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Coronavirus Vaccine: मिली बड़ी खुशखबरी, अब बन रही है पौधे से कोरोना वैक्सीन
Plant Based Vaccine: कोरोना वायरस से बचाव के लिए पहली बार एक ऐसी वैक्सीन पर सफल काम हुआ है जो वनस्पति आधारित (plant based vaccine) है यानी पौधे से बनी हुई वैक्सीन है।
वनस्पति आधारित वैक्सीन: Design Photo - Social Media
Coronavirus Vaccine live news: कोरोना वायरस (corona virus) से बचाव के लिए फिलहाल दो तरह की वैक्सीनें (Vaccines) उपलब्ध हैं। एक तो नई तकनीक वाली एमआरएनए वैक्सीन (mRNA vaccine) है और दूसरी है पारंपरिक तकनीक वाली वैक्सीन जिसमें निष्क्रिय वायरस (inactivated virus) का इस्तेमाल किया गया है। अब पहली मर्तबा एक ऐसी वैक्सीन पर सफल काम हुआ है जो वनस्पति आधारित (plant based vaccine) है यानी पौधे से बनी हुई है।
ट्रायल में इस वैक्सीन के सकारात्मक परिणाम (Positive results of vaccine trials) आये है और ये कोरोना वायरस जनित बीमारियों के प्रति 71 फीसदी प्रभावी और गंभीर बीमारी और मौत के खिलाफ सौ फीसदी असरदार पाई गयी है। वनस्पति आधारित इस वैक्सीन को कनाडा की बायोटेक्नोलॉजिकल (biotechnological) कंपनी मेडीकागो (company medicago) और ब्रिटिश-अमेरिकी (British-American) मल्टीनेशनल फार्मा कंपनी ग्लैक्सो स्मिथ क्लाइन (Glaxo Smith Kline) ने संयुक्त रूप से डेवलप किया है।
क्या होती है वनस्पति बेस्ड वैक्सीन
वनस्पति बेस्ड वैक्सीन का मतलब है कि शोधकर्ताओं ने वैक्सीन की सामग्री का कुछ हिस्सा पौधों से निकाला है। इस वैक्सीन में इस्तेमाल किया गया पौधा तम्बाकू से मिलता जुलता है। जिसका बोटैनिकल नाम है निकोटियाना बेन्थमियाना। ये पौधा इसलिए इस्तेमाल किया गया है क्योंकि इस पर कई तरह के विषाणुओं के संक्रमण का कोई असर नहीं होता है।
Photo - Social Media
इसका मतलब है कि शोधकर्ता एंटीजन बनाने के लिए इस पौधे की पत्तियों के जीवाश्म का इस्तेमाल कर सकते हैं। बता दें कि वैक्सीनों में प्रमुख तत्व एंटीजन होता है। एंटीजन वायरस और वैक्सीनों के वो हिस्से होते हैं जो हमारे इम्यून सिस्टम को सक्रिय कर देते हैं। कोरोना के मामले में स्पाइक प्रोटीन एंटीजन की तरह काम करता है।
इसीलिए वैक्सीनें वायरस के स्पाइक प्रोटीन की नक़ल करने की कोशिश करती हैं। लेकिन ये काम करने के लिए हर वैक्सीन का अपना अलग एप्रोच होता है। मिसाल के तौर पर जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन हमारे शरीर में स्पाइक प्रोटीन लाने के लिए एक मॉडिफाइड वायरस का इस्तेमाल करती है। कोवैक्सीन कोरोना वायरस को निष्क्रिय करके ये काम करती है जबकि फाइजर या मॉडर्ना की वैक्सीन स्पाइक प्रोटीन के लिए एक जेनेटिक कोड का प्रयोग करती है। ये सभी वैक्सीनें जो स्पाइक प्रोटीन बनाती हैं उन्हें हमारा इम्यून सिस्टम (immune system) हमलावर मानता है और नष्ट कर देता है। ये एक तरह की प्रैक्टिस होती है और जब असल में कोरोना वायरस का हमला होता है तो इम्यून सिस्टम पहले से तैयार बैठा होता है।
मेडीकागो का तरीका (Medicago's way)
मेडीकागो वैक्सीन का तरीका अलग तरह का है। इसमें पौधे में ही जेनेटिक कोड डाला जाता है ताकी वह स्पाइक प्रोटीन बनाये। ये कोड एक तरह से दिशानिर्देश देने का काम करता है जिसमें पौधे के सेल्स उस कोड को पढ़ते हैं और जरूरत से अधिक मात्रा में स्पाइक प्रोटीन बनाना शुरू कर देते हैं। इन स्पाइक प्रोटीन की ग्रुपिंग होती है और उससे वायरस जैसे मॉलिक्यूल (वीएलपी) बनते हैं जो पौधे की पत्तियों में जमा हो जाते हैं। ये चक्र चार दिन में पूरा होता है और इस तरह मेडीकागो की वैक्सीन में प्रयुक्त होने वाला एंटीजन बन जाता है।
Photo - Social Media
क्या हुआ ट्रायल में
वनस्पति आधारित वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल छह देशों में 24 हजार वयस्कों के बीच हो चुके हैं जिसमें इसकी असरदारिता 71 फीसदी पाई गयी। मेडीकागो के मेडिकल ऑफिसर डॉ ब्रायन वार्ड के अनुसार, वनस्पति आधारित वैक्सीन अन्य वैक्सीनों की तुलना में ज्यादा मजबूत इम्यून रेस्पोंस उत्पन्न करती है। कोरोना के डेल्टा वेरियंट के खिलाफ ये वैक्सीन 75.3 फीसद प्रभावी पाई गयी है जबकि गामा वेरियंट पर ये 89 फीसदी प्रभावी मिली।