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कश्मीर छोड़ भागने को मजबूर हुए लोग, याद आए वो 1990 के खौफनाक दिन, बढ़ती आतंकी घटनाओं से दहशत का माहौल

Kashmir Mein Aatank Ka Khauf : हाल के दिनों में कश्मीर में हुई आतंकी घटनाओं में घाटी के अल्पसंख्यकों और गैर कश्मीरियों को निशाना बनाया गया है।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman TiwariPublished By Vidushi Mishra
Published on: 19 Oct 2021 6:07 PM IST
Kashmiri Pandits
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कश्मीर से भागते लोग (फोटो- सोशल मीडिया)

Kashmir Mein Aatank Ka Khauf : कश्मीर में आतंकियों की ओर से आम लोगों को निशाना (Aam Logon Ko Nisana Bana Rahe Aatanki) बनाए जाने के बाद दहशत का माहौल (Kashmir Mein Dehsat) लगातार बढ़ता जा रहा है। आतंकियों ने बाहर से आए लोगों के साथ कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandit Aatankiyo Ka Nisana) को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया है। आतंकियों के लिए ऐसे लोगों को निशाना बनाना काफी आसान साबित हो रहा है । वे घटनाओं को अंजाम देने के बाद आसानी से निकल भाग रहे हैं।

सुरक्षाबलों की सतर्कता और कड़े रुख के कारण आतंकी बड़ी घटनाओं को तो अंजाम नहीं दे पा रहे हैं । मगर आम लोगों की टारगेट किलिंग की घटनाओं (Kashmir Mein Target Killing) से लोगों के दिलों में दहशत भर गई है।

कश्मीर में खौफनाक हालात
Kashmir Mein Khaufnaak Halat

इस महीने की शुरुआत से अब तक आतंकियों ने 11 लोगों की हत्याएं (Aatankiyo Ne 11 Logon Ko Maara) की हैं। इन घटनाओं से दहशत में आए लोगों ने घाटी से पलायन (Kashmir Se Logon Ka Palayan)शुरू कर दिया है। रोजी-रोटी की तलाश में घाटी पहुंचे लोगों का मानना है कि ऐसे हालात में घाटी छोड़ देना ही श्रेयस्कर होगा।

आतंकी घटनाओं के बाद शुरू हुए पलायन से लोगों को 1990 की याद (1990 Ke Kashmir Ki Yaad)आने लगी है, जब आतंकी घटनाओं के कारण कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Panditon Ne Kashmir Chhoda) ने घाटी छोड़ने का फैसला किया था।

1990 की याद (फोटो- सोशल मीडिया)

जम्मू-कश्मीर प्रशासन कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी की कोशिश में जुटा हुआ है मगर अभी तक इस काम में पूरी तरह कामयाबी नहीं मिल सकी है।

आम लोगों की टारगेट किलिंग से दहशत
(Kashmir Mein Target Killing)

हाल के दिनों में हुई आतंकी घटनाओं में घाटी के अल्पसंख्यकों और गैर कश्मीरियों (Gair Kashmiriyon Ko Nisana Bana Rahe Aatanki) को निशाना बनाया गया है। पाकिस्तान प्रायोजित इस आतंकवाद में हाइब्रिड आतंकियों के साथ ओवरग्राउंड वर्कर की मदद से घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। टारगेट किलिंग(Target Killing) की बढ़ती घटनाओं के कारण गैर कश्मीरियों और प्रवासी मजदूरों में दहशत (Kashmiriyon Aur Majdooron Mein Dehsat) का माहौल दिख रहा है।

हत्या की घटना को अंजाम देने से पहले आतंकियों की ओर से अपने साफ्ट टारगेट के संबंध में पूरी जानकारी जुटाई जाती है। रेकी का काम पूरा होने के बाद आतंकी टारगेट किलिंग (Aantankiyon Ki Target Killing) करके आराम से निकल जाते हैं। इस तरह की हत्याओं में बड़े हथियारों की भी जरूरत नहीं पड़ती।

जम्मू स्टेशन पर सोमवार से ही ऐसे लोगों की भीड़ लगी हुई है जो पहली उपलब्ध ट्रेन से ही घाटी छोड़ देने के प्रयास में जुटे हुए हैं। यही कारण है कि लोगों को 1990 की याद(1990 Ke Kashmir Ki Yaad) आने लगी है , जब आतंकी घटनाओं में बढ़ोतरी के कारण लोगों में ऐसी ही दहशत दिखी थी। बिहारी मजदूरों (Bihari Majdoor Ki Maut) को निशाना बनाए जाने के बाद यह दहशत काफी बढ़ चुकी है।

खौफ में मजदूर (फोटो- सोशल मीडिया)

आतंकियों से बचने के लिए पलायन

(Aatankiyo Se Bachane Ke Liye Palayan)

बढ़ती आतंकी घटनाओं का जिक्र करते हुए एक कश्मीरी पंडित का कहना है कि वह सरकारी टीचर है । कुछ साल पहले ही प्रमोशन पाकर घाटी में वापस लौटा है ।मगर आतंकी घटनाओं के कारण उसे एक बार फिर भागकर जम्मू आना पड़ा है।

टीचर का दावा है कि प्रधानमंत्री पैकेज के तहत नौकरी पाने वाले कई कश्मीरी पंडित भी जम्मू आ गए हैं ताकि आतंकियों के वार से बच सकें। एक और कश्मीरी पंडित ने स्थिति की भयावहता बताते हुए कहा कि घाटी में एक बार फिर 1990 जैसे हालात दिख रहे हैं। उनके दो बेटे कुपवाड़ा में काम करते हैं । मगर आतंकियों के भय के कारण उन्होंने काम छोड़ दिया है।

कश्मीरी पंडितों के परिजन भी छोड़ रहे घाटी
Kashmiri Panditon Ke Pariyar Chodh Rahe Kashmir)

कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिकू का कहना है कि अनंतनाग, पुलवामा, बड़गाम और आसपास के इलाकों से सैकड़ों लोगों ने दहशत के मारे पलायन शुरू कर दिया है। इनमें काफी संख्या में कश्मीरी पंडितों के परिजन भी शामिल हैं, जिन्होंने घाटी छोड़ना शुरू कर दिया है। यह पलायन 1990 की याद(Kashmir Mein 1990 Jaise Halat) दिलाने वाला है।

आतंकियों की गोली का शिकार बने टीचर दीपक चंद के एक रिश्तेदार का भी कहना है कि कश्मीर स्वर्ग नहीं बल्कि नरक बन चुका है। घाटी में 1990 (Kashmir Mein 1990 Jaise Halat) जैसे हालात दिखने लगे हैं, जब हिंदुओं और खासकर कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़ने के लिए मजबूर (Kashmir Chhodhne Ko Majboor Kashmiri Pandit) किया गया था।

कश्मीर छोड़ने को मजबूर हुए लोग (फोटो- सोशल मीडिया)

उन्होंने सरकार की ओर से किए जा रहे प्रयासों को नाकाफी बताया। आतंकियों ने इसी महीने श्रीनगर के बड़े दवा कारोबारी और कश्मीरी पंडित मक्खन लाल बिदरु को भी निशाना बनाया था।

आम लोगों को सुरक्षा देना संभव नहीं
(Aam Logon Ko Kashmir Mein Jada Khatra)

2019 के अगस्त महीने में अनुच्छेद 370 समाप्त किए जाने के बाद घाटी में सरकार की ओर से कड़ा रुख अपनाया गया था। उसके बाद आतंकी घटनाओं में काफी कमी आई थी मगर हाल के दिनों में आतंकियों ने एक बार फिर सिर उठाना शुरू कर दिया है।

हालांकि सरकार की ओर से बनाई गई रणनीति के बाद सुरक्षाबलों ने आतंकियों की धरपकड़ का बड़ा अभियान छेड़ (Aatankiyo Ke Liye Dadh Pakad Abhiyan) रखा है। हाल के दिनों में सुरक्षा बलों की कार्रवाई में कई आतंकी मारे भी गए हैं ।मगर सेना के नौ जवानों को शहादत भी देनी पड़ी है।

कश्मीर के आईजी विजय कुमार का कहना है कि सुरक्षाबलों और पुलिस की सतर्कता के कारण आतंकी बड़ी घटनाओं को अंजाम देने में नाकाम साबित हो रहे हैं। मगर अब उन्होंने आम नागरिकों की टारगेट किलिंग शुरू कर दी है। सभी लोगों को सुरक्षा देना संभव नहीं है । इसी कारण आतंकियों की ओर से उन्हें निशाना बनाकर दहशत का माहौल पैदा करने की साजिश रची जा रही है।



Vidushi Mishra

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