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New Delhi: बलूचिस्तान कैसे बन गया पाकिस्तान के लिये एक चुनौती? जानें इसके पीछे की पूरी कहानी
New Delhi: बलूचिस्तान के हजारों बेनुनाह लोगों को जान से मार देने वाले पाकिस्तान हुकूमत को अब भारत का डर सताने लगा है। पाकिस्तान को अहसास हो रहा होगा कि कश्मीर के अंदर जो उसने किया है, उसका अंजाम उसे भी भुगतना पड़ सकता है।
New Delhi: बलूचिस्तान के हजारों बेनुनाह लोगों को जान से मार देने वाले पाकिस्तान हुकूमत को अब भारत का डर सताने लगा है। पाकिस्तान को अहसास हो रहा होगा कि कश्मीर के अंदर जो उसने किया है, उसका अंजाम उसे भी भुगतना पड़ सकता है। बलूचिस्तान में अब इमरान खान को भारत का खौफ नजर आ रहा है। लिहाजा इसी जुलाई महीने में पाकिस्तान सरकार ने बलूच क्रांतिकारियों से बात करने की घोषणा की है। इसी बीच भारत कैसे बलूचिस्तान का साथ देकर पाकिस्तान को ग्लोबली काउंटर कर सकता है।
भारत की तुलना विभिन्न पहलुओं में पकिस्तान से-
भारत की स्वतंत्रता से पहले और स्वतंत्रता के बाद जितने भी युद्ध पाकिस्तान से हुए हैं, उसमें पाकिस्तान को हमेशा ही हार का सामना करना पड़ा है। चाहे वह 1947 में कश्मीर के लिए लड़ा गया युद्व हो, चाहे 1965 में ऑपरेशन मुक्ति हो या 1999 का कारगिल युद्ध। इन सब हारों को देखते हुए पाकिस्तान यह मान चुके है कि वह आर्थिक और सैन्य शक्ति में भारत से कमजोर है।पर 1971 में बांग्लादेश मुक्ति के लिए किये गए युद्ध मे पाकिस्तान को सबसे अधिक नुकसान हुआ।इन सब के बाद पाकिस्तान ने अपनी रणनीति को बदला और अब वह गुप्त युद्ध करने लगा।जिसकी वजह से भारत की अखंडता को हमेशा चोट पहुंचती है।गुप्त युद्ध करने के लिए पाकिस्तान की सबसे पंसदीदा जगह कश्मीर थी ।जहाँ पर पाकिस्तान विद्रोहियों से सीमाओं में घुसपैठ कराकर भारत को नुकसान पहुँचाता आया है।इसके उदाहरण 2008 में मुम्बई में हुआ ताज होटल पर हमला, उरी हमला,पुलवामा हमला इत्यादि है।भारत ने कई बार अतंर्राष्ट्रीय मंचो पर पाकिस्तान को घेरा पर पाकिस्तान हमेशा अपने गुनाह से पर्दा झाड़ता रहा।आलम अब ये है कि पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं जैसे FATF द्वारा ग्रे लिस्ट में शामिल कर दिया है।पाकिस्तान आतंकियों के लिए सुरक्षित जगह माना जाता है।
बलूचिस्तान में 2003 से लेकर अब तक हुए आत्मघाती हमलों में 800 से ज्यादा लोगों की जानें जा चुकी हैं और 1600 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। बलूचिस्तान के भीतर पंथ को लेकर भी संघर्ष बढ़ गए हैं। 2009 के बाद से पंथों के संघर्ष में 760 से ज्यादा लोग मारे गए।
बलूचिस्तान महत्वपूर्ण क्यों है-
प्राकृतिक संपदा के मामले में समृद्ध - बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा और सबसे कम आबादी वाला प्रांत है। प्राकृतिक गैस भंडार और खनिजों के मामले में भी यह बेहद समृद्ध है। हालांकि, इसका फायदा बलूचिस्तान को न मिलकर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत को मिलता है। बलूचिस्तान में आए दिन हिंसा की घटनाएं होती रहती हैं। वहीं बलोच आंदोलनकारियों का कहना है कि सेना द्वारा स्थानीय लोगों के अपहरण, प्रताड़ना और हत्याओं की वजह से लोगों के मन में पाकिस्तान विरोधी भावनाएं और प्रबल हो गई हैं।
चीन की सीपीईसी परियोजना से भी बढ़ रहा विद्रोह - बलूचिस्तान 60 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) का भी सबसे अहम हिस्सा है। इस इलाके में ग्वादर बंदरगाह के साथ-साथ कई सड़कों का जाल भी बिछाया जा रहा है। बलूचिस्तान में बढ़ते संघर्ष में चीन की सीपीईसी परियोजना की भी भूमिका है। बलूचिस्तान की आजादी की मांग कर रहे संगठन लंबे समय से स्थानीय संसाधनों पर अपने हक की मांग करते रहे हैं।
इतिहास में बलूचिस्तान-
बलूच लोगों में पाकिस्तान के लिए तल्खी का भाव इतिहास से ही है। भारत की स्वतंत्रता से पहले बलूचिस्तान 4 प्रान्तों ( कलात, लस्बेला, खारन और मकरान ) में बंटा हुआ था। पर स्वतंत्रता के तीन दिन पहले ही जिन्ना ने बलूचिस्तान को साढ़े चार भागों में बांट दिया और कलात को आज़ाद घोषित करते हुए उसे पाकिस्तान में शामिल कर लिया। यह बात बलूचिस्तान के खानों को पसंद नहीं आई और तबसे दोनों के बीच विद्रोह शुरू हुआ।
1 अप्रैल 1948 को पाकिस्तान की सेना ने बलूचिस्तान को अपने कब्ज़े में ले लिया। लेकिन कई अलगाववादी आज भी बलूचिस्तान कॉरपोरेट का विरोध करते हैं और समय-समय पर कई मांग उठाते हैं। इसके अलावा मानव अधिकार के लिए हो रही हिंसा के लिए भी पाकिस्तान को जिम्मेदार मानते हैं। 1948 के बाद से आज तक भी मानव अधिकार उल्लंघन की खबरें मीडिया में आती रहीं हैं। कई विशेषज्ञों ने बलूचिस्तान को लैंड ऑफ दिसपियर कहा है।
यहां संसाधनों से धनी होने के बाद भी इसका लाभ बलूचियों को नहीं मिलता है। गैस उत्पादन पाकिस्तान का 35 से 40 फीसदी यहीं होता है, पर बलूच लोग इसका सिर्फ 17 फीसदी ही उपयोग कर सकते हैं। इसके अलावा चीन-पाक कॉरिडोर में बना ग्वादर पोर्ट जो कि दुनिया की दृष्टि से मुख्य भूमिका में है। इसके लिए होने वाले विकास कार्यों के लिए भी पाकिस्तान और चीन बलूच लोगों को रोजगार नहीं देते हैं। हालांकि, पाकिस्तान और बलूचिस्तान में बहुलता में अपनाया जाने वाला धर्म इस्लाम ही है। पर अनेक विवधता के कारण पाकिस्तान और बलूचिस्तान एक-दूसरे को अपना नहीं पाते। बलूचिस्तान में कुछ कुर्दिश लोग हैं जो मध्यपूर्वी राष्ट्रों से समानता रखते हैं।
इसके अलावा पाकिस्तान की सभ्यता, बोली, पहनावा आदि बहुत सी बातें बलूचिस्तान से बहुत अलग हैं। बांग्लादेश में अलगाववाद के कारण ही युद्ध हुआ था। इन्हीं सब विवधता के कारण बलूचिस्तान खुद को अलग समझते हैं और उनमें एकता भी दिखाई देती है।
पाकिस्तान को घेरने में भारत की कूटनीति का महत्व -
भारत पर पाकिस्तान हमेशा यह आरोप लगाते आया है कि भारत बलूचियों की मदद करता है। पर भारत ने इस बात को हमेशा मना किया है। हालांकि 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लाल किले से दिए गए भाषण ने सारी दुनिया में हलचल मचा दी। उस भाषण में मोदी ने गिलगिट, पीओके वासी, बलूचिस्तान के लोगों का आभार व्यक्त किया। इस भाषण के बाद पाक को यह भरोसा हो गया कि भारत कभी भी उसे घेरने के लिए बलूचिस्तान कार्ड खेल सकता है।
भारत सीधे तौर पर पाकिस्तान सेना से आमना-सामना नहीं कर सकता है क्योंकि दोनों ही परमाणु प्रबद्ध राष्ट्र हैं। अप्रत्यक्ष रूप से बलूचियों से बात करके पाकिस्तान पर दबाव बनाया जा सकता है। दूसरे देशों में रह रहे बलूब्हियों की मदद करके विदेशी सरकारों का साथ लिया जा सकता है। जो बाद में पाकिस्तान विरोधी वातावरण बनाने में सहायक होगा।
बलूचियों के विद्रोही समूह को भारत हथियार, सैन्य समान, रक्षा के समान पहुंचाकर उसे पाकिस्तान के सामने मजबूती से लड़ने में मदद कर सकेगा। पाकिस्तान हमेशा वीटो पावर का इस्तेमाल करके अंतरराष्ट्रीय समूहों में खुद को बचा लेता है। अतः उस पर अंतरराष्ट्रीय दबाव नहीं बनाया जा सकता है। भारत अपने देश में हो रही अखण्डता को बचाने के लिए CPEC का मुद्दा उठा सकता है।
भारत की मुश्किलें-
भारत की सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि भारत गुड टेरेरिसम और बैड टेरेरिसम को नहीं मानता। तो यदि भारत बलूचिस्तान का साथ देता है तो विदेशों में भारत की किरकिरी हो सकती है। इसके अलावा बलूचिस्तान के विद्रोही काफी अलग-थलग हैं, तो उन्हें सबसे पहले एक साथ लाना और फिर उसे पाकिस्तान के खिलाफ इस्तेमाल करना बड़ी चुनौती है।
अब चूंकि तालिबान का उदय फिर से हो चुका है तो अफगान के रास्ते तालिबान बलूचियों पर भी अक्रामक होंगे। इससे पहले भारत और अफगानिस्तान के संबंध अच्छे थे। पर अमेरिका के अफगानिस्तान से वापस जाने के बाद अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्ज़ा बढ़ गया और तालिबान का रुख भारत के लिए हमेशा से ही भारत विरोधी रहा है। अभी की मीडिया खबरों के अनुसार पाकिस्तान और चीन दोनों ही अपने-अपने मंसूबों को और करने के लिए आने वाले समय में तालिबान के साथ नज़र आ सकते हैं। कल चीन और तालिबान प्रमुख की बैठक इसके उदाहरण हैं।