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कोविड-19: जनता या कारपोरेट, कौन है सरकार की वरीयता में

अप्रत्याशित मानवीय त्रासदी के तेजी से फैलते संक्रमण को लेकर विभिन्न हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की बात को सरकार ने तरजीह नहीं दी।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Dharmendra Singh
Published on: 3 May 2021 10:15 PM IST
कोरोना पर PM मोदी की बैठक, मंत्रिपरिषद के साथ 11 बजे करेंगे चर्चा
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो साभार- सोशल मीडिया)

लखनऊ: देश को जिस समय कोविड-19 पर फोकस करना था। उस समय देश का नेतृत्व चुनाव कराने और रैलियां करने में व्यस्त था। कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के समय राजनीतिक लाभ उठाने के लिए पश्चिम बंगाल में पैसा और समय नष्ट करने के बावजूद वहां की जनता ने ममता बनर्जी के मुकाबले भारतीय जनता पार्टी को तरजीह नहीं दी। भाजपा को यहां एक फायदा हुआ कि वह इस राज्य में दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभर गई।

अप्रत्याशित मानवीय त्रासदी के तेजी से फैलते संक्रमण को लेकर विभिन्न हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की बात को सरकार ने तरजीह नहीं दी। देश व प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दलों की आलोचना को तरजीह नहीं दी गई। आलोचकों के मुताबिक सरकार को जनता के हित के मुकाबले काॅरपोरेट जगत का हित अधिक प्यारा लगा। यह बातें मीडिया रिपोर्टस में आई हैं।
एसियन मेडिकल प्रोफेशनल्स ने कोविड से निपटने में सरकार की विफलता को लेकर एक खुला पत्र लिखा जिसमें इन मुद्दों को उठाया। स्वास्थ्य मोर्चे पर जुटे वारियर्स को कोविड-19 महामारी से निपटने के बजाय मोदी सरकार का पांच राज्यों के चुनाव में उलझना रास नहीं आया है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष डाॅ. नवजोत दहिया ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बड़े पैमाने पर लोगों की भीड़ इकट्ठा करने के लिए सुपर स्प्रैडर तक कह डाला है। मोदी सरकार ने इसका जवाब तो नहीं दिया, लेकिन सोमवार को कोविड-19 रणनीति को लेकर कुछ अहम फैसलों का एलान जरूर किया है।
कुछ महीनों पहले तक दुनिया को कोविड-19 वैक्सीन की सबसे बड़े निर्माता और आपूर्तिकर्ता के रूप में देने वाला भारत अब कोरोना की दूसरी लहर में बड़ी संख्या में मौतों, प्रतिदिन बढ़ रहे संक्रमण के नये मामलों को लेकर दुनिया के औषधि निर्माताओं के सामने गिड़गिड़ा रहा है। अंतरराष्ट्रीय मदद और आपूर्ति की गुहार लगा रहा है, क्योंकि भारत आज बड़े विनाश का स्थल बन गया है।
मोदी सरकार का महामारी की पहली लहर के मुकाबले इस समय की प्रतिक्रिया बिल्कुल विपरीत है। मार्च 2020 में अत्यंत निर्ममता से देश को लॉकडाउन की ओर ढकेल देने वाली मोदी सरकार इस समय बड़ी संख्या में लोगों को आक्सीजन, अस्पताल और दवाओं के अभाव में दमतोड़ देने के बावजूद लॉकडाउन को अंतिम विकल्प के रूप में लेकर चल रही है। जबकि उस समय कुछ घंटे के नोटिस पर लागू किये गए लॉकडाउन ने लाखों प्रवासी मजदूरों को खतरे में झोंक दिया था जिनके सामने गांव लौटने के अलावा विकल्प नहीं था और जीवन के लिए उन्होंने घर के लिए लंबी यात्रा के विकल्प को चुना था।
इस समय लोगों के ऑक्सीजन के लिए तड़पने, आईसीयू बेड न मिलने, अंत्येष्टि के लिए मारामारी की घटनाओं के बीच स्वास्थ्य मंत्री कह रहे हैं कि भारत में कोविड-19 से मृत्युदर सबसे कम है। विपक्षी दलों का कहना है कि 2014 में सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार ने हिन्दू राष्ट्रवाद और काॅरपोरेट का मिश्रण तैयार करके अपनी वरीयता बड़े कारोबार को दी है। आलोचकों का कहना है कि मोदी के लिए जनता के एक बड़े समूह के मुकाबले मल्टीनेशनल कंपनियों के हित ज्यादा महत्वपूर्ण हैं जिन्हें वह वेल्थ क्रियेटर कहते हैं। और ये बड़े औद्योगिक घराने मोदी सरकार की उम्मीदों पर खरे उतरे हैं। रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और अडानी ग्रुप ने आर्थिक के साथ ही स्वास्थ्य, संचार, विनिर्माण और कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है।
महामारी ने देश को सुपर अमीर बनने का मौका दिया है। अप्रैल से जुलाई 2020 में देश के अरबपतियों की कुल संपत्ति की वृद्धि दर 35 फीसद तक रही है। इन प्रमुख उद्योगपतियों में मुकेश अंबानी भी शामिल हैं जिनकी रिलायंस इंडस्ट्री वैक्सीन और ऑक्सीजन के उत्पादन में सक्रिय है। साइरस पूनावाला जिनका सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देश का सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता है और पूनावाला की संपत्ति 84.7 प्रतिशत इजाफे के साथ 13.8 अमेरिकी बिलियन डालर हो गई है।
आलोचकों का कहना है पिछले एक साल में सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के दौरान, सरकार ने अपना ध्यान सूचना, भाषण की स्वतंत्रता और विरोध या असंतोष के अधिकार के कठोर नियंत्रण पर केंद्रित किया है। विदेशी धन प्राप्त करने वाले गैर सरकारी संगठनों पर कड़े कानूनों ने संकट का जवाब देने के लिए नागरिक समाज की क्षमता को प्रभावित किया है। विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम की सख्त व्याख्याओं ने सरकार को ऐसे संगठनों पर नकेल कसने की अनुमति दी है। इस तरह, मोदी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य पर राजनीति को प्राथमिकता दी है।
विपक्षी दलों की ओर से आरोप यह भी लग रहे कि कोविड से निपटने के लिए सार्वजनिक दान से जुटाई गई धनराशि को कैसे आवंटित और खर्च की जाती है, इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है। इस बारे में सवाल पूछे जा रहे हैं कि पीएम केयर फंड (प्रधानमंत्री के नागरिक सहायता और आपातकालीन स्थितियों में राहत) ने ऑक्सीजन बनाने वाले संयंत्रों के निर्माण के लिए बोली लगाने वाली जिन कंपनियों को निविदाएं सौंपी हैं उनमें से अधिकांश का निर्माण शुरू होना बाकी है।
उत्तर प्रदेश के मुख्य विपक्षी दलों इस बात की आलोचना की है कि देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 25 अप्रैल को कहा कि ऑक्सीजन की कमी की "अफवाह" फैलाने वाले किसी भी व्यक्ति की संपत्ति जब्त करनी चाहिए। उन्होंने किसी भी अस्पताल या ऐसे व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम को लागू करने की धमकी दी है जो इस तरह की कमी की रिपोर्ट करता है। मोदी सरकार ने नए संक्रमणों के विस्फोट के मद्देनजर देश की असफल स्वास्थ्य सेवा पर दबाव डालने के लिए डॉक्टरों की याचिका का जवाब नहीं दिया है।




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Dharmendra Singh

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