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किसान आंदोलन के 6 महीने पूरे, इन घटनाओं को कभी नहीं भूलेगा देश
Farmers Protest: कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के 6 महीने पूरे हो गए हैं। जिसे किसान काला दिवस के रूप में मनाएंगे।
Farmers Andolan: केंद्र की मोदी सरकार (Modi Government) द्वारा तीन नए कृषि कानून (New Farm Laws) पास किए जाने के बाद से ही किसानों में इन कानूनों को लेकर नाराजगी देखी जा रही है। जिसे वापस लेने की मांग के साथ किसान दिल्ली की अलग अलग सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। इस आंदोलन के छह महीने पूरे हो गए हैं। जिसे किसानों ने काला दिवस के तौर पर मनाने का एलान किया है।
कोरोना वायरस महामारी और भीषण ठंड के बाद भी किसानों ने अपना प्रदर्शन खत्म नहीं किया बल्कि अपनी मांगों को लेकर सीमाओं पर डटे रहे हैं। इन किसानों का साफ कहना है कि जब तक केंद्र की ओर से हमारी मांगों को पूरा नहीं कर दिया जाता है, तब तक हम यहां से नहीं हटने वाले हैं। दूसरी ओर दूसरी ओर केंद्र का कहना है कि कृषि कानूनों को निरस्त नहीं किया जाएगा, बल्कि इसमें कुछ बदलाव किए जा सकते हैं।
किसान आंदोलन के छह महीने पूरी होने के मौके पर किसान देशव्यापी प्रदर्शन करने की तैयारी में हैं। संयुक्त किसान मोर्चा (Samyukt Kisan Morcha) ने आंदोलन के 26 मई को देशव्यापी प्रदर्शन (Protest) करने का एलान किया है। जिसे अब तक 13 विपक्षी पार्टियों का समर्थन हासिल हुआ है। इन विपक्षी दलों ने एक संयुक्त बयान जारी करते हुए संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा होने वाले प्रदर्शन को समर्थन दिया है।
इन 13 विपक्षी पार्टियों का मिला है समर्थन
सोनिया गांधी (कांग्रेस)
एचडी देवेगौड़ा (जेडीएस)
शरद पवार (एनसीपी)
ममता बनर्जी (टीएमसी)
उद्धव ठाकरे (शिवसेना)
एमके स्टालिन (द्रमुक)
हेमंत सोरेन (झामुमो)
फारूक अब्दुल्ला (जेकेपीए)
अखिलेश यादव (एसपी)
तेजस्वी यादव (आरजेडी)
डी राजा (सीपीआई)
सीताराम येचुरी (सीपीएण)
आम आदमी पार्टी (आप)
26 नवंबर से जारी है किसानों का आंदोलन
गौरतलब है कि नए कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांगों को लेकर किसान संगठन 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। इस आंदोलन में कई रंग भी देखने को मिले। चाहे वो किसानों द्वारा भारत बंद हो या 26 जनवरी के दिन ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा, इनको कभी नहीं भूलाया जा सकता। प्रदर्शन को खत्म करने और कानून में बदलाव करने को लेकर सरकार और किसानों की जितनी भी वार्ताएं हुईं, सभी असफल रहीं।
26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के बाद से तो यह आंदोलन खत्म होते दिखाई दे रहा था, लेकिन 29 जनवरी को कुछ ऐसा हुआ, जिसे इस आंदोलन की न केवल दिशा बदल दी, बल्कि आंदोलन को तेजी देने का भी काम किया। दरअसल, जब किसान संगठन आंदोलन से अपना नाम वापस लेने लगे और किसान सीमाओं से अपने राज्य पलायन करने लगे तो 28 जनवरी को राकेश टिकैत के आंसू ने हजारों किसान को फिर से जुटाने का काम किया था।
छह महीने के आंदोलन में बड़ी बातें-
10 दिसंबर को एक्सप्रेसवे के 14 लेन को किसानों ने किया था बंद
15 दिसंबर को नरेश टिकैत की महापंचायत में किसानों की उमड़ी भीड़
26 जनवरी को पूरे दिल्ली में हुआ ट्रैक्टर परेड, कई ने गंवाई थी जान
28 जनवरी को राकेश टिकैत के आंसू ने आंदोलन को दी गति
18 अप्रैल को दिल्ली से गाजियाबाद जाने वाली लेन को पुलिस ने खोला
22 जनवरी के बाद से नहीं हुई वार्ता
आपको बता दें कि बीते कुछ महीनों से सरकार और किसान के बीच कोई वार्ता भी नहीं हुई है। इससे पहले जितनी भी दौर की बातचीत हुई हैं, वो बेनतीजा रहीं। केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच अब तक 11 दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन कृषि कानूनों पर गतिरोध खत्म नहीं हुआ है। सरकार व किसानों के बीच आखिरी दौर की बातचीत 22 जनवरी को हुई थी और उसके बाद से बातचीत का रास्ता बंद पड़ा हुआ है।
हालांकि अब संयुक्त किसान मोर्चा ने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर बातचीत फिर से शुरू करने की पहलकदमी करने की अपील की है। किसान संगठन की ओर से पत्र में कहा गया है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का प्रमुख होने के नाते बातचीत फिर से शुरू करने की जिम्मेदारी आप पर है।
किसानों ने धरने को किसानों की मांग पूरी करने के बाद खत्म कराने का प्रस्ताव केंद्र सरकार के सामने रखा है। उन्होंने कहा है कि यदि सरकार बातचीत करके हमारी समस्याओं का समाधान करे तो किसान अपने घर चले जाएंगे। इसके साथ ही किसानों ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अगले चरण में संघर्ष को और तेज कर दिया जाएगा।