×

Devadasi Pratha: देवदासी प्रथा क्या है, महिलाओं के लिए अभिशाप क्यों, किन राज्यों में अब तक जारी ये कुरीति

Devadasi Pratha: भले ही जमाना कितना भी बदल गया हो, लेकिन कुछ कुरीतियों ने आज भी अपनी जड़ें इसी समाज में जमा कर रखी हुई हैं।

AKshita Pidiha
Written By AKshita PidihaPublished By Divyanshu Rao
Published on: 26 Aug 2021 8:01 AM IST
Devadasi Pratha
X

देवदासी प्रथा की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

Devadasi Pratha: भले ही जमाना कितना भी बदल गया हो, लेकिन कुछ कुरीतियों ने आज भी अपनी जड़ें इसी समाज में जमा कर रखी हुई हैं।कर्नाटक के कुडलीगी की एक 20 वर्षीय युवती ने इस फरवरी को ऐसी ही एक देवदासी कुप्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद की। जिसके बाद वो तो बच गयी पर उसके परिवार के बैकग्राउंड के कारण उसकी शादी में व्यवधान आते गये। जिसके बाद अब भी मजदूरी करने को मजबूर है। कई बार उसे झूठ का भी सहारा लेना पड़ा। और उम्र के साथ उसे सामाजिक विभाजन दिखने लगा था।

इसके बाद जून 2021 में भी कर्नाटक में 20 साल की एक लड़की देवदासी प्रथा से बचने के लिए घर से भाग गई। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कथित तौर पर उसके माता-पिता ने धमकी दी। कि अगर उसने अपनी बहन के पति के साथ शादी नहीं की तो उसे देवदासी प्रथा का पालन करना होगा।

देवदासी प्रथा क्या है

इस प्रथा के अंतर्गत देवी/देवताओं को प्रसन्न करने के लिये सेवक के रूप में युवा लड़कियों को मंदिरों में समर्पित करना होता है। इस प्रथा के अनुसार, एक बार देवदासी बनने के बाद ये बच्चियां न तो किसी अन्य व्यक्ति से विवाह कर सकती है और न ही सामान्य जीवन व्यतीत कर सकती है।

प्रथा खत्म न होने की वजह

क्योंकि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 और किशोर न्याय (JJ) अधिनियम, 2015 में बच्चों के यौन शोषण के एक रूप में इस कुप्रथा का कोई संदर्भ नहीं दिया गया है। भारत के अनैतिक तस्करी रोकथाम कानून या व्यक्तियों की तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक, 2018 में भी देवदासियों को यौन उद्देश्यों हेतु तस्करी के शिकार के रूप में चिह्नित नहीं किया गया है।

साल 2019 में नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (NLSIU), मुंबई और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ (TISS), बेंगलुरु द्वारा 'देवदासी प्रथा' पर दो नए अध्ययन किये गए। ये अध्ययन देवदासी प्रथा पर नकेल कसने हेतु विधायिका और प्रवर्तन एजेंसियों के उदासीन दृष्टिकोण की एक निष्ठुर तस्वीर पेश करते हैं। यह कुप्रथा न केवल कर्नाटक में बनी हुई है। बल्कि पड़ोसी राज्य गोवा में भी फैलती जा रही है।

देवदासी प्रथा की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)


मानसिक या शारीरिक रूप से कमज़ोर लड़कियां इस कुप्रथा के लिये सबसे आसान शिकार हैं। NLSIU के शोधकर्त्ताओं ने पाया कि सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशिये पर स्थित समुदायों की लड़कियां इस कुप्रथा की शिकार बनती रहीं हैं। जिसके बाद उन्हें देह व्यापार के दल-दल में झोंक दिया जाता है।

देववासी की पौराणिक विचारधारा का 700 से 1200 ईं के बीच विस्तार

देवदासी की पौराणिक विचारधारा का 700 से 1200 ई के बीच काफी विस्तार हुआ। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में पहली बार 'देवदासी' शब्द मिला। राजतरंगणि, कुट्टनीमत्तम और कथासरितसागर साहित्यिक रचनाओं में भी देवदासी शब्द का प्रयोग हुआ है। दक्षिण भारत में तमिल में देवदासी को 'देवरतियाल', मल्यालम में 'तेवादिची' और कर्नाटक में 'वासवी एवं वेश्या' कहते हैं। उत्तरी भारत में इसे देवदासी कहा जाता है।

लेकिन इसके कई बुरे पहलू भी सामाजिक मान्यता बनते गए। मसलन देवदासियां मदिर के पंडों की संपत्ति बन गई। पंडे देवदासियों का शारीरिक शोषण किया करते थे। और इसी कारण देवदासियों को 'वेश्या' तक कहा जाने लगे। मंदिर और देवता के नाम पर देवदासियों का हर तरह से शोषण होने लगा। कई दशकों तक शोषण के बाद समाज सुधारकों ने देवदासी प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई और ये प्रथा समाप्त हो पाई।

महाराष्ट्र,कर्नाटक तमिलनाडु, ओडिसा मंदिरों में अभी भी देवदासी प्रथा प्रचलित है

महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिसा के मंदिरों में अभी भी देवदासी की प्रथा प्रचलित है। कर्नाटक के अधिकतर शैव मंदिरों में सुबह स्वस्ति मंत्रों के उच्चारण के समय, रथयात्रा, रंगभोग और अंगभोग में देवता के समक्ष देवदासी की उपस्थिति अनिवार्य होती थी। मत्स्य पुराण के अध्याय 70 में 41-63 श्लोक में कहा गया है कि देवदासियों को संतान होना कोई पाप नहीं है। 2005 की रिपोर्ट के अनुसार जगन्नाथपुरी में नृत्य करने के लिए देवदासी को 30 रुपये मिलते थे।

फरवरी 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वह इस बात को सुनिश्चित करें कि किसी भी मंदिर में किसी भी लड़की का उपयोग देवदासी के रूप में नहीं किया जाएगा।

पर आज भी इस कुप्रथा को चोरी छिपे अपनाया जाता है। 90 फीसदी लड़कियां अनुसूचित जाति और जनजाति से तालुका रखतीं हैं। बड़ी कुल की लड़कियां इस कुप्रथा का हिस्सा नहीं होती हैं। ना ही लड़के की पत्नी इसका हिस्सा होती हैं। लड़के सामान्य जीवन जीते हैं। 2008 के कर्नाटक राज्य के महिला विकास निगम सर्वे में 40600 कुल देवदासियां थीं। पर एक गैर सरकारी संस्था ने 2018 में अपने आंकड़ों ने देवदासियों की संख्या 90000 बतायी। कर्णाटक विजयनगर के कुड़लीगी में 120 गांवों में 3 हज़ार से अधिक देवदासियां हैं। जिनमें 20 फीसदी लड़कियां 18 साल से कम आयु की हैं।



Divyanshu Rao

Divyanshu Rao

Next Story