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Facebook Post: भारत में धार्मिक नफरत फैलाने का सबसे बड़ा हथियार फेसबुक, सामने आई ये रिपोर्ट

Facebook Post: रिपोर्ट में बताया गया है की फरवरी, 2019 में फेसबुक कंपनी ने भारत में ये जानने के लिए एक टेस्ट अकाउंट बनाया कि भारत में लोग जो सामग्री देखते हैं।

Neel Mani Lal
Report Neel Mani LalPublished By Ragini Sinha
Published on: 24 Oct 2021 2:30 PM IST
Facebook Post: भारत में धार्मिक नफरत फैलाने का सबसे बड़ा हथियार फेसबुक, सामने आई ये रिपोर्ट
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Facebook Post: फेसबुक के संस्थापक और सीईओ मार्क जुकरबर्ग (Facebook founder & CEO Mark Zuckerberg) ने पिछले साल दिसंबर में कहा था कि भारत, फेसबुक कंपनी के लिए एक ख़ास और महत्वपूर्ण देश है, जहाँ करोड़ों लोग इसकी सेवाओं का इस्तेमाल अपने परिवार और दोस्तों के संपर्क में रहने के लिए रोजाना करते हैं। लेकिन फेसबुक के भीतर के लोग एक अलग ही तस्वीर पेश कर रहे हैं। एक ऐसी तस्वीर जिसमें बताया गया है कि भारत में फेसबुक के प्रोडक्ट्स भड़काऊ सामग्री से भरे पड़े हैं और देश में हुए दंगों से भी जिनका ताल्लुक रहा है।

फेसबुक के अंदरूनी हालातों की जानकारी वाल स्ट्रीट जर्नल, ब्लूमबर्ग, एसोसिएटेड प्रेस ने अपने सूत्रों से हासिल किये गए दस्तावेजों के आधार पर दी है। सबने एक ही बात कही है कि फेसबुक, भारत में कंटेंट की निगरानी और फ़िल्टरिंग में समान मानकों का इस्तेमाल नहीं करता है और झूठी सूचना, फेक न्यूज़ और भड़काऊ सामग्री को सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर जाने दिया जाता है। फेसबुक के कर्मचारी खुद भी अपनी कंपनी की नीयत और उसके हितों के बारे में संदेह प्रगट करते हैं। 2019 की शुरुआत से लेकर इस साल मार्च तक फेसबुक की अंदरूनी रिसर्च के दस्तावेजों से पता चलता है कि किस तरह फेसबुक भारत में घृणास्पद और भड़काऊ सामग्री को रोकने में असफल रहा है। दस्तावेजों से पता चलता है कि फेसबुक इस समस्या के बारे में कई बरसों से जानता रहा है। इस तथ्य से सवाल उठते हैं कि सब कुछ पता होने के बावजूद फेसबुक ने कोई कदम क्यों नहीं उठाये। फेसबुक के आन्तरिक शोधकर्ताओं ने बताया है कि दिसंबर 2019 के बाद के महीनों में जब देश में जगह जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे थे, उस समय फेसबुक पर भड़काऊ सामग्री पहले की अपेक्षा 300 गुना बढ़ गयी थी। ये जानकारी फेसबुक के शोधकर्ताओं ने जुलाई 2020 की एक रिपोर्ट में दी है।

टेस्ट अकाउंट ने दिखा दिखाई असलियत

रिपोर्ट में बताया गया है की फरवरी, 2019 में फेसबुक कंपनी ने भारत में ये जानने के लिए एक टेस्ट अकाउंट बनाया कि भारत में लोग जो सामग्री देखते हैं, उस पर कंपनी का अल्गोरिथ्म्स कैसे प्रभाव डालता है। इस टेस्ट अकाउंट से जो जानकारी निकल कर सामने आई उससे फेसबुक के लोग खुद हैरान रह गए। पता चला कि टेस्ट अकाउंट बनाने के तीन हफ्ते के भीतर नए यूजर को मिलने वाली सामग्री में फेक न्यूज़ और बेहद भड़काऊ तस्वीरों की भरमार हो गयी। सर कलम करने की फोटो, पाकिस्तान के खिलाफ भारत के हवाई हमले की बनावटी फोटो और हिंसा का उन्माद पैदा करने वाली फोटो – ये सब यूजर के सामने आने लगीं।

फेसबुक की व्हिसिलब्लोअर फ्रांसेस हुगेन ने जो ढेरों दस्तावेज रिलीज़ किये हैं, उनमें शामिल 46 पेज के एक रिसर्च नोट में ये सब जानकारियां शामिल हैं। इस रिसर्च नोट में एक स्टाफर ने लिखा है – बीते तीन हफ़्तों में मैंने लाशों की जितनी फोटो देखी हैं उतनी अपनी पूरी जिन्दगी में नहीं देखी होंगी।

21 वर्षीय युवती का प्रोफाइल इस्तेमाल किया गया

इस टेस्ट अकाउंट ने बता दिया है कि फेसबुक किस तरह अपने यूजर्स को कंटेंट परोसता है। ये परीक्षण ही इस तरह डिजाइन किया गया था कि कोई कंटेंट परोसने में फेसबुक की क्या भूमिका होती है। इस टेस्ट अकाउंट में जयपुर में रहने वाली एक 21 वर्षीय युवती का प्रोफाइल इस्तेमाल किया गया था। प्रोफाइल के अनुसार ये युवती मूल रूप से हैदराबाद की थी। इस यूजर ने सिर्फ उन पेजों और ग्रुप को फॉलो किया जो फेसबुक रिकमंड करता था या ऐसे रिकमंडेशन के जरिये आगे पाए जाते थे। रिसर्च नोट लिखने वाले स्टाफर के अनुसार टेस्ट अकाउंट का अनुभव किसी भयानक सपने जैसा था।

फेसबुक की पूर्व कर्मचारी फ्रांसेस हुगेन ने जो खुलासे किये हैं, उनसे तो पता चलता है कि अमेरिका में नुकसानदायक कंटेंट फैलाने में फेसबुक की क्या भूमिका है । लेकिन भारत में फेसबुक ने जो प्रयोग किया उससे साफ़ होता है कि कंपनी का ग्लोबल प्रभाव और भी बदतर हो सकता है। कंटेंट को फ़िल्टर करने के लिए फेसबुक जो पैसा खर्च करता है, वो ज्यादातर अमेरिका सरीखे इंग्लिश भाषाई मीडिया वाले देशों में किया जाता है। लेकिन फेसबुक की ग्रोथ भारत, ब्राजील और इंडोनेशिया जैसे देशों में ही है।

एक तर्क यह दिया जाता है कि विभिन्न भाषाओँ वाले इन देशों में एकदम बेसिक लेवल की फ़िल्टरिंग लागू करने के लिए भाषाई स्किल वाले लोगों से काम कराने में कंपनी को नाकों चने चबाने पड़े हैं। सबसे ज्यादा दिक्कत भारत में है। यहाँ 130 करोड़ की आबादी है और 22 प्रकार की अधिकारिक भाषाएँ हैं। इसके चलते फेसबुक ने कंटेंट की निगरानी का काम एक्सेंचर जैसी कंपनियों को आउटसोर्स कर रखा है। फेसबुक की एक प्रवक्ता के अनुसार फेसबुक ने हिंदी और बंगाली समेत कई भाषाओँ में घृणा पैदा करने वाले कंटेंट का पता लगाने के लिए टेक्नोलॉजी में काफी निवेश किया हुआ है, जिसके चलते ऐसी सामग्री अब मात्र 0.05 फीसदी रह गयी है।

यूजर ने उन कंटेंट को देखना शुरू किया जो फेसबुक उसे रिकमंड करता

फेसबुक ने टेस्ट अकाउंट 4 फरवरी, 2019 को बनाया था । जब रिसर्च टीम भारत के दौरे पर आई हुई थी। ये प्रयोग 11 फरवरी को असली रंग दिखाने लगा जब यूजर ने उन कंटेंट को देखना शुरू किया जो फेसबुक उसे रिकमंड करता था। इसमें अलग अलग लोगों की पोस्ट्स शामिल थीं। यूजर ने कुछ सामान्य से पेजों और ग्रुप्स को फॉलो करना शुरू किया। इस बीच 14 फरवरी को पुलवामा आतंकी हमला हुआ। इसके बाद यूजर के पास पाकिस्तान विरोधी सामग्री, हिंसा की तस्वीरें, घृणा पैदा करने वाले कंटेंट की बाढ़ आ गयी। तरह तरह की फेक न्यूज़ और फेक फोटो आने लगीं। ऐसे कंटेंट में काफी कुछ हिंदी भाषा में और काफी कुछ हिंदी और इंग्लिश का मिक्सचर था सो फेसबुक के मशीनी फ़िल्टरिंग तंत्र से यह बच कर निकलता रहा। अलग कोई इंसान भी फ़िल्टरिंग करता है, तो उसे तमाम भाषाओँ की जानकारी होना जरूरी है लेकिन ऐसा संभव नहीं था।



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Ragini Sinha

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