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Farmers Suicide: किसानों की आत्महत्या के आंकड़े चौंकाने वाले, लेकिन किसान आंदोलन में जिक्र नहीं

Farmers Suicide In India: देश में सर्वाधिक किसानों की खुदकशी वाले राज्यों का इस आंदोलन में कोई प्रतिनिधित्व दिखायी नहीं देता है। न ही आंदोलनकारियों के मंच से जान देने वाले किसानों की मजबूरी की कभी चर्चा की गई।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Shreya
Published on: 28 July 2021 5:07 PM GMT
Farmers Suicide: किसानों की आत्महत्या के आंकड़े चौंकाने वाले, लेकिन किसान आंदोलन में जिक्र नहीं
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आत्महत्या (कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Farmers Suicide In India: नये कृषि कानूनों (New Farm Laws) के विरोध को लेकर उत्तर भारत के प्रमुख रूप से तीन राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड के किसानों के दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन (Farmers Protest) को आठ माह हो चुके हैं। ये आंदोलन किसानों का है, किसानों के लिए है। किसानों के मसलों को लेकर किये जाने का दावा है।

लेकिन राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो (National Crime Records Bureau) के आंकड़ों के मुताबिक, देश में सर्वाधिक किसानों की खुदकशी वाले राज्यों का इस आंदोलन में कोई प्रतिनिधित्व दिखायी नहीं देता है। न ही आंदोलनकारियों के मंच से जान देने वाले किसानों की मजबूरी की कभी चर्चा की गई। इसके अलावा इन राज्यों में किसान आंदोलनकारियों की पैठ भी दिखाई नहीं दी है।

महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा किसानों ने किया सुसाइड

एनसीआरबी (NCRB) की रिपोर्ट को आधार मानें तो किसानों ने सबसे ज्यादा आत्महत्या महाराष्ट्र में की है। इतना ही नहीं लगातार तीन सालों में महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं। महाराष्ट्र के बाद दूसरा नंबर कर्नाटक का है जहां सबसे ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है। यही दो ऐसे राज्य हैं जहां तीनों सालों में 11 हजार से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है।

महाराष्ट्र में 2017 में 2426, 2018 में 2239 और 2019 में 2680 किसानों ने आत्महत्या की तो कर्नाटक में 2017 में 1157, 2018 में 1365 और 2019 में 1331 किसानों की खुदकुशी के मामले आए।

किसान महापंचायत के दौरान राकेश टिकैत (फोटो साभार- ट्विटर)

आंदोलन में नहीं होता खुदकुशी करने वाले किसानों का जिक्र

चौंकाने वाली बात यह है कि महाराष्ट्र के आजाद मैदान से किसान नेताओं ने हुंकार भरी लेकिन उसमें महाराष्ट्र में खुदकुशी करने वाले किसानों का कहीं जिक्र नहीं था। इसी तरह किसान नेता राकेश टिकैत बेंगलुरू गए कर्नाटक बंद का आह्वान भी किया लेकिन उन्हें भी कर्नाटक में खुदकुशी करने वाले किसानों का दर्द नहीं दिखा।

इसके अलावा किसानों की आत्महत्या में तीसरे, चौथे और पांचवें नंबर की बात करें तो इसमें तेलंगाना मध्य प्रदेश और आन्ध्र प्रदेश के नाम आते हैं। साल 2019 में किसानों के आत्महत्या के मामले में तीसरे नंबर पर आंध्र प्रदेश, चौथे पर तेलंगाना और 5वें नंबर पर पंजाब रहा। आंध्र प्रदेश में 628, तेलंगाना में 491 और पंजाब में 239 किसानों ने आत्महत्या की जबकि 2018 में तेलंगाना में 900, आंध्र प्रदेश में 365 और मध्य प्रदेश 303 किसान जान देने पर मजबूर हुए। 2017 में किसानों के आत्महत्या के ममाले में तेलंगाना (846), मध्य प्रदेश (429) और आंध्र प्रदेश (375) का नाम शामिल रहा।

(कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

किसानों के दर्द का क्यों भूले आंदोलनकारी?

सवाल ये है कि लंबे समय से आंदोलन कर रहे किसान क्यों तेलंगाना के किसानों का दर्द भूल गए। क्यों उन्हें आंध्र प्रदेश के किसानों की याद नहीं आयी। दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों की बात करें तो पिछले तीन साल में हरियाणा में एक भी किसान को जान नहीं देनी पड़ी है। उत्तर प्रदेश में हर साल जान गंवाने वाले किसानों का औसत सौ के आसपास है।

हालांकि एनसीआरबी की रिपोर्ट में किसानों की आत्महत्या के कारणों पर कोई चर्चा नहीं है लेकिन सरकार इन आत्महत्या के कारणों में पारिवारिक समस्याएं, बीमारी, नशाखोरी, विवाह संबंधी मुद्दे, प्रेम संबंध, दिवालियापन या कर्ज में डूबना, बेरोजगारी और संपत्ति विवाद मानती है।

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Shreya

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