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Shivaji Maharaj: मुगलों के छक्के छुड़ाने वाले शिवाजी, गुरिल्ला युद्ध से सबको कर दिया था हैरान
Shivaji Maharaj Jayanti: शिवाजी महाराज की जयंती हर साल 19 फरवरी को मनाई जाती है मगर हिंदू संवत कैलेंडर के मुताबिक उनकी जयंती 21 मार्च को पड़ती है।
Shivaji Maharaj Jayanti: मराठा साम्राज्य की स्थापना में बड़ी भूमिका निभाने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) का पूरा जीवन अदम्य साहस से भरा हुआ था। वैसे तो शिवाजी महाराज की जयंती हर साल 19 फरवरी को मनाई जाती है मगर हिंदू संवत कैलेंडर के मुताबिक उनकी जयंती 21 मार्च को पड़ती (Birth Anniversary) है। वर्ष 1674 में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज ने वर्षों तक मुगलों से लोहा लिया था और उन्हें धूल चटाने में कामयाबी हासिल की थी। उन्होंने अपनी वीरता से मुगलों के छक्के छुड़ा दिए थे। उन्हें युद्ध में गुरिल्ला रणनीति की नई शैली विकसित की थी और इसके जरिए सबको हैरान कर दिया था।
शिवाजी महाराज की जयंती मनाने की शुरुआत महात्मा ज्योति राव फुले ने 1870 में पुणे में की थी। उन्होंने ही पुणे से 100 किलोमीटर दूर रायगढ़ में शिवाजी महाराज की समाधि की भी खोज की थी। बाद में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाल गंगाधर राव तिलक ने शिवाजी महाराज की जयंती मनाने की परंपरा को आगे बढ़ाया और फिर उनकी जयंती धूमधाम से मनाई जाने लगी।
शिवाजी पर रमा जीजाबाई का काफी प्रभाव
शिवाजी महाराज का जन्म 1630 में शिवनेरी के दुर्ग में हुआ था। वैसे उनके जन्म के वर्ष को लेकर हमेशा इतिहासकारों में मतभेद रहा है। इतिहासकारों का एक वर्ग मानता है कि शिवाजी महाराज का जन्म 1630 में हुआ था जबकि दूसरे वर्ग का मानना है कि वे 1627 में पैदा हुए थे। शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले अहमदनगर सल्तनत की सेना में सेनापति थे जबकि उनकी मां जीजाबाई योद्धा के साथ ही धार्मिक ग्रंथों में रुचि रखने वाली महिला थी।
शिवाजी के जीवन पर उनकी मां जीजाबाई का काफी प्रभाव पड़ा था। जीजाबाई ने ही बचपन से ही शिवाजी महाराज को रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों के बारे में गहराई से शिक्षा दी थी। उनका पूरा बचपन धार्मिक ग्रंथों की वीरता से भरी हुई कहानियों को सुनने में बीता था और इसी कारण उनके मन में बचपन से ही शासक वर्ग की क्रूर नीतियों के खिलाफ संघर्ष करने की भावना जाग उठी थी।
शिवाजी की गुरिल्ला युद्ध रणनीति
शिवाजी महाराज को एक उत्कृष्ट युद्ध रणनीतिकार के रूप में जाना जाता है और उन्होंने गुरिल्ला रणनीति का इस्तेमाल करते हुए दुश्मन सेना को हैरान कर दिया था। गुरिल्ला युद्ध रणनीति सिद्धांत था कि अचानक घात लगाकर दुश्मन सेना पर हमला करके उसे खत्म कर देना और फिर निकल भागना। शिवाजी को कम उम्र में ही सेना का महत्व समझ में आ गया था और इसी कारण उन्होंने अपने पिता की सेना को एक विशाल सेना में परिवर्तित कर दिया था।
प्रतापगढ़, सूरत और सिंहगढ़ की लड़ाई में उन्होंने सीमित संसाधनों के बावजूद जीत हासिल की थी। इन लड़ाईयों में उनकी सैन्य तैयारी और युद्ध कौशल का बड़ा योगदान माना जाता है। अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने का हमेशा ख्याल रखा। गरीबों को अपनी सेना में शामिल करने के लिए भी उन्होंने प्रोत्साहित किया।
सेना में मुस्लिम योद्धाओं को भी शामिल किया
शिवाजी महाराज मुगलों से लोहा लेने वाले योद्धा थे मगर उन्होंने अपने पूरे जीवन काल में किसी धार्मिक स्थल पर हमला नहीं किया। उनकी छवि धर्मनिरपेक्ष थी और हिंदू मान्यताओं से समझौता किए बगैर उन्होंने सभी धर्मों को समायोजित करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। यह भी काफी आश्चर्यजनक तथ्य है कि जीवन भर मुगलों से लड़ाई लड़ने के बावजूद उनकी सेना में कई भरोसेमंद मुस्लिम योद्धा शामिल थे जो हमेशा उनकी अपेक्षाओं पर खरे उतरे।
नौसैनिक किलों की स्थापना
इतिहासकारों का मानना है कि वे देश के पहले ऐसे शासक थे जिन्होंने मातृभूमि को विदेशी आक्रमण से बचाने के लिए नौसेना के बेड़े के महत्व को समझा। उन्होंने कोकण क्षेत्र की रक्षा के लिए नौसैनिक किलों की भी स्थापना की। इस कड़ी में विजयदुर्ग और सिंधुदुर्ग का उल्लेख किया जा सकता है।
देश के विभिन्न हिस्सों में इस महान योद्धा को आज भी श्रद्धा के साथ याद किया जाता है। वैसे महाराष्ट्र में उनकी जयंती पर विभिन्न कार्यक्रमों का बड़े पैमाने पर आयोजन होता है। उनकी जयंती को लोकप्रिय बनाने में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाल गंगाधर तिलक की बड़ी भूमिका मानी जाती है। कई दिनों तक तेज बुखार से पीड़ित होने के बाद 3 अप्रैल 1680 को इस महान योद्धा ने आखिरी सांस ली थी।