के असर की करें तो अप्रैल 2021 में बेरोजगारी दर आठ फीसद तक पहुंच गई और श्रम भागीदारी दर 40 फीसद पर स्थिर हो गई। बाकी चीज़ें भी बिगड़ने लगीं और मई में हालात और बुरे होने लगे। मई में बेरोजगारी दर बढ़कर 14.5% हो गई और 23 मई तक यह दर 14.7 फीसद तक पहुंच गई। हालात भयावह हैं कोरोना महामारी आने से पहले वेतन वाली नौकरियों की संख्या 8.5 करोड़ थी। जिनकी संख्या 7.3 से 7.4 करोड़ के बीच रह गई है।

हर हफ्ते 60 हजार करोड़ रुपयों का नुकसान

बार्कलेज बैंक का भी आकलन है कि मई महीने के हर हफ़्ते में भारत को 8 मिलियन डॉलर यानी लगभग 60 हजार करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ। यह नुकसान लगभग 117 बिलियन डालर यानी 8.5 लाख करोड़ रुपयों तक जा सकता है, जो कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.75% है।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के मुताबिक, भारत में बेरोजगारी का आंकड़ा दहाई के अंकों तक पहुंच चुका है और 23 मई को खत्म हुए हफ़्ते में यह आंकड़ा 14.73 प्रतिशत तक पहुंच गया। शहरी भारत में बेरोजगारी 17% और ग्रामीण भारत में बेरोजगारी 14% आंकी गई है।

अब इन हालात में अगर महंगाई की मार बढ़ती जाएगी तो आम आदमी खुद क्या खाएगा, क्या बच्चों को खिलाएगा। क्योंकि मूवमेंट के लिए गाड़ी जरूरी है। कुछ लोगों की हालत पतली हो चुकी है लेकिन स्टेटस सिंबल के लिए गाड़ी का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं बेशक घर के खर्चों में कटौती जारी है।

(कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

घर के बजट पर पड़ा प्रभाव

एक चार से पांच सदस्यीय परिवार में सिर्फ राशन का महीने का बजट 4 से 5 हजार रुपये का बनता है। सब्जियों की बात करें तो न्यूनतम औसत रूप से एक किलो सब्जी चालीस से पचास रुपये रोज की पड़ती है। फल आम आदमी की थाली से गायब हो चुके हैं। दूध का खर्च, बच्चों की फीस, मकान किराया और अन्य खर्चों से तथाकथित मध्यमवर्गीय परिवार टूटने की कगार पर पहुंच चुके हैं। इसके अलावा पांच से छह हजार रुपये पेट्रोल में जा रहे हैं।

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