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Maun Ka Samvad: लव बर्ड्स के लिए खास, प्यार की डगर पर बढ़ने से पहले और बाद ये जान लेना है बहुत जरूरी

Maun Ka Samvad: आज का प्रेम जिस तरह महज़ दैहिक यात्रिकता में उलझा दिखाई देता है; डेटिंग, प्रपोज़, फाल इव लव और ब्रेकअप तथा मूवऑन जैसे शब्द प्रेम जैसे नितांत गहन व पवित्र आत्मबोध का माखौल उड़ाते प्रतीत होते हैं।

Poonam Singh Negi
Written By Poonam Singh NegiPublished By Vidushi Mishra
Published on: 10 Nov 2021 4:09 PM IST
maun ka sanwad
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पुस्तक- मौन का संवाद 

लेखक- योगेश मिश्र

Yogesh Mishra Book Maun Ka Samvad: प्रेम कविताओं के शब्द प्रेमी मन के भीतर गहरे तक स्पर्श करते हैं। इनमें भावनाओं का गहन उद्वेलन है तो संवेदनाओं के सजल श्रृंगार भी। कवि मन की अभिव्यक्तियाँ प्रेम तत्व की एक नूतन सर्जना करती हैं। कवि की लेखनी से निःसृत प्रेम के बिंब पाठक को शब्दातीत सुख बोध कराते हैं। इन कविताओं में प्रेमी मन की मनुहार, तोष, तृष्णा, भोग, दर्द, पीड़ा, रिक्तता, अपनापन, अधूरापन आदि मनोभावों को कवि ने जिस बारीकी, प्रखरता व स्पष्टता से रूपायित किया, वह कवि के गहन आत्मबोध को परिलक्षित करता है। रूमानियत से भरे इन शब्द चित्रों में प्रेम की मीठी चुभन बड़ी शिद्दत से महसूस होती है।

'काश! तुम फिर आतीं' कविता में कवि मन की आकुल पुकार प्रेमी मन को एक ऐसी बेचैनी से भर देती है, जिसे इस पीड़ा से गुजरने वाला ही अनुभव कर सकता है। इसी तरह 'मेरी प्रिया ! तुम रही वरदाऩ ..' ' ' तुमने जनी थीं हममें गुप्त उष्माएँ ' में अभिव्यक्त भावरूप दिल के द्वार पर दस्तक सी देते हैं। इन शब्द बिंबों में कवि ने जिस तरह प्रेम को गहन व उदात्त रूप में चित्रित किया है; उसमें इक्कीसवीं सदी की अत्याधुनिक पीढ़ी के लिए एक प्रेरक संदेश भी दिखता है।

डेटिंग, प्रपोज़, फाल इव लव और ब्रेकअप तथा मूवऑन

आज का प्रेम जिस तरह महज़ दैहिक यात्रिकता में उलझा दिखाई देता है; डेटिंग, प्रपोज़, फाल इव लव और ब्रेकअप तथा मूवऑन जैसे शब्द प्रेम जैसे नितांत गहन व पवित्र आत्मबोध का माखौल उड़ाते प्रतीत होते हैं।

कवि ने इन कविताओं में प्रेम को जिस तरह एक जीवन शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया है, वह अपने आप में एक गहन तोष जनता है। ' नहीं बसा सका तुम्हारे संग संसार… पर तुम्हें मरने नहीं दूँगा.. कविताओं में गढ़ दूँगा तुम्हारा हुरूफ; प्रेम पगे ये शब्द चित्र प्रेम को जो ऊँचाई देते हैं, उसे पढ़ना एक ऐसी आनंदातिरेक की अनुभूति है जो किसी दूसरे लोक में पहुँचा देती है।

स्पष्टता यानी साफ़गोई इन कविताओं की एक विशिष्टता है, जो पाठक को प्रेम के विषय में विचार करने की एक नई दृष्टि देती है। 'मन्नतों के धागे में तुम्हें बांधना .. बाहों के गुंजलक में तुम्हारा सरमाया..' सरीखे मोहक शब्द बिंबों में कवि ने जिस तरह प्रेम की प्रथम स्मृति को चित्रित किया है, वह प्रेम की एक रूमानी दुनिया की यात्रा कराता है।


इसी तरह 'तुम नहीं थी मेरा … पहला प्रेम… जब तुम.. तब ज़रा भी नहीं भाती' की स्वीकारोक्ति चुभन के बावजूद एक स्पष्टता दर्शाती है। 'छकना नहीं चखना है प्रेम' की अभिव्यक्ति कबीर के ढाई अक्षर के प्रेम की एक नूतन सर्जना करती है।

'अंतर देह ' की अभिव्यंजना का सौंदर्य प्रेम तत्व को रूह के स्तर पर निखारता है। स्त्री को देह और रूह को एक साथ पाने की कामना एक गौरव का भाव भरती है। ' देह नहीं है स्त्री' में ' स्त्री अस्मिता' का मान परिलक्षित होता है।

दिल को छूने वाले शब्द रूपों में पिरोया

इसी तरह इन कविताओं में कवि ने अनापन, अनजानापन और अधूरापन के मनोभावों को जिन दिल को छूने वाले शब्द रूपों में पिरोया है, वे कवि के अतिशय संवेदनशील मन के द्योतक हैं। ये शब्द रूप पाठक को बांध सा लेते हैं। आत्मिक आह्लाद की गहन अनुभूति ही प्रेम का मूल तत्व हैं। यह भाव इन प्रेम कविताओं में पूरी तरह मुखर है।

इस कविता संग्रह में कवि ने प्रेम से इतर अन्य विषयों पर भी पूरी संवेदनशीलता से अपनी लेखनी चलाई हैं। ' समय नहीं होता कालातीत…' इसलिए ज़रूरी हैं यात्राएँ …. करवट लेता वक्त… यांत्रिक मानव …मन व संसार आदि काव्य रूप कवि की चिंतनशील लेखनी से प्रभावित करते हैं।

'अचरा अक्षत… आशीष की चाह में लट लपेटे…' तुमने खूब अघाया…कुल धर्म निभाया…।' का भाव सौंदर्य लुभाता है। एक मर्यादित सौंदर्य की सर्जना करता है। पुताई के माध्यम से बचपन खोने की चिंता… लड़की के स्त्री में रूपायित होते जाने का बिंब विचार बोध जनता है। बढ़ती यांत्रिकता और चहुँओर ओर पसरते बाज़ार की त्रासदियों को भी कवि ने बखूबी रेखांकित किया है।

हालाँकि 'स्वर्ण मृग' और 'संबोधि' के माध्यम से उठाये गये कवि के प्रश्नों से मैं निजी तौर पर सहमत नहीं; फिर भी उनके ये प्रश्न एक वर्ग को विचार की एक दृष्टि अवश्य देते हैं। मेरा स्वयं का मानना है कि 'राम' और 'बुद्ध' हमारी देव संस्कृति के ऐसे प्रकाश स्तंभ हैं, जिन्होंने विश्वमंगल के लिए निजी सुखों का बलिदान कर त्याग के ऐसे महान आदर्श प्रस्तुत किये जिनकी दीप्ति सदियों बाद भी ज़रा भी मंद नहीं हुई है। ये प्रेरणा पुरूष हमारे मन प्राण को आज भी पूरी प्रखरता से आलोकित प्रेरित करते हैं।

युवा पीढ़ी के प्रेम की रूमानी दुनिया

'बोध', 'तितली न होना' और 'सपना' कविताओं में कवि की विचार दृष्टि जीवन को एक भिन्न रूप में सोचने को प्रेरित करती है। 'तितली न होना' में कवि मन जिस तरह फूल, पुंकेसर, वर्तिकाग्र से पराग चुनती तितली के मोहक सौंदर्य को चित्रित करता है, एक संक्षिप्तीकरण जीवन यात्रा में सृष्टि के सृजन के शब्द रूप एक अलौकिक आनंद देते हैं।

कुल मिलाकर योगेश मिश्र की ये कविताएँ एक अनुभूतिजन्य सुख का रसास्वादन कराती हैं। इनमें प्रेम की अकुलाता पूरी प्रखरता से बिंबित है, भविष्य की चिंता है, लोकमंगल की कामना है, मनोभावों का द्वंद्व है।

कविताओं के मोहक शब्द चित्र, अभिव्यंजनात्मक शैली, हृदय में उतरते बिंब, अनूठा शिल्प व शब्द सौंदर्य पाठक को आद्योपांत बांधे रखता है। उम्मीद करती हूँ कि कवि कि प्रेम पगी यह लेखनी अपने अनूठे आकर्षण से प्रेमी दिलों को प्रभावित किये बिना नहीं रहेगी।

सार रूप में कहें तो ये कविता समग्र युवा पीढ़ी को प्रेम की एक रूमानी दुनिया की मनमोहक यात्रा कराने का साथ एक ऐसी जीवन दृष्टि भी देगी जिससे वे प्रेम को एक आत्मिक जीवन शक्ति के रूप में ग्रहण करने की प्रेरणा ले सकेंगे।

(समीक्षक वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार हैं)

पुस्तक- मौन का संवाद

लेखक- योगेश मिश्र

प्रकाशक- सामयिक बुक्स, दरियागंज

नई दिल्ली, 110002

मूल्य ₹ 395.00

योगेश मिश्र की किताबें ऑन लाइन उपलब्ध हैं।

Link - Maun Ka Samvad



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Vidushi Mishra

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