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जस्टिस गोगोईः राज्यसभा में नामित करने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, क्या कहते हैं विधि विशेषज्ञ
Justice Ranjan Gogoi: रंजन गोगोई देश के पूर्व न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा सदस्य के रूप में नामित किये जाने के सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।
Justice Ranjan Gogoi: रंजन गोगोई देश के पूर्व न्यायाधीश रंजन गोगोई (Ranjan Gogoi) को राज्यसभा सदस्य (Rajya Sabha Member) के रूप में नामित किये जाने के सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चुनौती दी गई है। गौरतलब है कि जस्टिस गोगोई को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) द्वारा राज्यसभा के लिए नामित किये जाने के तत्काल बाद कांग्रेस (Congress) सहित विपक्ष (Opposition) के तमाम नेताओं ने सवाल खड़े कर दिये थे। उनके पूर्व सहयोगी रहे रिटायर्ड जस्टिस मदन बी. लोकुर ने भी सख्त टिप्पणी की थी।
इस मामले में ध्यान देने की बात यह है कि कांग्रेस बेशक जस्टिस गोगोई को नामित किये जाने का विरोध कर रही है लेकिन उसने भी पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंगनाथ मिश्र, जस्टिस एम. हिदायतुल्ला और जस्टिस बहरुल इस्लाम को देश की संसद के उच्च सदन में इसी रास्ते से भेजा है। दूसरी बात यह है कि कानून के विशेषज्ञ मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के किसी भी न्यायाधीश को राज्यसभा भेजने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है।
जहां तक संविधान की बात करें तो संविधान यह कहता है कि सुप्रीम कोर्ट का कोई भी न्यायाधीश अवकाश ग्रहण करने के बाद देश की किसी भी अदालत में वकालत नहीं कर सकता है । लेकिन इसके इतर कोई पद लेने में कोई विधिक अड़चन नहीं है।
खैर ताजा मामला यह है कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर प्रतिवादी (गोगोई) के खिलाफ यथास्थिति वारंट जारी करने की मांग की गई है, जिसमें उन्हें यह दिखाने के लिए कहा गया है कि किस अधिकार और योग्यता के आधार पर वह राज्यसभा की सदस्यता के लिए नामित हो सकते हैं। मांग की गई है कि संविधान के अनुसार जांच के बाद उन्हें राज्यसभा सदस्यता से हटा दिया जाए।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश उच्च सदन में संसद के मनोनीत सदस्य हैं। उन्होंने अक्टूबर, 2018 में बतौर मुख्य न्यायाधीश अपनी नियुक्ति के बाद भारत के 46वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य किया था। 17 नवंबर, 2019 को वह सेवानिवृत्त हुए थे।
याचिकाकर्ता वकील सतीश एस. काम्बिये ने याचिका के जरिये कहा है कि संसद की वेबसाइट - काउंसिल ऑफ स्टेट्स पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, जस्टिस गोगोई ने तो कोई किताब लिखी है और न ही उन्होंने सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों, साहित्यिक, कलात्मक और वैज्ञानिक उपलब्धियों में कोई योगदान दिया है। याचिका में कहा गया है कि प्रतिवादी की वेबसाइट पर भी साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के क्षेत्र में उनके विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता ने इससे पहले प्रतिवादी के नामांकन से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 6 के तहत 12 जून, 2020 को केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी, भारत के राष्ट्रपति, नई दिल्ली को आवेदन किया था। आर.टी.आई. आवेदन गृह मंत्रालय, सी.एस. डिवीजन, भारत सरकार, नई दिल्ली को उनके विचार के लिए स्थानांतरित कर दिया गया था। याचिका में कहा गया है कि 24 जुलाई को प्राप्त उत्तर में उस सामग्री का कोई विवरण नहीं है जिस पर राष्ट्रपति ने प्रतिवादी की योग्यता का पता लगाने पर भरोसा किया हो।
वरिष्ठ अधिवक्ता विराग गुप्ता का इस संबंध में कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 80(3) के तहत साहित्य विज्ञान, कला व समाज के अलग अलग क्षेत्रों में विशेष योगदान देने वाले लोगों को राज्यसभा सदस्यता के लिए नामित किया जा सकता है। इससे पहले विधि विशेषज्ञों फली नरीमन, के पाराशरन और केटीएस तुलसी भी नामित किये जा चुके हैं। लेकिन एक पेंच है सामान्यतः महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर रहे लोगों को अवकाशग्रहण के बाद दो साल तक कोई दूसरा पद लेने पर रोक रहती है। अगर इस नजरिये से देखा जाए तो जस्टिस गोगोई की नियुक्ति में थोड़ा जल्दबाजी हुई है यह कहा जा सकता है।