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Justice Nariman: सर्वोच्च न्यायालय ने खो दिया एक शेर, जस्टिस नरीमन के लिए कई ऐतिहासिक फैसले
Justice Nariman: सर्वोच्च न्यायालय(Supreme Court) के वरिष्ठतम जज न्यायमूर्ती रोहिंगटन फली नरीमन रिटायर (Justice Nariman Retirement) हो गये।
Justice Nariman: कल यानी 12 अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय(Supreme Court) के वरिष्ठतम जज न्यायमूर्ती रोहिंगटन फली नरीमन रिटायर (Justice Nariman Retirement) हो गये। मुख्य न्यायाधीश एन वी रम्मना ने कल जज नरीमन के विदाई समारोह (Justice Nariman Farewell) मे कहा कि ऐसा लग रहा है उन्होंने एक शेर खो दिया हो। जस्टिस नरीमन वरिष्ठता के क्रम में सुप्रीम कोर्ट (Justice Nariman Supreme Court) में इस समय दूसरे नंबर पर थे सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस नरीमन से वरिष्ठ सिर्फ मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना हैं।
13 अगस्त (आज)को जस्टिस नरीमन अपना पैसठवां जन्मदिन मनाएंगे।विधान के मुताबिक 65 वर्ष के होने से ऐन पहले यानी 65वें जन्मदिन (Justice Nariman age) से एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के जज रिटायर होते हैं।
नरीमन के जीवन की कुछ बातें-
जस्टिस रोहिंटन (Justice Nariman Family) देश के प्रसिद्ध न्यायविद फली नरीमन (Fali Sam Nariman) के पुत्र हैं। विधि और न्याय शास्त्र के प्रखर विद्यार्थी रहे जस्टिस नरीमन को मात्र 37 साल की आयु में 1993 में वरिष्ठ वकील नियुक्त किया गया था। जबकि इससे जुड़े नियम के मुताबिक 45 साल से ऊपर के वकील को ही वरिष्ठ वकील नियुक्त किया जा सकता था।
लेकिन 1993 में रोहिंटन नरीमन को सीनियर एडवोकेट का गाउन देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के तब के चीफ जस्टिस एमएन वेंकटचलैया को नियमों में बदलाव करना पड़ा।पारसी धर्म के शीर्ष पुरोहित जस्टिस नरीमन पांचवें ऐसे वकील रहे जिन्हें वकालत से सीधे सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया।
अन्यथा परंपरा के मुताबिक हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को ही सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में नियुक्त किया जाता है।जस्टिस नरीमन इस वक्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के मूल्यों के प्रबल समर्थक माने जाते हैं।
जस्टिस नरीमन के ऐतिहासिक फैसले (Justice Nariman Judgement)
जस्टिस नरीमन में अपने 7 साल के सर्वोच्च न्यायालय के सफर में अनेक ऐतिहासिक फैसले लिए हैं ।उन्होंने लगभग 13565 मामलों की सुनवाई करते हुए अनेक यादगार निर्णय दिये।जिनके लिए जस्टिस नरीमन को हमेशा याद किया जायेगा।
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश हो - इनमें से सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं को प्रवेश देने का मामला है। जस्टिस नरीमन 4:1 के बहुमत से सुनाए गए उस फैसले का हिस्सा थे जिसमें सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश देने की अनुमति दी गई थी।
सबरीमाला फैसले के बाद के विरोध की आलोचना और केंद्र सरकार द्वारा आदेश के कार्यान्वयन में देरी के प्रयासों पर फटकार लगाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले हर हाल में लागू किए जाने चाहिए।आदेश की समीक्षा में जस्टिस नरीमन ने कहा कि सभी ये याद रखे कि संविधान एक पवित्र ग्रन्थ है जो सभी को साथ लाकर एक बड़े लक्ष्य प्राप्ति को प्रेरित करता है।
धारा 66A रद्द करने का ऐतिहासिक फैसला-
न्यायमूर्ति नरीमन ने वर्ष 2015 में श्रेया सिंघल केस का भी फैसला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने सूचना तकनीक कानून की धारा 66ए को खत्म कर दिया था।
तीन तलाक का बहुचर्चित फैसला-
(Teen Talaq)
साल 2017 में मुस्लिम समाज में तीन तलाक की प्रथा को रद्द करने फैसला सुर्खियों में रहा था। इस मामले में फैसला देते हुए जस्टिस नरीमन ने कहा था कि ये प्रथा संविधान की धारा 14 का उल्लंघन करती है।
राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण पर चिंता-
फरवरी 2020 में जस्टिस नरीमन ने सांसदों और एमएलए के चयन में बढ़ते अपराधीकरण पर चिंता जताई थी।पिछले महीने ही, उन्होंने उन पार्टियों के खिलाफ अदालती कार्रवाई की अवमानना की चेतावनी दी, जो अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का खुलासा और प्रचार करने में विफल रहीं है।10 अगस्त को अपने आखिरी फैसले में नरीमन ने फिर से कहा कि मतदाताओं को उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि जानने की जरूरत है।
जोसेफ साइन मामला-
जस्टिस नरीमन ने कहा कि संविधान के धारा 497 महिलाओं को नीचा दिखाती है।यह आधुनिक संविधान का उल्लंघन करता है।जोसेफ बनाम भारत सरकार मामले में नरीमन ने कहा कि व्यक्ति की गरिमा अनुच्छेद 21 का एक पहलू है।
धारा 377 के तहत ट्रांसजेंडर्स मामला-
धारा 377 के तहत ट्रांसजेंडर्स को समलैंगिक लोगो को सजा दिया जाना असंगत ही नहीं बल्कि ये न्याय विरोधी भी है।ये हमारी सनक सोच को बताता है।इसे खत्म किया जाना चाहिये।नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत सरकार मामले में कहा गया कि बहुमत की सरकार सामाजिक नैतिकता के आधार ओर रूढ़िवाद को बढ़ावा नही दे सकती है।
इसी साल यूपी में कांवड़ यात्रा की अनुमति पर संज्ञान लेते हुए जस्टिस नरीमन ने कहा कि सबसे पहले भारत के लोगो के जीवन का अधिकार उनका स्वास्थ्य सर्वोपरि है ।उसके बाद धार्मिक भावनाएं आती हैं।
धारा 138 के तहत नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट में कहा कि 'आपराधिक भेड़' के लिबास में 'सिविल भेड़ ' हैं।चेक बाउंस के मामले में पीड़ित के हितों की रक्षा होनी चाहिये।पीड़ित को क्षतिपूर्ति देना पहली जरूरत है।
न्यायेतर हत्याओं के मामले में तत्कालीन चीफ जस्टिस आर.एम. लोढ़ा और जस्टिस नरीमन की पीठ ने पुलिस मुठभेड़ों की जांच करते समय 16 दिशानिर्देशों का पालन किए जाने संबंधी एक सेट निर्धारित किया। यही वो फैसला था जो मणिपुर में न्यायेतर हत्याओं पर 2017 के फैसले का आधार बना।
जस्टिस नरीमन के फैसले इतिहास और साहित्य में उनकी गहरी रुचि को भी प्रदर्शित करते हैं।एक न्यायाधीश के तौर पर फैसले लिखने के लिए जस्टिस नरीमन के पास कभी शब्दों की कमी नहीं रही।