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Kanshi Ram Ki Punyatithi: ऑफिस की छुट्टियों के विवाद से शुरू हुआ था कांशीराम का जातीय संघर्ष
Kanshi Ram Ki Punyatithi: कांशीराम ने महाराष्ट्र के पुणे में डीआरडीओ में बतौर असिस्टेंट साइंटिस्ट ज्वाइन किया था। यहीं से उनकी दलित चेतना का सफ़र शुरू हुआ।
Kanshi Ram Ki Punyatithi: कांशीराम पंजाब (Punjab) के रामदसिया (Ramdasia Sikh) समुदाय के दलित (Dalit Samuday) थे। उन्होंने अपनी बीएससी पूरी करने के बाद 1957 में महाराष्ट्र के पुणे में डीआरडीओ (DRDO) में बतौर असिस्टेंट साइंटिस्ट (Assistant Scientist) ज्वाइन किया था। यहीं से उनकी दलित चेतना का सफ़र शुरू हुआ। कांशीराम का जातिगत भेदभाव से सामना पहली बार पुणे की रिसर्च लैब में काम करते समय हुआ, जहां मैनेजमेंट ने बाबासाहेब अंबेडकर जयंती (Ambedkar Jayanti Jayanti) और बुद्ध जयंती (Buddha Jayanti) की छुट्टियों को रद्द कर दिया था। ये इन दो छुट्टियों को बहाल करने का संघर्ष ही था, जिसने कांशीराम को दलित समुदाय के हितों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया।
कांशीराम ने ऑफिस में देखा था कि जो कर्मचारी डॉक्टर आंबेडकर का जन्मदिन मनाने के लिए छुट्टी लेते थे, उनके साथ ऑफिस में भेदभाव किया जाता था। इसी के चलते कांशीराम 1964 में एक दलित सामाजिक कार्यकर्ता बन गए। उनके करीबी लोगों के अनुसार उन्होंने यह निर्णय डॉक्टर आंबेडकर की किताब (B. R. Ambedkar Ki Kitab) 'एनीहिलेशन ऑफ कास्ट' (Annihilation of Caste) को पढ़कर लिया था।
रिपब्लिकन पार्टी का समर्थन
कांशीराम ने शुरू में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (Republican Party of India) का समर्थन किया। लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Congress) के साथ जुड़े रहने के कारण उनका इस पार्टी से मोह भंग हो गया। इसी वजह से उन्होंने 1971 में अखिल भारतीय एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक कर्मचारी संघ की स्थापना की जो कि बाद में चलकर 1978 में 'बामसेफ' (BAMCEF) बन गया था।
यह एक ऐसा संगठन था जिसका उद्देश्य अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य वर्गों और अल्पसंख्यकों के शिक्षित सदस्यों को अम्बेडकरवादी सिद्धांतों का समर्थन करने के लिए राजी करना था। बामसेफ ने दलित समाज के संपन्न तबके को इकठ्ठा करने का काम किया जो कि ज्यादातर शहरी क्षेत्रों में रहता था।
दलित शोषित समाज संघर्ष समिति
बामसेफ के बाद कांशीराम ने 1981 में दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (डीएसएसएस, या डीएसफोर) नाम से एक अन्य सामाजिक संगठन बनाया। यह एक राजनीतिक शुरुआत थी, जिसका मकसद दलित वोट को एकजुट करना था। यही संगठन आगे चल कर बहुजन समाज पार्टी बना।
बहुजन समाज पार्टी की स्थापना (Bahujan Samaj Party Ki Sthapna)
कांशीराम ने 1984 में बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की। यह डीएसफोर का बड़ा रूप था। कांशीराम ने अब चुनाव लड़ने का फैसला किया। उन्होंने अपना पहला चुनाव 1984 में छत्तीसगढ़ की जांजगीर-चांपा सीट से लड़ा था। इस पार्टी के गठन के बाद कांशीराम ने कहा कि उनकी बहुजन समाज पार्टी पहला चुनाव हारने के लिए, दूसरा चुनाव नजर में आने ले लिए और तीसरा चुनाव जीतने के लिए लड़ेगी।
वीपी सिंह के खिलाफ लड़ा चुनाव
कांशीराम ने 1988 में वी.पी. सिंह (Vishwanath Pratap Singh AKA V. P. Singh) के खिलाफ इलाहाबाद सीट (Allahabad Seat) से चुनाव लड़ा। लेकिन 70,000 वोटों से हार गए। इसके बाद 1989 में कांशीराम ने पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा। मगर तब भी सफलता नहीं मिली, वह चौथे स्थान पर रहे। 1991 में कांशीराम ने मुलायम सिंह (Mulayam Singh) से गठबंधन किया और इटावा से चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस महत्वपूर्ण चुनाव में कांशीराम ने अपने निकटतम भाजपा प्रतिद्वंद्वी को 20,000 मतों से हरा कर पहली बार लोकसभा में प्रवेश किया।
इसके बाद कांशीराम ने 1996 में होशियारपुर से लोकसभा सीट का चुनाव जीता और दूसरी बार लोकसभा पहुंचे। अब तक कांशीराम स्वास्थ्य कारणों से कमजोर हो चुके थे। इसी वजह से उन्होंने 2001 में सार्वजनिक रूप से मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
कांशीराम और बौद्ध धर्म
कांशीराम ने 2002 में घोषणा की थी कि वे बौद्ध धर्म ग्रहण कर लेंगे। उन्होंने कहा था कि वे डॉक्टर आंबेडकर द्वारा धर्म परिवर्तन की 50 वीं वर्षगांठ के मौके पर यानी 14 अक्टूबर, 2006 को बौद्ध धर्म ग्रहण करेंगे। कांशीराम चाहते थे कि उनके साथ उनके 5 करोड़ समर्थक भी इसी दिन धर्म परिवर्तन करें। लेकिन 9 अक्टूबर, 2006 को उनका निधन हो गया। उनकी बौद्ध धर्म ग्रहण करने की मंशा अधूरी रह गयी। उनका अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म के मुताबिक किया गया।
ख़ास बातें (Kanshi Ram Ki Khas Bate)
- कांशीराम का मानना था कि दलित और दूसरी पिछड़ी जातियों की संख्या भारत की जनसंख्या की 85 फ़ीसदी है। लेकिन 15 फ़ीसदी सवर्ण जातियाँ उन पर शासन कर रही हैं।
- जब उन्होंने कांग्रेस से दलित वोट छीन लिए तो कांशीराम ने एक प्रसिद्ध वाक्य था, - अभी तक मैं कांग्रेस की तरफ़ ध्यान दे रहा था। अब वह नष्ट हो गई है। अब मैं भारतीय जनता पार्टी की तरफ़ ध्यान दूँगा।
- एक बार उन्हें भारत का राष्ट्रपति बनाने की भी पेशकश की गई। लेकिन उन्होंने उसे यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वो भारत के प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं, राष्ट्रपति नहीं।
- वो सत्ता का डिस्ट्रीब्यूशन चाहते थे। वो पंजाबी के गुरुकिल्ली शब्द का इस्तेमाल करते थे, जिसका अर्थ था सत्ता की कुंजी। उनका मानना था कि ताकत पाने के लिए स्टेट पर कब्ज़ा ज़रूरी है।
- कांग्रेस के साथ जुड़े दलित नेताओं को वो चमचा नेता कहते थे, जिनको अगर पांच सीट भी दे दी जाए तो वो ख़ुश हो जाते थे।
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