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और ताकतवर होगी वायुसेना, DRDO तैयार करेगा अर्ली वार्निंग सिस्टम, जानें क्या है खूबी
समय और तकनीकी के साथ बढ़ते युद्ध के खतरों के बीच भारत भी अपनी सैन्य क्षमताओं को विस्तार देने में लगा हुआ है।
नई दिल्ली: समय और तकनीकी के साथ बढ़ते युद्ध के खतरों के बीच भारत भी अपनी सैन्य क्षमताओं को विस्तार देने में लगा हुआ है। गत वर्ष पूर्वी लद्दाख में चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच हुई हिसंक झड़प के बाद केंद्र की मोदी सरकार ड्रैगन के किसी भी चाल से निपटने के लिए भारतीय सशस्त्र बलों को हर चुनौती से निपटने में सक्षम बनाने में जुटी हुई है। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को भारतीय वायु सेना को 70 किमी. तक मार करने में दक्ष मीडियम रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल सिस्टम को समर्पित किया है। इसके अलावा रक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने वायुसेना के लिए आधा दर्जन के करीब एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल एयरक्राफ्ट परियोजना को स्वीकृति प्रदान कर दी है।
बता दें कि एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल एयरक्राफ्ट सिस्टम धरती पर स्थित रडार की तुलना में दुश्मन की क्रूज मिसाइलों, ड्रोन समेत अन्य लड़ाकू विमानों का काफी तेजी से पता लगाने में सक्षम है। ज्ञात हो कि रक्षा मामलों की कैबिनेट समिति के अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। रक्षा अनुसंधान और विकास परिषद (डीआरडीओ) ने एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल एयरक्राफ्ट परियोजना को तैयार किया है। इस परियोजना की लागत 11 हजार करोड़ रुपए आई है। वहीं स्वदेश निर्मित पहला अर्ली वार्निंग सिस्टम 2017 में भारतीय वायु सेना में शामिल किया गया था। यह ब्राजील के एम्बरेर 145 की जेट की तरह था।
नेत्रा से काफी एडवांस होगा
डीआरडीओ ने ही नेत्रा नाम के इस सिस्टम को तैयार किया था, जिसकी रेंज करीब 200 किमी. है। सूत्रों के मुताबिक एयरबोर्न अर्ली वार्निंग सिस्टम एयरबस ए 321 पर आधारित होगा। खबरों के मुताबिक यह सिस्टम नेत्रा से कहीं ज्यादा एडवांस है। डीआरडीओ अब इस परियोजना के लिए एयर इंडिया से 6 विमानों को हासिल करेगा।
रडार से तेज काम करेगा
इसके बाद इन विमानों को सामरिक जरूरतों के मुताबिक बदलाव कर एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम में फिट किए जाएंगे। बताया जा रहा है कि यह अर्ली वार्निंग सिस्टम जमीन पर आधारित रडार की तुलना में दुश्मन देश की क्रूज मिसाइलों, लड़ाकू विमानों और ड्रोन का पता काफी तेजी से लगा सकता है। इससे समुद्र में भी निगाह रखी जा सकती है, जिससे युद्धक पोतों की सुरक्षा और पुख्ता होगी।