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कोविशील्ड से बनती हैं ज्यादा एंटीबॉडी, स्टडी में किया गया दावा

कोविशील्ड और कोवैक्सिन दोनों ही असरदार हैं, लेकिन ज्यादा मजबूत कोविशील्ड है। कोविशील्ड कोरोना के खिलाफ ज्यादा एन्टीबॉडी पैदा करती है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Shashi kant gautam
Published on: 7 Jun 2021 12:33 PM IST
कोविशील्ड से बनती हैं ज्यादा एंटीबॉडी, स्टडी में किया गया दावा
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लखनऊ: कोरोना से बचाव के लिए कोविशील्ड और कोवैक्सिन दोनों ही असरदार हैं, लेकिन ज्यादा मजबूत कोविशील्ड है। कोविशील्ड कोरोना के खिलाफ ज्यादा एन्टीबॉडी पैदा करती है। ये निष्कर्ष है हेल्थ वर्कर्स पर की गई एक स्टडी का।

कोलकाता के जी.डी. हॉस्पिटल के डॉक्टर अवधेश कुमार सिंह के नेतृत्व में 515 हेल्थ वर्कर्स पर एक स्टडी की गई। इन सभी को कोरोना की वैक्सीन लगी थीं। स्टडी में निकल कर आया कि कोवैक्सिन और कोविशील्ड, दोनों से ही 95 फीसदी प्रतिभागियों में बढ़िया इम्यून रेस्पॉन्स मिला। वैक्सीनेशन के बाद भी जो लोग संक्रमित हुए, उनमें गंभीर बीमारी नहीं हुई। 13 राज्यों के 22 शहरों में की गई इस स्टडी में शामिल 515 प्रतिभागियों में 425 को कोविशील्ड लगी थी और 90 को कोवैक्सिन।

स्टडी के नतीजे

- वैक्सीन की दूसरी डोज़ के 21 से 36 दिन बाद 95 फीसदी प्रतिभागियों में इम्यूनिटी डेवलप हो गई।

- जिनको कोविशील्ड लगी उनमें से 98 फीसदी में सेरोपाजिटिविटी पाई गई। जबकि कोवैक्सिन के मामले में ये 80 फीसदी रही। सेरोपाजिटिविटी का मतलब है किसी बीमारी के खिलाफ ब्लड सीरम में एंटीबॉडी पाया जाना।

- एन्टी स्पाइक टीट्री भी कोविशील्ड में कोवैक्सिन की तुलना में करीब दोगुना पाया गया। एन्टी स्पाइक यानी कोरोना वायरस प्रोटीन के खिलाफ बनने वाली प्रक्रिया।

- जो प्रतिभागी 60 वर्ष से ऊपर के थे या जिनको टाइप 2 डायबिटीज थी , उनमें सेरोपाजिटिविटी काफी कम देखी गई। 60 साल के ऊपर वालों में ये 87.2 फीसदी थी जबकि 60 से नीचे वालों में 96.3 फीसदी ही थी।

प्रारंभिक अध्ययन

रिसर्च टीम के डॉ अवधेश सिंह का कहना है कि ये बहुत सीमित और प्रारंभिक स्टडी है अतः इससे ये नतीजा नहीं निकालना चाहिए कि कौन सी वैक्सीन अच्छी या बुरी है। दूसरी ओर एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस स्टडी में कोविशील्ड पाए ज्यादा लोग (425) रखे गए। जबकि जिनको कोवैक्सिन लगी थी उनकी संख्या एक चौथाई से भी कम (91) ही थी। ऐसे में एक संतुलित नतीजा नहीं पाया जा सकता है।

कोवैक्सिन पर कोई रिसर्च नहीं

कोवैक्सिन पर कोई रिसर्च नहीं

कोवैक्सिन, भारत में ही डेवलप की गई है लेकिन इसे अमेरिका, ब्रिटेन समेत अनेकों देशों ने मान्यता नहीं दी है। डब्लूएचओ ने भी इसे मंजूरी नहीं दी है। इसकी वजह इस वैक्सीन को बनाने वाली भारत बायोटेक कम्पनी द्वारा ट्रायल आदि के पूरे आंकड़े और जानकारी अभी तक नहीं दिया जाना है। वहीं, आस्ट्रा जेनका की कोविशील्ड को डब्लूएचओ की मान्यता है। ये वैक्सीन यूके में सबसे पहले लगना शुरू हुई थी क्योंकि यूके में ही ये डेवलप की गई है। इसलिए आस्ट्रा जेनका की वैक्सीन की असरदारिता पर यूके में रिसर्च चल रही हैं। फाइजर की वैक्सीन के साथ तुलनात्मक स्टडी भी हुईं हैं। उन स्टडी में आस्ट्रा जेनका फाइजर से कमजोर पाई गई। भारत में पाए गए कोरोना वेरियंट बी 1.617.2 वेरियंट पर आस्ट्रा जेनका की वैक्सीन 60 फीसदी असरदार पाई गई। जबकि फाइजर की वैक्सीन 88 फीसदी असरदार पाई गई।

कोविशील्ड और कोवैक्सिन में फर्क

दोनों ही वैक्सीनें वेक्टर आधारित हैं। यानी दोनों में ही निष्क्रिय वायरस पड़ा हुआ है। फर्क ये है कि कोविशील्ड में सामान्य सर्दी-जुखाम वाला एडीनो वायरस है जो चिम्पांजी में डेवलप करके निकाला गया है। वहीं, कोवैक्सिन में कोरोना वायरस को ही निष्क्रिय करके डाला गया है। दोनों ही वैक्सीनों के निष्क्रिय वायरस शरीर में पहुंच कर इम्यून रेस्पॉन्स पैदा करते हैं।

कोवैक्सिन पाए लोगों की दिक्कतें

जिनको कोवैक्सिन लगी है उनके लिए सिर्फ एक ही समस्या है कि वे दुनिया के ज्यादातर देशों की यात्रा पर नहीं जा सकते हैं। वजह है कोवैक्सिन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता का न मिलना। सिर्फ 8 देशों ने अंतरराष्ट्रीय यात्रा के लिए कोवैक्सिन को मान्यता दी है। ये देश हैं - ईरान, फिलीपींस, मॉरिशस, मेक्सिको, नेपाल, गुयाना, पैराग्वे, और ज़िम्बाब्वे। यही समस्या रूस की स्पूतनिक 5 वैक्सीन के साथ है। जिस तरह कोवैक्सिन की कम्पनी ने डब्लूएचओ को पूरे डेटा नहीं दिए हैं, वही हाल स्पूतनिक बनाने वाली कम्पनी का भी है।



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