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Krishna River Water Dispute: सुप्रीम कोर्ट के दो जजों ने खुद को कृष्णा नदी केस से किया अलग, जानें क्या है वजह

Krishna Nadi Case: सुप्रीम कोर्ट की बेंच के दो जजों- जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना ने एक मामले से अपने आप को अलग करके एक नया रिकॉर्ड बना दिया है।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Shreya
Published on: 11 Jan 2022 10:31 AM IST
Krishna River Water Dispute: सुप्रीम कोर्ट के दो जजों ने खुद को कृष्णा नदी केस से किया अलग, जानें क्या है वजह
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सुप्रीम कोर्ट (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

Krishna Nadi Case: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की बेंच के दो जजों- जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) और एएस बोपन्ना (AS Bopanna) ने एक मामले से अपने आप को अलग करके एक नया रिकॉर्ड बना दिया है। ये पहली बार हुआ है कि किसी केस से दो-दो जजों ने अपने को अलग कर लिया हो। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना ने कृष्णा नदी जल विवाद (Krishna River Water Dispute) मामले की सुनवाई से अपने को सिर्फ इसलिए अलग कर लिया है क्योंकि वे महाराष्ट्र (Maharashtra) और कर्नाटक (Karnataka) से हैं। ये मामला महाराष्ट्र और कर्नाटक तथा आंध्र व तेलंगाना के बीच चल रहा है।

हालांकि न्यायाधीश 'डर या पक्षपात' के बिना न्याय करने की शपथ लेते हैं, लेकिन अपमानजनक या अपमानजनक आलोचना की आशंकाओं ने उन्हें कृष्णा जल विवाद मामले (Krishna Jal Vivad Mamla) से हटने के लिए मजबूर कर दिया है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने न्यायमूर्ति बोपन्ना से परामर्श करने के बाद कहा कि हम 'अभिशापों' का निशाना नहीं बनना चाहते हैं। न्यायमूर्ति बोपन्ना का विचार था कि इसी तरह के न्यायाधीशों ने संवेदनशील नदी जल विवाद मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।

मामले की सुनवाई करते समय मूल राज्य के पूर्वाग्रह के आरोप से बचने के लिए अलग होने का एक कारण हो सकता है क्योंकि न्यायाधीश क्रमशः महाराष्ट्र और कर्नाटक से थे। लेकिन, मामले की सुनवाई से अपने को अलग कर लेने की असली और तात्कालिक वजह कुछ और है। हुआ ये कि निर्धारित सुनवाई से कुछ दिन पहले, इन दो न्यायाधीशों के पास ढेरों ईमेल आए थे जिनमें उन पर पक्षपात का आरोप लगाया गया था।

क्या है कृष्णा नदी जल विवाद (Kya Hai Krishna Jal Vivad)?

कृष्णा नदी जल विवाद पिछले 14 वर्षों से चल रहा है। इसमें तेलंगाना ने कर्नाटक पर अपने हिस्से से अधिक पानी का उपयोग करने का आरोप लगाया है। जबकि कर्नाटक का कहना है कि समुद्र में बहाकर पानी बर्बाद होने के बजाय इसका उपयोग सिंचाई के लिए और सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए करना कहीं बेहतर है। इन राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने न्यायाधीशों से अनुरोध किया है कि वे सुनवाई से अपने को अलग न करें। लेकिन दोनों न्यायाधीश अपने निर्णय पर दृढ़ रहे।

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