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Fungal Infection: अमेरिका, यूके समेत कई देशों में मिल रहे फंगल संक्रमण के मामले

Fungal Infection: फंगस, फफूंदी या कवक हमारे चारों ओर हवा, मिट्टी, पौधों और पानी – यानी हर जगह रहते हैं। कुछ मानव शरीर में भी रहते हैं। सभी प्रकार की फंगस हानिकारक नहीं होती है।

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Newstrack NetworkPublished By Vidushi Mishra
Published on: 2 July 2021 10:49 AM GMT
Corona infection can show its effect again in UP
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कोरोना वायरस (सांकेतिक तस्वीर: सोशल मीडिया )

Fungal Infection: ब्लैक या तमाम अन्य तरह के फंगल संक्रमण के मामले सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना वायरस संक्रमण से गंभीर रूप से बीमार मरीजों में खतरनाक फंगल संक्रमण के मामले पूरी दुनिया में मिल रहे हैं।

फंगस, फफूंदी या कवक हमारे चारों ओर हवा, मिट्टी, पौधों और पानी – यानी हर जगह रहते हैं। कुछ मानव शरीर में भी रहते हैं। सभी प्रकार की फंगस हानिकारक नहीं होती है। कुछ छोटे छोटे फंगस हवा में छोटे बीजाणुओं या स्पोर्स के माध्यम से प्रजनन करते हैं। ये ही छोटे बीजाणु बहुत बार हमारे भीतर सांस लेने के सतह प्रवेश कर जाते हैं और हमें इन्फेक्टेड कर देते हैं।

कोरोना वायरस और दवाओं का असर

कोरोना महामारी आने पर डाक्टरों ने पाया कि इस वायरस से लड़ने के लिए सबसे अच्छा हथियार स्टेरॉयड हैं जो शरीर की इम्यूनिटी को दबा देते हैं।

कोरोना के क्रिटिकल मरीजों में अक्सर देखा गया था कि कोरोना वायरस के कारण इम्यूनिटी बेतहाशा बढ़ कर शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को बर्बाद करना शुरू कर देती है। स्टेरॉयड के अलावा डाक्टरों ने कोरोना के मरीजों को दूसरे बैक्टीरियल संक्रमण से बचाने के लिए ब्रॉड स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक देने शुरू कर दिए। इस तरह के इलाज का मकसद मरीज की जान बचाना था।

लेकिन बहुत से मरीजों में उलटा ही हुआ। वे कोरोना से तो बच गए लेकिन फंगस की चपेट में आ गए।

इसकी वजह सामान्य सी थी - कोरोना वायरस से बुरी तरह क्षतिग्रस्त फेफड़े, कमजोर हो चुका इम्यून सिस्टम और एंटीबायोटिक की वजह से अच्छे और बुरे, दोनों तरह के बैक्टीरिया का सफाया, इन सबके कॉम्बिनेशन ने गंभीर रूप से बीमार मरीजों को तरह तरह की फफूंदी के समक्ष एक्सपोज़ कर दिया। खतरनाक फफूंदियों के लिए ये एकदम सटीक मौक़ा और रास्ता था।

कोरोना महामारी आने से पहले भी भारत में बाकी देशों की तुलना में ब्लैक फंगस यानी म्यूकोरमाईकोसिस संक्रमण के केस 70 गुना ज्यादा पाए जाते रहे हैं। और कोरोना महामारी में स्टेरॉयड और एंटीबायोटिक के अंधाधुंध इस्तेमाल से नई आफत खड़ी कर दी।

नए तरह के फंगल संक्रमण

लन्दन के इम्पीरियल कॉलेज में रेस्पिटोरी फंगल संक्रमण के विशेषज्ञ डॉ डारियस आर्मस्ट्रांग का कहना है कि वायरस ने जितना ज्यादा फेफड़े को नुक्सान पहुंचाया उतना ही ज्यादा ख़तरा फंगल संक्रमण का बढ़ गया है।

चिंता की बात ये है कि अमेरिका से भारत तक ढेरों देशों में कोरोना के क्रिटिकल मरीजों में नए तरह के फंगल संक्रमण पाए गए हैं जिनमें अस्परगिलस (येलो फंगस) और कैंडिडा ओरिस विषाणुओं से पनपने वाले संक्रमण प्रमुख हैं। डॉ आर्मस्ट्रांग के अनुसार यूनाइटेड किंगडम में ही अस्पताल में भर्ती कोरोना के गंभीर मरीजों में से 10 से 15 फीसदी में अस्परगिलस संक्रमण पाया गया है।

मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी में संक्रकम रोग के प्रोफ़ेसर डेविड डेनिंग के अनुसार, म्यूकोरमाईसोसिस यानी ब्लैक फंगस के मरीज को पहचानना आसान होता है क्योंकि उनका चेहरा विकृत हो जाता है, आँख की रोशनी जाने लगती है।

लेकिन अस्परगिलस का डायग्नोसिस भी कठिन काम है क्योंकि इसमें फेफड़े में जमा लिक्विड का सैंपल लेना होता है। आईसीयू में भर्ती किसी कोरोना मरीज के फेफड़े से लिक्विड निकलने पर कोरोना वायरस भी साथ में निकल कर वातावरण में फैलने का ख़तरा रहता है।

क्यों होता है संक्रमण

फंगल संक्रमण तब होता है जब शरीर कमजोरी इम्यूनिटी की कमी के दौरान फंगस के संपर्क में आता है। अगर किसी का इम्यून सिस्टम कमजोर है और ऐसे में वह फंगस के संपर्क में आया तो फंगस का किसी न किसी रूप में संक्रमण होने की बहुत संभावना रहती है।

अगर आपका इम्यून सिस्टम उतना मजबूत नहीं होता कि आपको उस इन्फेक्शन से बचा सके. यह एक ऐसा इन्फेक्शन होता है जो शरीर पर कई प्रकार के फंफूद या कवक के कारण हो जाता है।

जिनमें डर्मेटोफाइट्स और यीस्ट प्रमुख होते हैं फंफूद मृत केराटिन में पनपता है और धीरे धीरे हमारे शरीर के ऐसे स्थानों में फ़ैल जाता है जहाँ थोड़ी नमी होती है जैसे कि पैर की उँगलियों के बीच का हिस्सा, एड़ी, नाखून, जननांग, स्तन इत्यादि।

फंगस से कई तरह के इन्फेक्शन

कई माइक्रोब्स की तरह, कुछ फंगस हमारे शरीर के लिए सहायक होते हैं और कुछ हानिकारक होते हैं। जब हानिकारक फंगस हमारे शरीर पर आक्रमण करते हैं, तो उन्हें मारना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि वे पर्यावरण में जीवित रह सकते हैं और उस व्यक्ति को फिर से इन्फेक्टेड कर सकते हैं। त्वचा और नाखून में इन्फेक्शन के लिए, आप सीधे इन्फेक्टेड जगह पर दवा लगा सकते हैं।

एक अनुमान के अनुसार दुनिया में एक अरब लोग शरीर में बाहर की तरफ के फंगल संक्रमण से पीड़ित हैं। फंगल संक्रमण के चलते हर साल करीब 15 लाख मौतें होतीं हैं। इन जानलेवा फंगल संक्रमण में शरीर के भीतर हो गए कैंडीडीयासिस (व्हाईट फंगस) और अस्परगिलिओसिस (येलो फंगस) संक्रमण सबसे प्रमुख हैं।

वैसे ये जानलेवा संक्रमण उन लोगों में सबसे ज्यादा पाए जाते हैं जिनका इम्यूनिटी सिस्टम बेहद कमजोर है, जैसे कि एचआईवी-एड्स से पीड़ित लोग, कैंसर के मरीज और ऐसे लोग जिनकी कीमोथेरेपी चल रही है। फंगस से कई तरह के इन्फेक्शन हो सकते हैं। एक अनुमान है कि फंगस 300 प्रकार की बीमारियाँ कर सकता है।

बहरहाल, अब वैज्ञानिकों का कहना है कि अस्पताल में भर्तीम खासकर कोरोना के मरीजों के इलाज में एंटीफंगल ट्रीटमेंट पहले से ही शुरू करना चाहिए ताकि आगे चल कर किसी संभावित समस्या से बचा जा सके। फिलहाल, इस दिशा में रिसर्च जारी हैं।

Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

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