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जासूसी कांड का इतिहास: चन्द्रशेखर से लेकर हेगडे तक को देना पड़ा इस्तीफा

Jasoosi Kand: भारतीय लोकतंत्र के इतिहास को देखा जाए तो फोन टैपिंग (Phone Tapping) या जासूसी (Spy) का कोई यह नया मामला नहीं है। पत्रकारों और नेताओं की जासूसी के आरोप पहले भी लगते रहे हैं।

Shreedhar Agnihotri
Written By Shreedhar AgnihotriPublished By Shreya
Published on: 22 July 2021 10:44 PM IST (Updated on: 22 July 2021 11:23 PM IST)
जसूसी कांड का इतिहास: चन्द्रशेखर से लेकर हेगडे तक को देना पड़ा इस्तीफा
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रामकृष्ण हेगडे़- चंद्रशेखर (फाइल फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Jasoosi Kand: इन दिनों पेगासस जासूसी कांड (Pegasus Hacking Case) को लेकर लोकसभा से लेकर राज्यसभा तक विपक्ष के जोरदार हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही नहीं चल पा रही है। विपक्ष इस मसले पर सरकार को घेरना चाह रहा है। वह जबरदस्त तरीके से केन्द्र सरकार पर हमलावर है। विपक्ष इस पूरे मामले की जांच संयुक्त संसदीय समिति से कराने की मांग पर अड़ा हुआ है।

भारतीय लोकतंत्र के इतिहास को देखा जाए तो फोन टैपिंग (Phone Tapping) या जासूसी (Spy) का कोई यह नया मामला नहीं है। पत्रकारों और नेताओं की जासूसी के आरोप पहले भी लगते रहे हैं। फोन टैपिंग का मामला (Phone Tapping Case) आज से तीन दशक पहले भी उठ चुका है जब 1988 में इसकी वजह से कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगडे़ को इस्तीफा देना पड़ा था। उस समय केन्द्र में राजीव गांधी की सरकार (Rajiv Gandhi Government) थी।

राजीव गांधी बोफोर्स मामले में बुरी तरह से घिर चुके थें। इस बीच मीडिया में रामकृष्ण हेगडे के फोन टैंपिंग का मामला उछला तो बोफोर्स मामले से जनता का ध्यान हटाने के लिए केन्द्र सरकार ने इस मामले की जांच के आदेश दे दिए। जांच में आया कि राज्य सरकार के आदेश पर ही पुलिस के एक आलाधिकारी ने विपक्ष के नेताओं के फोन टैप कराए थें।

रामकृष्ण हेगडे (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

रामकृष्ण हेगडे का इस्तीफा

इस पूरे मामले में राजीव गांधी की छवि तो चमक गयी पर रामकृष्ण हेगडे (Ramakrishna Hegde) बुरी तरह से घिर गए। जनता दल की आंतरिक कलह के चलते चन्द्रशेखर अजीत सिंह ओर देवगौडा ने हेगडे को इस्तीफा देने को कह दिया। चौतरफा दबाव के चलते शुद्व एवं साफ छवि के रामकृष्ण हेगडे को 1988 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। रामकृष्ण हेगडे उस समय मुख्यमंत्री रहते हुए देश के बड़े नेता हो चुके थें और उनका नाम प्रधानमंत्री की रेस में भी आने लगा था।

इस बीच 1990 में जब केन्द्र में कांग्रेस के समर्थन से केन्द्र में चन्द्रशेखर के प्रधानमंत्रित्व में सरकार का गठन हुआ। तो चार महीने बाद 2 मार्च को मीडिया में कांग्रेस नेता राजीव गांधी की जासूसी (Rajiv Gandhi Ki Jasoosi) और फोन टैपिंग का मामला उछला। मीडिया में कहा गया कि राजीव गांधी के घर के बाहर हरियाणा पुलिस (Haryana Police) के दो कांस्टेबल जासूसी करते पकड़े गए।

बताया गया कि उस समय हरियाणा में जनता दल की सरकार थी और राजीव गांधी के घर के बाहर इस बात पर नजर रखी जा रही थी कि जनता दल के कौन कौन नेता उनसे मिल रहे हैं। इस पर राजीव गांधी और चन्द्रशेखर के बीच गहरे मतभेद पैदा हो गए।

चन्द्रशेखर (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

चन्द्रशेखर का प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा

तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आरोपों को नकारते रहे। वह इस बात पर भी तैयार हो गए कि इस मामले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया जाएगा। पर कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी केन्द्र सरकार को अपना बाहर से समर्थन देने को बिल्कुल भी तैयार नहीं थें। कांग्रेस इससे पहले समर्थन वापसी का एलान करती चन्द्रशेखर (Chandra Shekhar) ने स्वंय प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और 6 मार्च 1991 को अल्प अवधि की सरकार गिर गयी।

पिछले साल कर्नाटक में एक बार फिर फोन टैपिंग का मामला उठा जब बीएस येदियुरप्पा (B. S. Yediyurappa) पर फोन टैपिंग के आरोप लगे। कहा गया कि जब कांग्रेस और जेडीएस की सरकार थी तभी भाजपा नेता येदियुरप्पा इस सरकार गिराने की मुहिम में लग गए। इसके लिए वह मनी का इस्तेमाल करने के प्रयास में थे। यहां तक कि येदियुरप्पा पर एफआईआर (FIR) भी हुई।

इसके पहले जब केन्द्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी तब भी नीरा राडिया टेप कांड (Radia Tapes Controversy) सुर्खियों में रहा। जिसमें कुछ पत्रकारों नौकरशाहों और नेताओं के नाम शामिल थें। भ्रष्ट्राचार और पैसे के लेन देन के मामले में आयकर विभाग ने कई फोन टेप किए। इसमें कई बड़े लोगों के नाम सामने आए जिसके बाद दूरसंचार मंत्री ए राजा को इस्तीफा तक देना पड़ा था।

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