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Chandrashekhar Singh Jayanti: चंद्रशेखर सिंह जो वास्तव में चंद्रशेखर हो गए
Chandrashekhar Singh Jayanti: चंद्रशेखर का उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के एक राजपूत कृषक परिवार में जन्म हुआ था। उनमें गजब का साहस और धैर्य था जो बिरले लोगों में ही होता है।
Chandrashekhar Singh jayanti: भारतीय राजनीति के शलाका पुरुष चंद्रशेखर (Chandrashekhar Singh Jayanti) की आज जयंती है। चंद्रशेखर अपने आप में चंद्रशेखर थे यानी उनके जैसा दूसरा कोई नहीं। एक ऐसा व्यक्ति जिसने कोई पद नहीं लिया सिवाय प्रधानमंत्री पद के और पार्टी अध्यक्ष बनाए गए तो उनके नाम के साथ अध्यक्ष पद ऐसा जुड़ा कि उनके जानने वाले उन्हें अध्यक्षजी कहकर ही बुलाते रहे।
वैसे तो गूगल पर इंगलिश विकीपीडिया (Chandra shekhar Wikipedia) में चंद्रशेखर की जन्मतिथि 1 जुलाई दी हुई है जबकि हिन्दी विकीपीडिया में 17 दिसंबर लेकिन आज उनके पुत्र नीरज सिंह ने अपने पिता की 95 वीं जयंती पर उन्हें कोटि कोटि नमन किया है जिससे ये साबित होता है कि उनकी वास्तविक जन्मतिथि आज ही है। चंद्रशेखर का उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के एक राजपूत कृषक परिवार में जन्म हुआ था। उनमें गजब का साहस और धैर्य था जो बिरले लोगों में ही होता है तभी तो प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद ललकार कर कहा था कह देना राजीव गाँधी से मेरा नाम चंद्रशेखर सिंह है राजीव गाँधी नही जो बार-बार अपने फैसले बदलता रहूँ। ये चंद्रशेखर सिंह की ही खासियत थी कि ना कभी राज्यमंत्री बने, ना कभी लाल बती पाई सीधा प्रधानमंत्री बने, ना कभी सत्य कहने से घबराए और ना कभी अपने जमीर से समझौता किया।
चंद्रशेखर सिंह की जयंती पर उनसे जुड़ा एक संस्मरण ध्यान आ रहा है मेरे मित्र वरिष्ठ पत्रकार आलोक अवस्थी ने सुनाया था कि चंद्रशेखर सिंह के सम्मान में कानपुर में एक कवि सम्मेलन हो रहा था जिसमें तमाम नामी कवि और स्वयं चंद्रशेखर सिंह भी मौजूद थे इस कार्यक्रम में आलोक अवस्थी के पिताजी स्वर्गीय मगन अवस्थी भी उपस्थित थे। मगन अवस्थी की चंद्रशेखर जी से अच्छी मित्रता थी। कार्यक्रम के दौरान मंच संचालक ने अवस्थी जो को चंद्रशेखर पर कुछ बोलने के लिए आमंत्रित कर लिया, पहले तो उन्होंने विनम्रतापूर्वक मना किया लेकिन जब कोई नहीं माना और चंद्रशेखर ने स्वयं आँख से इशारा किया तो वह मंच पर गए और कविता पढ़नी शुरू की-चंद्रशेखर (शिव)... चंद्र (चंद्रमा) शेखर (मस्तक)... चंद्र (चंद्रमा) शेखर (मुकुट).... उन्होंने इसे दोहराया चंद्रशेखर.. चंद्र...शेखर... चंद्र... शेखर.... सब लोग देख रहे थे अब आगे क्या कहेंगे... चंद्रशेखर स्वयं गौर से देखने लगे तब तक उन्होंने एक बार फिर इसे दोहराकर अंतरा पूरा किया चंद्र शेखर चंद्र शेखर चंद्र से खर हो गया.... लोग तालियां बजाने लगे लेकिन चंद्रशेखर जी समझ गए उन्होंने अपना गाव तकिया निकालकर अवस्थी जी पर खींच कर मारा और अवस्थी जी हाथ जोड़कर विनीत भाव से खड़े हो गए चंद्रशेखर जी उठे और उन्हें खींचकर गले से लगा लिया।
सहज भाव के थे चंद्रशेखर सिंह
वर्तमान राजनीति में इतना तीखा व्यंग्य सुनकर उसे सहज भाव में लेने वाले मिलने मुश्किल हैं। आज के राजनेताओं के सामने चाटुकारों की फौज तो खड़ी हो जाती है लेकिन उनके सामने साफगोई से बोलने की हिम्मत लोगों में नहीं होती है। ये चंद्रशेखर सिंह का बड़प्पन था कि वह साहित्य को समझते थे और उसे सहज भाव से लेते थे।