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Information Technology Act : रद हो चुकी धारा पुलिस के पास अब भी जिंदा
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि जब 6 साल पहले इस धारा को रद कर दिया था तब भी इसके तहत मामले क्यों दर्ज हो रहे हैं? पिछले कुछ सालों में 1307 दर्ज किए गए हैं। यानी पुलिस एक ऐसी धारा में केस दर्ज कर रही है जिसका वजूद ही कोर्ट खत्म कर चुकी है।
Information Technology Act : नई दिल्ली। इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट की धारा 66ए फिर चर्चा में है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि जब 6 साल पहले इस धारा को रद कर दिया था तब भी इसके तहत मामले क्यों दर्ज हो रहे हैं?
दरअसल इस धारा के तहत उत्तर प्रदेश समेत देश के 11 राज्यों में मामले अब भी दर्ज हो रहे हैं। 2015 में जब ये धारा निरस्त हुई थी तब इस धारा के तहत 11 राज्यों में 229 मामले लंबित थे। पिछले कुछ सालों में इन्हीं राज्यों में 1307 और मामले दर्ज किए गए हैं। यानी पुलिस एक ऐसी धारा में केस दर्ज कर रही है जिसका वजूद ही कोर्ट खत्म कर चुकी है।
पीयूसीएल ने दायर की थी याचिका
नागरिक अधिकार संबंधी संगठन, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल करके बताया है कि पुलिस अब भी आईटी एक्ट की दफा 66 ए को लोगों के खिलाफ इस्तेमाल कर रही है। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया और कहा कि ये हैरान करने वाला है कि इस कानून को निरस्त करने के उसके फैसले पर अभी तक अमल नहीं किया गया है। पीयूसीएल ने इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन संस्था द्वारा इकट्ठा डेटा के आधार पर ये याचिका दायर की है। इसके मुताबिक, पुलिस आईटी एक्ट के उन 'घातक' प्रावधानों का अब भी इस्तेमाल कर रही है, जिन्हें अवैध करार दिया गया है।
क्या है धारा 66 ए
आईटी एक्ट में धारा 66 ए को वर्ष 2009 में संशोधित अधिनियम के तहत जोड़ा गया था। इस प्रावधान के तहत कहा गया कि - कंप्यूटर संसाधन या संचार उपकरण के माध्यम से संदेश भेजने वाले उन व्यक्तियों को दंडित किया जा सकता है,जो कोई भी ऐसी जानकारी भेजते हैं जो मोटे तौर पर आपत्तिजनक है या धमकाने वाली है।
या ऐसी कोई भी जानकारी जिसे वह झूठी मानता है, लेकिन इस तरह के कंप्यूटर संसाधन या संचार उपकरण का उपयोग करके झुंझलाहट, असुविधा, खतरा, बाधा, अपमान, चोट, आपराधिक धमकी, दुश्मनी, घृणा या बीमार इच्छाशक्ति पैदा करने के उद्देश्य से भेजता है। या किसी भी इलेक्ट्रॉनिक मेल या इलेक्ट्रॉनिक मेल संदेश को झुंझलाहट या असुविधा या धोखा देने या प्राप्तकर्ता को इस तरह के संदेशों की उत्पत्ति के बारे में भ्रमित करने के उद्देश्य से उपयोग करता है। इस अपराध के लिए तीन साल तक के कारावास की सजा हो सकती थी, साथ में जुर्माना भी लगाया जा सकता था। यानी आपने अगर किसी को गुड मॉर्निंग का मैसेज भेजा और उस व्यक्ति ने पुलिस में शिकायत कर दी कि इस मैसेज से उसे असुविधा या अपमान हुआ है तो इस धारा के तहत पुलिस केस दर्ज कर सकती है।
शिवसेना प्रमुख पर टिप्पणी के बाद दाखिल हुई थी याचिका
शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के निधन के बाद मुंबई में जनजीवन अस्तव्यस्त होने पर किसी ने फेसबुक पर एक टिप्पणी की थी। किसी व्यक्ति ने टिप्पणी के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी और पुलिस ने गिरफ्तारी कर ली। इसके बाद इस मामले में एक छात्रा श्रेया सिंघल की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई और आईटी एक्ट की धारा-66 ए को खत्म करने की गुहार लगाई गई। सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में एक ऐतिहासक फैसले में इसे निरस्त कर दिया था। तत्कालीन जस्टिस जे. चेलमेश्वर और जस्टिस रॉहिंटन नारिमन की बेंच ने कहा था कि ये प्रावधान साफ तौर पर संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को प्रभावित करता है।