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Delhi News : अरविंद केजरीवाल बनाम कुमार विश्वास की दोस्ती आज दुश्मनी में कैसे बदल गई?
Delhi News : कुमार विश्वास के इस बयान के बाद से राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने अरविंद केजरीवाल को आड़े हाथ लिया है और इस बयान पर स्पष्टीकरण की मांग की है।
Delhi News : एक दिन, उन्होंने मुझसे कहा कि वह या तो पंजाब के मुख्यमंत्री बनेंगे या एक स्वतंत्र राष्ट्र (खालिस्तान) के पहले पीएम होंगे।" यह शब्द है चर्चित कवि और आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे कुमार विश्वास के। कुमार विश्वास यहां आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल का जिक्र कर रहे हैं। यह बयान तब आया है जब पंजाब में विधानसभा चुनाव के मतदान होने हैं और आम आदमी पार्टी को एक मजबूत दावेदार के रूप में देखा जा रहा है।
कुमार विश्वास के इस बयान के बाद से राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने अरविंद केजरीवाल को आड़े हाथ लिया है और इस बयान पर स्पष्टीकरण की मांग की है। अब इस बयान में कितनी सच्चाई है यह तो कुमार विश्वास और अरविंद केजरीवाल ही जानते हैं लेकिन आज की यह लड़ाई कभी दिलों की दोस्ती वाली हुआ करती थी।
कुमार विश्वास और अरविंद केजरीवाल के रिश्ते
कुमार विश्वास और अरविंद केजरीवाल के बीच एक वक्त में परिवारिक मित्रता रही है। अरविंद अक्सर कुमार विश्वास को अपना छोटा भाई बताते थे। कुमार विश्वास भी अरविंद केजरीवाल के लिए सर्वस्व भाव से प्रचार किया करते थे लेकिन राजनीतिक परिस्थितियों ने आज कुमार विश्वास और अरविंद केजरीवाल के रिश्तों को दुश्मनी में बदल दिया है। अरविंद तो चुप रहते हैं लेकिन कुमार विश्वास तल्ख शब्दों का इस्तेमाल हमेशा करते रहते हैं। मसलन कई दफा अरविंद केजरीवाल के लिए आत्ममुग्ध बौना जैसे सतही शब्दों का इस्तेमाल कर देते हैं।
अरविंद बनाम विश्वास की लड़ाई का केंद्र बिंदु क्या है?
कुमार विश्वास कितनी भी सफाई दें लेकिन यह यथार्थ है कि उनका पूरा विरोध राज्यसभा की सीट ना मिलने के बाद सामने आया था। दिल्ली के पास तीन राज्यसभा सीटें हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में 67 सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी इन तीनों सीटों पर अपने प्रत्याशी जिता सकती थी। उस दौरान कुमार विश्वास, आशुतोष, आशीष खेतान जैसे पार्टी नेताओं का नाम तय माना जा रहा था लेकिन जब टिकटों की घोषणा हुई तो 'आप' ने संजय सिंह, सुशील गुप्ता और नवीन गुप्ता के को उम्मीदवार बनाया था। कुमार विश्वास दो नामों पर खुश नहीं थे और मीडिया में मुखर होकर अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बातें रखीं। इसके पहले कुमार विश्वास कई मौकों पर पार्टी के निर्णय से असंतुष्ट जरूर थे लेकिन इस तरीके से अरविंद केजरीवाल पर हमलावर नहीं होते थे।
कुमार पार्टी में खुद को अरविंद के बराबर रखते थे
राज्य सभा की घटना के बाद से कुमार विश्वास ने अपना ताल्लुक पार्टी से खत्म कर लिया, लेकिन महज़ राज्यसभा सीट नहीं बल्कि अरविंद बनाम विश्वास की लड़ाई के और भी दृष्टिकोण है। एक राजनीतिक दृष्टिकोण तो प्रतिस्पर्धा का दिखाई पड़ता है। कुमार विश्वास हमेशा से पार्टी में खुद को अरविंद के बराबर रखते थे। मसलन जब केजरीवाल ने वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो कुमार विश्वास भी अमेठी में राहुल गांधी को चुनौती देने चले गए। बस कहानी यह थी कि कुमार विश्वास भी नरेंद्र मोदी के प्रबल विरोधी राहुल गांधी को बराबर चुनौती दे सकते हैं। कई मुद्दों पर पार्टी लाइन के अलग कुमार विश्वास एकतरफ़ा बयान जारी कर दिया करते थे। तमाम राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो 2015 में अरविंद केजरीवाल के पूर्ण बहुमत से मुख्यमंत्री बनने के बाद पार्टी संयोजक की भूमिका को लेकर कुमार विश्वास भी असहमत बताए जाते थे। पार्टी का संविधान भी एक व्यक्ति दो पद के खिलाफ था।
कुमार विश्वास को अरविंद से इतनी नाराजगी क्यों हैं?
कुमार विश्वास के तल्ख शब्दों से उनका गुस्सा अरविंद केजरीवाल के लिए स्पष्ट दिखाई पड़ता है। मीडिया ने भी कई दफे उनसे सवाल किया कि अरविंद केजरीवाल से इतनी कटु नाराजगी क्यों व्यक्त करते हैं? जब राज्यसभा टिकट वितरण के बाद कुमार विश्वास ने मीडिया में अपना बयान दिया था तब उनका एक बयान बड़ा चर्चित हुआ था। कुमार विश्वास के अनुसार अरविंद ने कहा था कि वह कुमार को मारेंगे तो जरूर लेकिन शहीद नहीं होने देंगे। तब कुमार ने यह कहा था कि बस अब मेरी लाश से छेड़-छाड़ ना करें।
विवाद की एक जड़ पंजाब विधानसभा चुनाव 2017 क्यों थी?
कुमार विश्वास अमेठी से चुनाव हार गए थे। कुमार विश्वास के मन में एक टीस तो यह भी थी कि पार्टी का पूरा संसाधन और काडर अरविंद के साथ वाराणसी में लग गया था। लेकिन यह नाराजगी अमेठी के चुनाव में मिली हार से नहीं आई थी। कुमार ने 2015 में अरविंद के लिए खूब बड़ी सभाएं की थीं। खुले तौर पर नाराजगी तो पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान दिखाई पड़ी थी। पंजाब विधानसभा चुनाव में कुमार विश्वास स्टार प्रचारक बनाएं गए थें। इसी दौरान उनका एक वीडियो तेजी से वायरल हुआ जिसमें वह भिंडरांवाला के लिए कठोर शब्दों का इस्तेमाल कर रहे थे। उस दौरान पार्टी के पंजाब प्रभारी संजय सिंह हुआ करते थे। पार्टी को लगा कि धार्मिक मुद्दों पर संवेदनशील पंजाब में कुमार विश्वास के ऐसे बयान नुकसान पहुंचा सकते हैं। पार्टी ने कुमार विश्वास को पंजाब चुनाव प्रचार से दूर कर दिया और नाराजगी की पहली जड़ यही दिखाई पड़ी थी। फिर कई मौकों पर वह अपनी नाराजगी दिखाते रहे थे। 'वी द नेशन' नाम के एक वीडियो के जरिए उन्होंने अरविंद केजरीवाल पर भी सवाल खड़े कर दिए थे। सर्जिकल स्ट्राइक पर सबूत मांगने वाले अरविंद केजरीवाल के बयान पर आलोचना भी की थी।
कुमार विश्वास सिर्फ वाकपटुता के सहारे किन सवालों से नहीं बच सकते?
कुमार विश्वास आम आदमी पार्टी के एक शहीद कार्यकर्ता के रूप में खुद को पेश तो जरूर करते हैं लेकिन कुछ सवालों के जवाब स्पष्ट रूप से नहीं देते हैं। जब पार्टी बनाने की घोषणा की गई थी तो कुमार विश्वास ने साथ आने से मना क्यों कर दिया था? फिर बाद में शामिल हो गए थे। जब पार्टी की नीतियों पर सवाल उठाने के लिए योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को बाहर निकाला जा रहा था तब वह चुप क्यों थे? राजस्थान में आम आदमी पार्टी के किसी कार्यकर्ता सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि "एक आदमी आरक्षण के आंदोलन के नाम पर हमारे देश में जातिवाद की नींव (या रीढ़) डाल गया था।" क्या यह बयान उनके आरक्षण विरोधी होने का तर्क नहीं था?
अरविंद केजरीवाल के खिलाफ दिए थे बयान
कुमार विश्वास बनाम अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक लड़ाई में एक पक्ष यह भी है कि कुमार विश्वास अक्सर चुनाव से पहले कोई बड़ा बयान अरविंद के खिलाफ दे देते हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के पहले भी कुमार विश्वास ने आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के खिलाफ ऐसे बयान दिए थे। एक बार फिर पंजाब चुनाव से पहले उनका यह बयान बताता है कि वह राजनीति से तो दूर हैं लेकिन उनमें राजनीति अभी जिंदा है।
अरविंद केजरीवाल और कुमार विश्वास की यह कहानी एक तीसरे दोस्त की वजह से चालु हुई थी। यह मनीष सिसोदिया ही थे जिन्होंने कुमार विश्वास को अरविंद केजरीवाल से मिलवाया था और अब मनीष सिसोदिया से भी कुमार विश्वास के परिवारिक रिश्ते खत्म हो चुके हैं। एक वक्त में मजबूत रहे दोस्त आज आलोचना के शब्दों की मर्यादा भी कभी-कभी भूल जाते हैं। यही राजनीति है और ऐसे ही दोस्त से दुश्मन बनने की कहानियों से भरी पड़ी है।