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Mahatma Gandhi Ke Mantra: बापू का दिया वो मंत्र, जो आज बदल सकता है आपकी जिंदगी

Gandhi Jayanti: भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की इस साल 152वीं जयंती मनाई जा रही है। महात्मा गांधी को इसलिए याद किया जाता है क्योंकि उन्होंने 'अहिंसा' के मार्ग पर चलते हुए अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर किया था।

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Written By amanPublished By Shreya
Published on: 2 Oct 2021 4:11 AM GMT
Mahatma Gandhi Ke Mantra: बापू का दिया वो मंत्र, जो आज बदल सकता है आपकी जिंदगी
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महात्मा गांधी (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

Gandhi Jayanti: भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi Ki Jayanti) की इस साल 152वीं जयंती मनाई जा रही है। भारत सहित दुनिया भर में आज (2 अक्टूबर) महात्मा गांधी का जन्म दिवस (Mahatma Gandhi Ka Janam Din) मनाया जा रहा है। महात्मा गांधी को 'बापू' भी कहते हैं। उनका जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात (Gujarat) के पोरबंदर जिले (Porbandar) में हुआ था। महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को इसलिए याद किया जाता है क्योंकि उन्होंने 'अहिंसा' के मार्ग पर चलते हुए अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर किया था।

महात्मा गांधी के तीन मुख्य सिद्धांत (Mahatma Gandhi Ke Siddhant In Hindi) थे, जिनमें पहला, सामाजिक बुराइयों को दूर करना, दूसरा जाति-धर्म से ऊपर उठकर सामूहिक प्रार्थना करना और तीसरा चरखा, जो आगे चलकर आत्मसम्मान और एकता का प्रतीक बना। बापू के विचार (Mahatma Gandhi Ke Vichar) न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के हर वर्ग के लोगों का मार्गदर्शन करता आया है। तो आज गांधी जयंती के मौके पर हम गांधी के उन्हीं मन्त्रों (Mahatma Gandhi Ke Mantra) को याद करेंगे जो किसी भी व्यक्ति के जीवन को बदलने की ताकत रखता है। इन विचारों को गांधी का मूलमंत्र भी कहा जाता है।

आज भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया महात्मा गांधी के अविस्मरणीय योगदान को जानती है। भारत के स्वतंत्रता की लड़ाई (Swatantrata Ki Ladai) में उनके योगदान ने उन्हें 'राष्ट्रपिता' (Rashtrapita) का सम्मान दिलाया। गांधी जीवन भर आम भारतवासियों के नायक माने जाते रहे, लेकिन उनके विचार आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने कल थे। अहिंसा के मार्ग पर चलकर देश को आजादी दिलाने वाले गांधी ने अपने विचारों से पूरी दुनिया को प्रभावित किया। गांधी ने अपने इन्हीं अनुभवों पर कई किताबें लिखीं।

महात्मा गांधी (फाइल फोटो साभार- सोशल मीडिया)

व्यक्ति को गुणों के आधार पर पहचानें

बापू अक्सर ही कहा कहते थे, कि 'प्रसन्नता एक खुशबू की तरह होती है, जब यह दूसरों को दी जाती है तो इसकी कुछ बूंदें स्वतः आप पर भी पड़ती है।' वह कहते थे कि किसी व्यक्ति को उसके गुणों के आधार पर पहचाना जाना चाहिए, न कि कपड़ों के आधार पर। उनका यह भी मानना था कि दूसरों की प्रगति के लिए सकारात्मकता की राह खोलने की खातिर जीवन में 'क्षमा' के मंत्र को अपनाना चाहिए। गांधी के ये विचार आज भी अप्रासंगिक हैं। आज की युवा पीढ़ी में भी एक बड़ा तबका इन सिद्धांतों को मानता है।

गांधी ने बताई समय की महत्ता

गांधी अहिंसा के पुजारी थे। उन्होंने सदैव हिंसा से दूरी बरतने की सलाह दी। बापू कहते थे, अगर 'आंख के बदले आंख' की भावना अपनाई जाए, तो एक दिन पूरी दुनिया अंधी हो जाएगी। उन्होंने लोगों को समय बचाने और इसके बेहतर इस्तेमाल के लिए भी प्रेरित किया। बापू मानते थे कि जो लोग समय की बचत करते हैं, वह धन की भी बचत करते हैं। इस प्रकार उनके द्वारा बचाया गया धन, कमाए गए धन के बराबर अहमियत रखता है। गांधी के तब दिए ये विचार आज मैनेजमेंट के विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है।

'महत्वपूर्ण यह है, कि तुम काम करते रहो..'

महात्मा गांधी कहा करते थे, 'जो काम तुम करते हो, हो सकता है कि वह कम महत्व वाला हो। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि तुम काम करते रहो।' बापू हर दिन, हर पल कुछ नया सीखते रहने की सलाह देते थे। आज के परिदृश्य में हम गौर करें तो गांधी के ये विचार कितने अहम थे। गांधी कहा करते थे, 'तुम अपने जीवन को ऐसे जियो, जैसे कल तुम्हारी मृत्यु होने वाली हो और ऐसे सीखो जैसे तुम हमेशा जिंदा रहने वाले हो।' उनके इस मूलमंत्र में कितनी गहराई है, जिसे समझना मुश्किल नहीं है।

गांधी (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

कभी कमजोरी का फायदा मत उठाएं

महात्मा गांधी के विचारों की उनके विरोधी भी तारीफ करते थे। यही उनके विचारों की शक्ति थी। इसे एक छोटी सी घटना से समझा जा सकता है। एक बार महात्मा गांधी और सरोजिनी नायडू साथ-साथ बैडमिंटन खेल रहे थे। तभी सरोजिनी नायडू के दाएं हाथ में लगी चोट पर गांधीजी की नजर गई। गांधी जी ने झट से बैडमिंटन का रैकेट अपने बाएं हाथ में लेकर खेलना शुरू कर दिया।

कुछ देर बाद जब सरोजिनी नायडू की नजर इस ओर गई तो उन्होंने मजाक करते हुए कहा कि आपको तो यह भी नहीं मालूम कि रैकेट किस हाथ में पकड़ा जाता है। इस पर गांधी का जवाब था, कि आप खुद चोट के कारण रैकेट बाएं हाथ से पकड़े हुए हैं, मुझे भला आपकी इस कमजोरी का फायदा क्यों उठाना चाहिए ? इस कहानी से गांधी के विचारों के उस मर्म को समझा जा सकता है, जो वो खासकर युवाओं को लेकर कहते रहे थे।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

प्यार से बोले हर शब्द का होता है जादुई असर

गांधी की भाषा बेहद सौम्य थी। लेकिन उतनी ही असरकारक भी। गांधी कहते थे कि आप किसी भी बात को प्यार से कहिए और फिर उसका जादुई असर देखिए। उनका मानना था, प्यार से कही बात ज्यादा असर छोड़ती है बनिस्बत तेज या गुस्से में कहे से। इस बात को एक कहानी से समझा जा सकता है। एक बार बापू जयपुर में एक दलित बस्ती और मेमन में सभा को संबोधित कर रहे थे।

बता दें, कि मेमन काठियावाड़ी मुस्लिम की एक विशेष जाति होती है। तब इस जाति के बच्चे काफी बिगड़ैल माने जाते थे। गांधी ने जैसे ही अपना भाषण शुरू किया, 12 साल का एक बच्चा मुंह में बीड़ी दबाए भीड़ को चीरता हुआ आगे आया। गांधी जी की नजर उस बच्चे पर गई। उसे देखकर उन्होंने अपना भाषण रोक दिया। बच्चे से कहा, 'इतनी छोटी उम्र में तुम बीड़ी पी रहे हो। इसे अभी फेंको।' गांधी ने बच्चे से ये बात प्यार से कही थी। इन शब्दों का जादुई असर हुआ। बच्चे ने मुंह से बीड़ी निकालकर फेंक दी। वह अन्य श्रोताओं के बीच शांति से बैठकर बापू के भाषण ध्यान से सुनने लगा।ल

जब किसान बापू के पैरों पर गिर पड़ा

महात्मा गांधी के विचारों के संदर्भ में हजारों कहानियां हैं, जो ज्ञानवर्धक हैं। ऐसी ही घटना का जिक्र आगे है। ये बात तब की है जब बापू बिहार के चम्पारण गए थे। गांधी एक एक बार ट्रेन से चंपारण से बेतिया जा रहे थे। कोच में भीड़ नहीं थी। इसलिए गांधी तृतीय श्रेणी के कोच में एक बर्थ पर लेट गए। ट्रेन जब अगले स्टेशन पर रुकी तो एक किसान चढ़ा। एक बर्थ पर गांधी को सोता देख वह गालियां देने लगा। उसने गांधी से बर्थ से उठने को कहा। बोला, 'ऐसा लगता है कि बर्थ तुम्हारे बाप की है'।

इस पर गांधी बिना कुछ कहे उठ गए और एक किनारे नीचे बैठ गए। अब अपनी बर्थ पर बैठकर किसान खुश था। खुशी में वह गाने लगा, 'धन, धन गांधीजी महाराज, गांधी जी दुखों को दूर कर रहे हैं।' दरअसल, वह किसान गांधी को ही देखने बेतिया जा रहा था। उसने इससे पहले उन्हें कभी नहीं देखा था। इसलिए वह उन्हें ट्रेन में पहचान नहीं पाया। ट्रेन बेतिया पहुंची। स्टेशन पर जब उसने हजारों लोगों को गांधीजी का स्वागत करते देखा तो उसे सच्चाई समझ आई और शर्मिंदगी का एहसास हुआ। तब वह महात्मा गांधी के पैरों पर गिर पड़ा। उनसे माफी मांगने लगा। गांधी ने उसे उठाकर गले से लगा लिया।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

सुखी जीवन के लिए 'ना' भी बोलें

गांधी के विचारों को कहानी के माध्यम से समझना थोड़ा आसान हो जाता है। इसीलिए अगली कहानी तब की है जब गांधी कठोर कारावास की सजा काट रहे थे। एक दिन अपने सारे काम खत्म कर वह रोज की भांति किताब पढ़ रहे थे। इसी दौरान जेल का संतरी दौड़ता हुआ आया। बोला, कि जेलर उसी तरफ जेल का निरीक्षण करने आ रहा है। इसलिए वह (बापू) उसे कुछ काम करते हुए दिखें। महात्मा गांधी ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया।

उन्होंने कहा कि इससे बेहतर होगा कि वह उन्हें ऐसी जगह भेज दें जहां इतना काम हो कि समय से पहले न खत्म हो। इस कहानी का तात्पर्य ये है कि गांधी कहते थे कि सुखी जीवन के लिए 'ना' बोलना आना चाहिए। अगर कोई 'ना' बोलने से कतराता या परहेज करता है तो उसे कष्टों का सामना करना पड़ सकता है। भले ही ना सुनकर सामने वाले को कुछ देर का कष्ट हो या दुःख पहुंचे।

असहाय का लाभ नहीं उठाएं

महात्मा गांधी असहाय लोगों की मदद के लिए हमेशा आगे आए। उनकी लोगों से भी अपील होती थी कि वो असहाय की मदद करें। यह बात द्वितीय विश्वयुद्ध के समय की है। तब हमारे देश के तमाम नेताओं का मत था कि ब्रिटेन की गुलामी से भारत को आजाद कराने का यही सही समय है। भारतीयों के लिए ऐसा स्वर्णिम अवसर फिर शायद ना आए। उन सबका मानना था कि विश्वयुद्ध में उलझे होने की वजह से ब्रिटिश सरकार आंदोलनों को झेल नहीं पाएगी और हारकर भारत को आजादी देनी ही होगी।

यह प्रस्ताव महात्मा गांधी के सामने लाया गया। तब उन्होंने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि असहाय ब्रिटिश सरकार का लाभ नहीं उठाना चाहिए। हालांकि, गांधी ने इसी समय ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया मगर वह सामूहिक न होकर व्यक्तिगत आंदोलन था। यहां महात्मा गाँधी के विचारों से कईयों की मतभिन्नता हो सकती है, जैसा तब भी था लेकिन इससे दूरगामी सोच को समझा जा सकता है।

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