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Jawahar Lal Nehru: हिंदू धर्म के लिए नेहरू के विचार, क्या था उनका मजहब? जानें सबकुछ
Jawahar Lal Nehru Death Anniversary: भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की आज 57वीं पुण्यतिथि मनाई जा रही है।
Jawahar Lal Nehru Death Anniversary: भारत के पहले प्रधानमंत्री (First Prime Minister of India) पंडित जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) की आज 57वीं पुण्यतिथि मनाई जा रही है। आज ही के दिन सन यानी 27 मई 1964 में दिल का दौरा पड़ने से इनकी मृत्यु हुई थी। पंडित जवाहर लाल नेहरू के जीवन के अलग-अलग पहलुओं की चर्चा होती रहती है। यहां तक की कुछ फर्जी वॉट्सऐप मैसेज और डिजिटल अफवाह बताते हैं कि जवाहर लाल नेहरू मुसलमान थे, वे अपने आपको दुर्घटनावश हिंदू बताते थे।
तो चलिए आज इन अफवाहों से अलग जरा ईश्वर और धर्म के बारे में जवाहर लाल नेहरू के विचार जानते हैं। साथ ही यह भी जाना जाए कि हिंदू धर्म और खुद की धार्मिकता को लेकर नेहरू के क्या विचार थे। लेकिन सबसे पहले उनके जन्म और शुरुआती जीवन के बारे में जान लेते हैं।
शुरुआती जीवन
पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को इलाहाबाद में हुआ था। उनके पिता, मोतीलाल नेहरू एक धनी बैरिस्टर जो कश्मीरी पण्डित थे। मोती लाल नेहरू सारस्वत कौल ब्राह्मण समुदाय से थे। स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष चुने गए। उनकी माता स्वरूपरानी थुस्सू, जो लाहौर में बसे एक सुपरिचित कश्मीरी ब्राह्मण परिवार से थीं। जवाहरलाल तीन बच्चों में से सबसे बड़े थे, जिनमें बाकी दो लड़कियां थी। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने घर पर रहकर निजी शिक्षकों से प्राप्त की। इसके बाद 15 साल की उम्र में वे इंग्लैंड चले गए। जवाहर लाल नेहरू ने दुनिया के कुछ बेहतरीन स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा हैरो से और कॉलेज की शिक्षा ट्रिनिटी कॉलेज कैम्ब्रिज से पूरी की थी। इसके बाद लॉ की शिक्षा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पूरी की।
अब जानते हैं उनके मजहब और धार्मिकता को लेकर उनके विचार। जवाहर लाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा 'मेरी कहानी' में मजहब को लेकर लिखा है। उनकी आत्मकथा से एक छोटा सा हिस्सा -
भले ही कोई नास्तिक हो लेकिन रहता ही हिंदू ही है
नेहरू लिखते हैं, "भले ही कोई अपने को नास्तिक कहता हो, जैसा कि चार्वाक था। फिर भी कोई यह नहीं कह सकता कि वह हिंदू नहीं रहा। हिंदू धर्म अपनी संतानों को उनके न चाहते हुए भी पकड़ रखता है। मैं एक ब्राह्मण पैदा हुआ और मालूम होता है कि ब्राह्मण ही रहूंगा, फिर मैं धर्म और सामाजिक रीति रिवाज के बारे में कुछ भी कहता और करता रहूं। हिंदुस्तानी दुनिया के लिए मैं पंडित हूं चाहे मैं उपाधि को नापसंद ही करूं।''
हिंदू धर्म को लेकर उदार थे नेहरू के विचार
दरअसल धर्म और खासकर हिंदू धर्म को लेकर नेहरू के विचार खासे उदार थे। वे महात्मा गांधी की उसी धार्मिक दृष्टि से प्रेरणा लेते थे जो कहती थी कि इतने विशाल देश को धर्म को किराने रखकर नहीं चलाया जा सकता। उनके लिए धर्म का मतलब एक निजी आध्यात्मिकता थी। हां, वे इसके राजनैतिक इस्तेमाल के खिलाफ जीवन भर डटे रहे।
मजहब की शुरुआत कब हुई
इसके अलावा नेहरू ने बेटी इंदिरा को लिखे खत में बताया है कि पहले के जमाने में लोग भगवान से बहुत डरते थे और इसलिए वह उन्हें भेंट देकर, खासकर खाना पहुंचा कर, हर तरह की रिश्वत देने की कोशिश करते रहते थे। देवताओं को खुश करने के लिए वे मर्दों-औरतों का बलिदान करते, यहां तक कि अपने ही बच्चों को मार कर देवताओं को चढ़ा देते। यही बड़ी भयानक बात मालूम होती है लेकिन डरा हुआ आदमी जो कुछ कर बैठे, थोड़ा है। "मजहब पहले डर के रूप में आया और जो बात डर से की जाए बुरी है। तुम्हें मालूम है कि मजहब हमें बहुत सी अच्छी-अच्छी बातें सिखाता है। जब तुम बड़ी हो जाओगी तो तुम दुनिया के मज़हबों का हाल पढ़ोगी और तुम्हें मालूम होगा कि मजहब के नाम पर क्या-क्या अच्छी और बुरी बातें की गई हैं। यहां हमें सिर्फ यह देखना है कि मजहब का खयाल कैसे पैदा हुआ और क्यों बढ़ा, लेकिन चाहे वह जिस तरह बढ़ा हो, हम आज भी लोगों को मजहब के नाम पर एक दूसरे से लड़ते और सिर फोड़ते देखते हैं। बहुत-से आदमियों के लिए मजहब आज भी वैसी ही डरावनी चीज है। वह अपना वक्त फर्जी देवताओं को खुश करने के लिए मंदिरों में पूजा, चढ़ावा और जानवरों की कुर्बानी करने में खर्च करते हैं।''