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Hazari Prasad Dwivedi birth Anniversary: हिन्दी जगत के आचार्य थे हजारी प्रसाद द्विवेदी

हजारी प्रसाद द्विवेदी को हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत और बांग्ला भाषाओं पर विशेष अधिकार था...

Ambesh Bajpai
Written By Ambesh BajpaiPublished By Ragini Sinha
Published on: 19 Aug 2021 7:05 AM IST
Hazari Prasad Dwivedi birth Anniversary
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हजारी प्रसाद द्विवेदी का आज बर्थ एनिवर्सरी है (फाइल फोटो)

Prasad Dwivedi birth Anniversary

हजारी प्रसाद द्विवेदी एक ऐसा नाम है, जिसे हिन्दी जगत का सूर्य कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी। एक लेखक, आलोचक, निबंधकार, उपन्यासकार और गुरु के रुप में वह हिन्दी सेवियों के लिए प्रातः स्मरणीय हैं। वह एक ऐसे महापुरुष रहे जिसका हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत और बांग्ला भाषाओं पर विशेष अधिकार था। इसके अलावा भक्तिकालीन साहित्य की भी गहरी समझ थी। वह हिन्दी जगत के आचार्य थे।

बलिया के थी हजारी प्रसाद द्विवेदी

हिन्दी जगत के लिए आज का दिन महत्वपूर्ण है। आज आचार्य द्विवेदी की जयंती है। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के इस लाल का जन्म 19 अगस्त 1907 में ग्राम ओझवलिया जिसे आरत दुबे का छपरा के नाम से भी जाना जाता है में हुआ था। इनका बचपन का नाम वैद्यनाथ था। इनके पिता अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। माता का नाम ज्योतिष्मती थी और इनका परिवार ज्योतिष के ज्ञान के लिए प्रसिद्ध था। द्विवेदी जी की आरंभिक पढ़ाई गांव के स्कूल में। 1920 में जिले के बसरिकापुर से मिडिल स्कूल से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने के बाद द्विवेदी ने गांव के पास ही पाराशर ब्रह्मचर्य आश्रम में संस्कृत अध्ययन आरंभ किया इसके बाद कमच्छा वाराणसी की रणवीर संस्कृत पाठशाला से प्रवेशिका परीक्षा उत्तीर्ण की। उस दौर में जल्दी विवाह हो जाया करता था इसलिए हाईस्कूल पास करते ही भगवती देवी से इनका विवाह हो गया। इसके बाद द्विवेदी जी ने शास्त्री व 1930 में ज्योतिष में आचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण की।

आचार्य द्विवेदी ने इसी वर्ष शांति निकेतन में हिन्दी अध्यापन का कार्य आरंभ कर दिया। यहीं से आचार्य द्विवेदी के लेखकीय व्यक्तित्व का निर्माण हुआ। बीस साल तक वह शांति निकेतन में रहे। इसके उपरांत वह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रमुख के रूप में आ गए। हालांकि इसी दौरान 1957 में आचार्य द्विवेदी को पद्मभूषण सम्मान भी मिला लेकिन प्रतिद्वंद्वियों की साजिश के चलते 1960 में इन्हें विश्वविद्यालय से हटा दिया गया। लेकिन सात साल बाद वह पुनः हिन्दी विभागाध्यक्ष के रूप में लौटे। वह इसके बाद हिन्दी ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष भी रहे। 4 फरवरी 1979 को को ब्रेन ट्यूमर से उनका निधन हो गया।

आचार्य द्विवेदी की रचनाओं में आलोचनात्मक ग्रंथों में सूर साहित्य (1936), हिन्दीक साहित्यण की भूमिका (1940), प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद (1952), कबीर (1942), नाथ संप्रदाय (1950), हिन्दीश साहित्यण का आदिकाल (1952), आधुनिक हिन्दील साहित्यभ पर विचार (1949), साहित्य6 का मर्म (1949), मेघदूत: एक पुरानी कहानी (1957), लालित्यह तत्त्व (1962), साहित्य9 सहचर (1965), कालिदास की लालित्यि योजना (1965), मध्य(कालीन बोध का स्वररूप (1970), हिन्दी साहित्य का उद्भव और विकास (1952), मृत्युंजय रवीन्द्र (1970), सहज साधना (1963) प्रमुख हैं।

निबन्ध संग्रह में अशोक के फूल (1948), कल्पऔलता (1951), विचार और वितर्क (1954) {1949}, विचार-प्रवाह (1959), कुटज (1964), आलोक पर्व (1973) साहित्य अकादमी पुरुस्कार, विश के दन्त, कल्पतरु, गतिशील चिंतन, साहित्य सहचर, नाखून क्यों बढ़ते हैं प्रमुख हैं। क्यू

उपन्यासः बाणभट्ट की आत्म4कथा (1946), चारु चंद्रलेख(1963), पुनर्नवा(1973) व अनामदास का पोथा(1976) इसके अलावा संक्षिप्ता पृथ्वीनराज रासो (1957), संदेश रासक (1960), सिक्ख गुरुओं का पुण्य स्मरण (1979) व महापुरुषों का स्मंरण (1977) प्रमुख हैं। आचार्य द्विवेदी का संपूर्ण साहित्य 12 खंडों मे प्रकाशित हुआ है।



Ragini Sinha

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