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जूनागढ़ के नवाब ने की थी पाकिस्तान से विलय की घोषणा, फिर कैसे बना जूनागढ़ भारत का हिस्सा...

Junagarh : जूनागढ़ के नवाब 'मोहम्मद महाबत खान' जूनागढ़ को पाकिस्तान के साथ मिलाने के लिए तैयार हो गए थे।

Anshul Thakur
Written By Anshul ThakurPublished By Shraddha
Published on: 15 Aug 2021 10:40 AM IST (Updated on: 15 Aug 2021 10:44 AM IST)
जूनागढ़ के नवाब जिन्ना के कहने पर पाकिस्तान के साथ मिलाने को तैयार
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जूनागढ़ के नवाब जिन्ना के कहने पर पाकिस्तान के साथ मिलाने को तैयार (फोटो - सोशल मीडिया)

Junagarh : जिन्ना के कहने पर जूनागढ़ (Junagarh) के नवाब 'मोहम्मद महाबत खान' जूनागढ़ को पाकिस्तान (Pakistan) के साथ मिलाने के लिए तैयार हो गए थे। लेकिन जूनागढ़ जिस जगह पर स्थित था, वहां से उसका पाकिस्तान में मिल जाना भारत के लिए सही नहीं था। जूनागढ़ की सीमाएं तीन तरफ से भारत से गिरी थी और एक तरफ खुला समंदर था। 1947 में जब नवाब यूरोप में छुट्टियां मना रहे थे। तभी उनके दीवान को बदल दिया गया।


जूनागढ़ के नए दीवान थे मुस्लिम लीग के नेता 'शाहनवाज भुट्टो'। शाहनवाज भुट्टो पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो और बेनजीर भुट्टो के पिता है। भुट्टो ने जूनागढ़ को भारत से ना मिलाने के लिए नवाब पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। इसके चलते नवाब ने देश की आजादी के बाद जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिलाने की घोषणा कर दी।


जूनागढ़ के नवाब मोहम्मद महाबत खान (डिज़ाइन फोटो - सोशल मीडिया)


जिन्नाह की साजिश


आपको बता दें कि जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिलाने के लिए पीछे किए इतने प्रयासों का बहुत बड़ा कारण था 'कश्मीर'। दरअसल मोहम्मद अली जिन्नाह (Muhammad Ali Jinnah) जूनागढ़ देकर कश्मीर का सौदा करना चाहते थे। ऐसा इसलिए क्योंकि जूनागढ़ की स्थिति कश्मीर के बिल्कुल विपरीत थी। जूनागढ़ के नवाब मुस्लिम थे, लेकिन यहां की 85 फीसदी से ज्यादा आबादी हिंदू थी। जैसे कश्मीर के शासक तो हिंदू थे, लेकिन वहां की ज्यादातर आबादी मुसलमान थी। इसी के साथ जूनागढ़ में सोमनाथ और कई पवित्र जैन मंदिर भी आते थे। अगर जूनागढ़ पाकिस्तान का हिस्सा हो जाता तो उसे भारत को वापस देने के लिए मोहम्मद जिन्नाह भारत से कश्मीर मांगते। लेकिन सरदार पटेल ने जिन्ना के मंसूबों पर पानी फेर दिया। उन्होंने अपना पूरा ध्यान जूनागढ़ दो बड़े प्रांत मांगरोल और बाबरिया बार पर केंद्रित कर दिया। वहां के हिंदू राजा हिंदुस्तान में आना चाहते थे. यह जानकर सरदार पटेल ने ब्रिगेडियर गुरुदयाल सिंह को सेना लेकर इन प्रांतों पर कब्जा करने भेजा। इस कब्जे का विरोध जूनागढ़ के नवाब ने किया लेकिन जूनागढ़ की जनता ने नवाब का साथ नहीं दिया। धीरे-धीरे जूनागढ़ की जनता नवाब के खिलाफ होने लगी।


इसी बीच मुंबई में आजादी के सेनानी 'समलदास गांधी' के नेतृत्व में जूनागढ़ की अंतरिम सरकार बन गई थी। इस अंतरिम सरकार और जूनागढ़ की जनता ने नवाब पर दबाव डालना शुरू कर दिया। यहां तक कि आंदोलन करने तक की बात आ गई। इन सभी से डरकर जूनागढ़ के नवाब जल्दी-जल्दी में पाकिस्तान की राजधानी कराची भाग गए। उनके कराची चले जाने के बाद नवंबर में भारत की फौज ने जूनागढ़ पर कब्जा कर उसे भारत के साथ मिला लिया। इसके बाद जब लॉर्ड माउंटबेटन (Louis Mountbatten) ने जूनागढ़ की जनता से भारत में विलय को लेकर उनका मत जानने का प्रयास किया तो 95 फीसदी लोगों ने भारत के साथ मिलने को स्वीकार कर दिया। जिसके बात जूनागढ़ का वियस भारत संघ में हुआ था।



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