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हरिशंकर परसाई ऐसे व्यंग्यकार , जो आज भी कहलाते हैं समय से परे लेखक

हिन्दी जगत में हरिशंकर परसाई एक बड़ा नाम है, वह आधुनिक हिंदी साहित्य के विख्यात व्यंग्यकार थे और अपनी सरल और सीधी शैली के लिए जाने जाते हैं।

Akhilesh Tiwari
Written By Akhilesh TiwariPublished By Deepak Kumar
Published on: 21 Aug 2021 3:59 PM IST (Updated on: 21 Aug 2021 4:15 PM IST)
Hindi writer Harishankar Parsai
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हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई।(Social media) 

हिन्दी जगत में हरिशंकर परसाई एक बड़ा नाम है, वह आधुनिक हिंदी साहित्य के विख्यात व्यंग्यकार थे और अपनी सरल और सीधी शैली के लिए जाने जाते हैं। मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में इटारसी के पास जमानी गांव में 22 अगस्त 1922 को जन्मे हरिशंकर ने नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए किया था। कुछ समय नौकरी के साथ लेखन कार्य किया लेकिन बाद में लेखन को पूर्णकालिक करियर के रूप में अपना लिया। अपने व्यंग्यों के चलते एक समय परसाईं, शरद जोशी और श्रीलाल शुक्ल की त्रिवेणी मशहूर रही।

सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार और पद्मश्री डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी का कहना है कि परसाईं को रचना को जितनी बार पढ़ेंगे हर बार कुछ नया पाएंगे। कुछ नया सीखेंगे और नया सोचेंगे। ऐसा क्या था परसाईं में जो उनके समकालीनों में नहीं था। विद्वानों का मानना है कि परसाईं समय से परे के लेखक हैं। जिस तरह कालिदास, वाल्मीकि, तुलसी, प्रेमचंद हैं उसी तरह परसाईं भी हैं। जो आज भी प्रासंगिक हैं और सौ साल बाद भी रहेंगे।

व्यंग्यकार डॉ. प्रेम जनमेजय का मानना रहा कि हरिशंकर परसाई का लेखन सागर की तरह है। उसमें अपने समय को देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि जीवन में समय, दुख, प्रेम और त्रासदी मनुष्य के शाश्वत साथी हैं।

परसाई की प्रमुख कृतियों में कहानी-संग्रह- हंसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, उपन्याथस- रानी नागफनी की कहानी तट की खोज, निबन्घय-संग्रह- तब की बात और थी, भूत के पांव पीछे, बेईमान की परत, पगडण्डियों का जमाना, सदाचार ताबीज, शिकायत मुझे भी है, और अन्त में, तिरछी रेखाएं, ठिठुरता गणतन्त्र , विकलांग श्रद्धा का दौर, मेरी श्रेष्ठत वंयग्यश रचनाएं आदि शामिल हैं।

परसाई का निधन 15 अगस्त 1995 को जबलपुर में हुआ था। द हिंदू के अनुसार किअपनी मृत्यु के समय तक, परसाई ने हिंदी में व्यंग्य लेखन की कला में क्रांति ला दी थी। एक नजर परसाईं को दो लघु व्यंग्यों पर-

नई धारा

उस दिन एक कहानीकार मिले। कहने ' लगे, ' बिल्कुल नई कहानी लिखी है, बिल्कुल नई शैली, नया विचार, नई धारा। ' हमने कहा ' क्या शीर्षक है? ''

वे बोले, ' चांद सितारे अजगर सांप बिच्छू झील। '

चंदे का डर

एक छोटी-सी समिति की बैठक बुलाने की योजना चल रही थी। एक सज्जन थे जो समिति के सदस्य थे, पर काम कुछ करते नहीं गड़बड़ पैदा करते थे और कोरी वाहवाही चाहते । वे लंबा भाषण देते थे।

वे समिति की बैठक में नहीं आवें ऐसा कुछ लोग करना चाहते थे, पर वे तो बिना बुलाए पहुंचने वाले थे। फिर यहां तो उनको निमंत्रण भेजा ही जाता, क्योंकि वे सदस्य थे।

एक व्यक्ति बोला, ' एक तरकीब है। सांप मरे न लाठी टूटे। समिति की बैठक की सूचना ' नीचे यह लिख दिया जाए कि बैठक में बाढ़-पीड़ितों के लिए धन-संग्रह भी किया जाएगा। वे इतने उच्चकोटि के कंजूस हैं कि जहां चंदे वगैरह की आशंका होती है, वे नहीं पहुंचते। '



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Deepak Kumar

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