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Interstate Border Dispute: असम-मिजोरम ही नहीं इन राज्यों में भी जमीन की लड़ाई, जानिए अंतर-राज्य सीमा विवाद कहां-कहां
States Border Dispute: भारत में सबसे ज्यादा सीमाई विवाद असम का अपने पड़ोसी राज्यों के साथ है। इसकी वजह ये है कि उत्तर पूर्व में अधिकांश राज्यों का गठन असम को काट कर किया गया था।
Interstate Border Dispute: सीमा विवाद (Seema Vivad) को लेकर काफी बातें होती रहती हैं। चाहे भारत-चीन का सीमा विवाद (India China Border Clash) हो या फिर भारत-नेपाल (Indo Nepal Border) का, ये मसले हमेशा गरमाये रहते हैं। लेकिन इन अंतरराष्ट्रीय सीमा विवादों के अलावा देश के अंदर भी कई राज्यों के बीच सीमा विवाद (Interstate Border Dispute) चल रहा है। जिस तरह भारत में लोगों के बीच जमीनों के झगड़े बरसों-बरस चलते रहते हैं उसी तर्ज पर राज्यों के बीच जमीन के झगड़े (States Land Dispute) हैं जो कई-कई दशकों से चले आ रहे हैं। फिलहाल तो असम और मिजोरम के बीच जमीन (Assam-Mizoram Border Dispute) के झगड़े में कई पुलिसवालों की मौत के बात ये मामला गर्माया हुआ है लेकिन इन दोनों राज्यों के अलावा भी बहुत सी जगहों पर खूनी संघर्ष हो चुके हैं।
अंतर-राज्य सीमा विवाद
मिज़ोरम और असम (Assam Mizoram Seema Vivad) के बीच सीमा विवाद में कई पुलिसवालों की मौत के बाद केंद्र सरकार ने संसद में बताया है कि हरियाणा-हिमाचल प्रदेश(Haryana-Himachal Pradesh), लद्दाख-हिमाचल प्रदेश (Ladakh-Himachal), महाराष्ट्र-कर्नाटक (Maharashtra-Karnataka) तथा असम-अरुणाचल प्रदेश (Assam-Arunachal Pradesh), असम-नागालैंड (Assam Nagaland), असम - मेघालय (Assam Meghalaya) और असम-मिजोरम के बीच सीमाओं के निर्धारण के फलस्वरूप सीमा विवाद जारी हैं। वैसे सच्चाई ये है कि इन राज्यों के अलावा भी कई सीमाई विवाद बने हुए हैं, मिसाल के तौर पर उत्तर प्रदेश और हरियाणा (Uttar Pradeh-Haryana Border) के बीच। अब केंद्र सरकार ने कहा है कि सभी सीमाई विवाद सुलझाये जायेंगे।
सबसे ज्यादा विवाद असम के साथ (Kis State Me Sabsa Jyada Seema Vivad)
भारत में सबसे ज्यादा सीमाई विवाद असम का अपने पड़ोसी राज्यों के साथ है। इसकी वजह ये है कि उत्तर पूर्व में अधिकांश राज्यों का गठन असम को काट कर किया गया था। ऐसे में असम के पड़ोसी राज्य और खुद असम अभी तक सीमांकन से संतुष्ट नहीं है और सभी राज्य अपने अपने हिसाब से जमीनों पर हक़ जताते रहते हैं।
असम - मिज़ोरम (Assam Mizoram Border Dispute History)
असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद की शुरुआत 1980 के दशक में मिजोरम के गठन के बाद से ही है। दोनों राज्य तकरीबन 165 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं। इनके बीच सीमा विवाद की जड़ ब्रिटिश शासन काल में जारी दो अधिसूचनाएं हैं। मिजोरम राज्य के गठन से पहले यह इलाका असम का एक जिला था जिसे लुशाई हिल्स जिले के रूप में जाना जाता था। वर्ष 1875 में जारी अधिसूचना के जरिए लुशाई हिल्स को कछार के मैदानी इलाकों से अलग किया गया। दूसरी अधिसूचना वर्ष 1933 में जारी की गई, जिसमें लुशाई हिल्स और मणिपुर के बीच की सीमा का सीमांकन किया गया।
मिजोरम का मानना है कि असम और मिजोरम के बीच सीमा का विभाजन वर्ष 1875 की अधिसूचना के आधार पर किया जाना चाहिए। मिजोरम के लोगों का मानना है कि वर्ष 1933 की अधिसूचना को जारी करने के संबंध में स्थानीय लोगों से परामर्श नहीं किया गया था। दूसरी ओर, असम के प्रतिनिधि ब्रिटिश काल के दौरान वर्ष 1933 में जारी अधिसूचना का पालन करते हैं और दोनों राज्यों के बीच विवाद का यही मुख्य कारण है। हालांकि असम और मिजोरम की सरकारों के बीच दोनों राज्यों की सीमाओं पर यथास्थिति बनाए रखने को लेकर समझौता हुआ था, लेकिन समय-समय पर हिंसक झड़पें होती रहती हैं।
असम - नागालैंड (Assam-Nagaland Border Dispute)
असम का नागालैंड के साथ सबसे ज्यादा सीमा विवाद रहा है। 1963 में जब नागालैंड को असम के नागा हिल्स जिले से अलग कर नया प्रदेश बनाया गया था, उसी वक्त से नागालैंड असम से ऐसे हिस्सों की मांग कर रहा है, जिसे नागालैंड 'ऐतिहासिक' रूप से अपना हिस्सा मानता है।
नागालैंड सरकार का इस बात पर जोर रहा है कि 1960 के जिस 16-सूत्रीय समझौते के तहत नागालैंड का गठन हुआ, उसमें उन सभी नागा क्षेत्रों की 'बहाली' भी शामिल थी, जिन्हें 1826 में अंग्रेजों द्वारा असम पर कब्जा करने के बाद नागा पहाड़ियों से अलग कर दिया गया था। वहीं असम सरकार का रुख 'संवैधानिक रूप से' सीमा को बनाए रखने का है। इसका मतलब ये है कि असम 1 दिसंबर, 1963 को बने नागालैंड के कानून के तहत सीमा को मानती है। और यही दोनों राज्यों के बीच विवाद का मुख्य कारण है।
असम - मेघालय (Assam Meghalaya Border Dispute)
जब तक मेघालय असम का हिस्सा था, तब तक शिलांग, असम की राजधानी थी। 1972 में मेघालय के अलग होने के बाद से ही दोनों राज्यों के बीच सीमा को लेकर विवाद जारी है। हाल ही में असम और मेघालय के मुख्यमंत्री ने उन 12 जगहों की पहचान की है जहां दोनों राज्यों के बीच विवाद है। मुख्य विवाद असम के कामरूप जिले और मेघालय के पश्चिम गारो हिल्स जिले की जमीन को लेकर है। दोनों राज्य मौजूदा वक्त में विवादास्पद जगहों पर यथास्थिति बनाए रखने के पक्ष में हैं जब तक कि दोनों राज्यों के बीच कोई समझौता न हो जाता।
असम - अरुणाचल प्रदेश (Assam-Arunachal Pradesh Border Dispute)
अरुणाचल प्रदेश से असम का विवाद 1990 के दशक शुरू हुआ जब दोनों राज्यों ने एक दूसरे की जमीन पर अतिक्रमण करने का आरोप लगाया था। विवाद को लेकर स्थानीय लोगों के बीच साल 2007 में झड़प भी हो चुकी है। असम सरकार अपने दावों के साथ 1989 में सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी लेकिन अब तक इस मसले का समाधान नहीं हो सका है।
महाराष्ट्र - कर्नाटक (Maharashtra-Karnataka Border)
कर्नाटक और महाराष्ट्र में बेलगाम को लेकर बरसों से विवाद चल रहा है। यह शहर कर्नाटक में है, लेकिन महाराष्ट्र लंबे समय से इस पर अपना दावा ठोक रहा है। महाराष्ट्र बेलगाम, करवार और निप्पनी सहित कर्नाटक के कई हिस्सों पर दावा करता है। उसका कहना है कि इन इलाकों में अधिकतर आबादी मराठी भाषी हैं। दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद का यह मामला कई सालों से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
देश आजाद होने से पहले पहले महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्य नहीं थे। उस समय बॉम्बे प्रेसीडेंसी और मैसूर स्टेट हुआ करते थे। अभी के कर्नाटक के कई इलाके तब बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा थे। आजादी के बाद राज्यों का बंटवारा शुरू हुआ और 1956 में राज्य पुनर्गठन कानून लागू हुआ, तो बेलगाम को महाराष्ट्र की जगह मैसूर स्टेट का हिस्सा बना दिया गया और मैसूर स्टेट का नाम बदलकर 1973 में कर्नाटक हो गया। बेलगाम में मराठी बोलने वालों की संख्या काफी होने की वजह से इसे महाराष्ट्र का हिस्सा बनाने की मांग राज्य पुनर्गठन के समय से ही हो रही है।
1957 में ही महाराष्ट्र सरकार ने बेलगाम को कर्नाटक का हिस्सा बनाने का विरोध करते हुए इस पर एक आयोग बनाने की मांग की। रिटायर्ड जज मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में बने आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की कि उत्तर कन्नड़ जिले में आने वाले कारवाड सहित 264 गांव के साथ ही हलियल और सूपा इलाके के 300 गांव भी महाराष्ट्र को दिए जाएं। इस रिपोर्ट में भी बेलगाम शहर को महाराष्ट्र में शामिल किए जाने की सिफारिश नहीं की गई। रिपोर्ट में महाराष्ट्र के शोलापुर समेत 247 गांवों के साथ केरल का कासरगोड जिला भी कर्नाटक को देने की सिफारिश की गई। महाराष्ट्र और कर्नाटक, दोनों ने इन सिफारिशों को मानने से इनकार कर दिया।
हरियाणा - उत्तर प्रदेश (Haryana-UP Border Dispute)
करीब पचास साल से यूपी-हरियाणा में सीमा विवाद चला आ रहा है। हर साल फसल की बुआई व कटाई के समय हरियाणा के सोनीपत, पानीपत और यूपी के बागपत जनपद के किसानों में खूनी संघर्ष होता है। विवाद निस्तारण के लिए दिसंबर 2019 मे यमुना खादर में सीमा स्तंभ खोजने का कार्य भी किया था, लेकिन समस्या का हल नहीं निकला। इस विवाद का कारन हर साल यमुना की धारा का बदल जाना है।
हरियाणा - राजस्थान (Haryana-Rajasthan Border Dispute)
हरियाणा और राजस्थान में भी सीमा विवाद है। हरियाणा के रेवाड़ी स्थित टांकड़ी पंचायत में कुछ जमीन पर राजस्थान अपना दावा जताता है। मसला ये है कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार की योजना के तहत टांकड़ी पंचायत की तरफ से 115 बीपीएल परिवारों के लिए 100-100 वर्ग गज के प्लॉट्स की रजिस्ट्री कराई गई थी, लेकिन इन प्लॉट्स पर कब्जा नहीं लिया गया था। जब पंचायत ने इन प्लॉट्स पर कब्जा लेने की कोशिश की तो राजस्थान के अलवर जिले की कांकर पंचायत ने उस जमीन पर अपना दावा ठोक दिया। टांकड़ी पंचायत की यह जमीन राजस्थान सीमा पर पहाड़ के पास है।
हरियाणा - हिमाचल (Haryana-Himachal Border Dispute)
हरियाणा और हिमाचल के बीच भी सीमा का मसला है। हरियाणा, हिमाचल के टिंबर ट्रेल तक कुछ गांवों को अपने प्रदेश का हिस्सा बताता रहा है। मामले में हरियाणा के पास राजस्व दस्तावेज नहीं हैं, जबकि हिमाचल का कहना है कि उसके पास इससे संबंधित काफी रिकॉर्ड हैं। सर्वे ऑफ इंडिया ने हरियाणा और हिमाचल के बीच सीमा तय करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी थी। लेकिन इसके बाद कोविड और लॉकडाउन के चलते अब यह मसला ठंडे बस्ते में पड़ा है।
राजस्थान-गुजरात (Rajasthan-Gujarat Border Dispute)
राजस्थान-गुजरात के बीच 64 साल से सीमा विवाद चल रहा है। उदयपुर के मांडवा थाना इलाके के झांझर गांव की क्यारी फला में करीब 200 बीघा जमीन को लेकर विवाद है। इस जमीन पर दोनों ही राज्यों के किसान दावा करते आ रहे हैं। इसे लेकर वर्ष 1955 से विवाद चल रहा है। यह 200 बीघा जमीन दोनों तरफ के राजस्व खाते में दर्ज है। एक अन्य विवाद मनगढ़ हिल्स का है जो सीमा पर स्थित है। गुजरात इस पहाड़ी के आधे हिस्से पर अधिकार जताता है जबकि राजस्थान का कहना है कि पूरा पहाड़ उसकी सीमा के भीतर है। ये विवाद 40 साल से चल रहा है।
लद्दाख - हिमाचल (Ladakh-Himachal Border Clash)
लद्दाख लंबे समय से हिमाचल के सारचू तक क्षेत्र को अपना हिस्सा बताता रहा है। सारचू के इस नो मेन्स लैंड वाले इलाके में हिमाचल पुलिस की एक पोस्ट पिछले डेढ़ दशक से बनी है। इसके जरिये हर साल मनाली से लेह जाने के दौरान रास्तों में रुकने वालों की सुरक्षा व्यवस्था पुलिस इस पोस्ट के जरिये संभालती है। पिछले साल लद्दाख पुलिस ने हिमाचल सीमा के तेरह किलोमीटर अंदर सारचू में एक अस्थायी पोस्ट बना दी। इसके बाद विवाद बढ़ गया। अब इस मामले को निपटाने को नए सिरे से कवायद शुरू हुई है। बिलासपुर से लेह के लिए प्रस्तावित रेललाइन के सर्वे का काम शुरू हो चुका है। ऐसे में क्षेत्र का महत्व बढ़ेगा। इसी वजह से यह विवाद अब बढ़ गया है।
कर्नाटक - केरल (Karnataka-Kerala Border Dispute)
1956 में राज्य पुनर्गठन कमेटी ने कासरगोड जिले को केरल में शामिल करने का फैशला किया था। तबसे ये मसला दोनों राज्यों में विवाद की जड़ बना हुआ है क्योंकि कासरगोड में कन्नड़ भाषी लोग बहुसंख्य हैं। 1967 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले के समाधान के लिए एक कमेटी बनाई थी लेकिन विवाद सुलह नहीं पाया है। कोरोना काल में भी कासरगोड को लेकर काफी मतभेद उभर चुके हैं।
ओडिशा - बंगाल (Odisha-West Bengal border)
इन दोनों राज्यों के बीच विवाद 30 साल से ज्यादा समय से चला आ रहा है। इस झगड़े में किसान से ले कर दोनों राज्यों की सरकारें तक शामिल हैं। किसानों के बीच जहाँ हिंसक संघर्ष होते रहते हैं तो वहीं दोनों राज्य सरकारें विवादित क्षेत्र में अपनी बिल्डिंगें बनाती जाती हैं। यही नहीं विवादित क्षेत्र के लोगों ने दोनों राज्यों के वोटर आईडी कार्ड बनवा रखे हैं। हाल ही में ओडिशा और बंगाल सरकार के बीच बंगाल की खाड़ी में स्थित 'कनिका सैंड्स' नामक एक द्वीप को लेकर काफी बवाल हो चुका है। दोनों ही सरकारें इस द्वीप पर अपना हक़ जताती हैं।
ओडिशा – आंध्र प्रदेश (Odisha-Andra Border)
ओडिशा का विवाद सिर्फ बंगाल ही नहीं बल्कि अपने सभी पड़ोसी राज्यों के साथ है। मिसाल के तौर पर आंध्र प्रदेश के साथ 63 गाँव को लेकर विवाद है है जिसे आंध्र प्रदेश अपना हिस्सा बताता है। इसके अलावा ओडिशा और झारखण्ड के बीच सात गाँव को ले कर विवाद है जो मयूरभंज और केओन्झार जिलों में पड़ते हैं। इसके अलावा ओडिशा ने झारखण्ड के सराइकेला और खरसुँ क्षेत्र पर भी अपना हक जताया हुआ है। छत्तीसगढ़ के सतह ओडिशा का विवाद तीन गाँव को लेकर है।