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56 साल बाद भी शास्त्री जी की मौत पर उठते हैं सवाल...

11 जनवरी, 1966 की वो रात जब भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत हुई, आज भी भारत में चर्चा का विषय बनी हुई है. ताशकंद (Tashkent) में उस रात को क्या हुआ था यह आज भी लोगों के लिए एक रहस्य है. आज जानेंगे शास्त्री जी के जीवन के उस आखिरी दिन की कहानी.

Anshul Thakur
Published on: 11 Jan 2022 10:30 AM IST
Lal Bahadur Shastri death anniversary (Photo-Google)
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 56 साल बाद भी शास्त्री जी की मौत पर उठते हैं सवाल (Photo-Google)

Lal Bahadur Shastri death anniversary: भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (Prime Minister Lal Bahadur Shastri) का 11 जनवरी 1966 को ही निधन हुआ था (Lal Bahadur Shastri death). वह अपनी साफ सुथरी छवि के लिए जाने जाते थे. उन्होंने 9 जून 1964 को प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) के निधन के बाद प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर करीब 18 महीने तक देश की सेवा की. उन्हीं के नेतृत्व में भारत ने 1965 की जंग में पाकिस्तान (Pakistan) को हराया था. जिसके बाद वह ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने गए. जहां 11 जनवरी 1966 (11 January) की रात में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई (Lal Bahadur Shastri death anniversary).

ताशकंद में उस रात ऐसा क्या हुआ था यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है. हालाँकि की वक़्त वक़्त पर विपक्ष के लोग इस रहस्य से पर्दा उठाने की मांग करते है, लेकिन ऐसा हो नहीं पता. शास्त्री जी की मौत को लेकर तो आधिकारिक तौर पर यह कहा गया था की उन्हें दिल का दौरा पड़ा था. शास्त्री जी पहले से ही दिल के मरीज़ थे और सन 1959 में उन्हें एक हार्ट अटैक भी आ चूका था. लेकिन उनकी मौत के बाद जो जानकारी सामने आई उसको सुन कर सभी ये सोचने पर मजबूर हो गए की क्या वाकई यह एक हार्ट अटैक था.

1965 की भारत-पाक लड़ाई के बाद ताशकंद में हुआ शांति समझौता

साल 1965 में अप्रैल से 23 सितंबर (23 September) के बीच भारत-पाकिस्तान युद्ध (indo-pak war) 6 महीने तक चला था. जान युद्ध खत्म हुआ तो 4 महीने बाद जनवरी, 1966 में भारत-पाकिस्तान के प्रमुख नेता तत्कालीन रूसी क्षेत्र ताशकंद में शांति समझौते के लिए एकत्रित हुए. पाकिस्तान की ओर से राष्ट्रपति अयूब खान ताशकंद पहुंचे और भारत से तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री पहुंचे थे. जहां 10 जनवरी को दोनों देशों ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते में लाल बहादुर शास्त्री भारत द्वारा जीती गई ज़मीन पाकिस्तान को लौटाने पर राजी हो गए थे, जिसके कारण उनकी काफी आलोचना हो रही थी.

रात 10 बजे कमरे में लौटे थे शास्त्री जी

जानकारी के अनुसार समझौते के बाद शास्त्री जी सोने के लिए चले गए. इसके बाद रात करीब 2 बजे निधन का समाचार मिला. शास्त्री जी के साथ ताशकंत गए उनके सूचना अधिकारी कुलदीप नैय्यर ने एक इंटरव्यू में बताया की उस रात लाल बहादुर शास्त्री अपने घर पर फ़ोन लगकर कर अपनी पत्नी से बात करने की कोशिश की थी. लेकिन शास्त्री जी की पत्नी फ़ोन पर नहीं आई. इसका की वह भी हाजी पीर और ठिथवाल पाकिस्तान को देने के शास्त्री जी के फैसले से नाराज़ थी. इसके बाद उन्होंने अपने सचिव वेंकटरमन को भी फोन लगाया और कर भारत में लोगों की प्रतिक्रियाएं जानी. वेंकटरमन ने शास्त्री जी को बताया की फिलहाल केवल अटल बिहारी वाजपेई और कृष्ण मेनन की ही प्रतिक्रिया आई है और दोनों ने ही आपके फैसले की आलोचना की है. कहा जाता है इस बात का शास्त्री जी को बहुत धक्का लगा था और समझौते के 12 घंटे के भीतर उनकी अचानक मौत हो गई.

कुलदीप नैय्यर द्वारा लिखी किताब 'बियोंड द लाइन' में लिखा है, "उस रात वह सो रहे थे तब उनके कमरे के गेट पर अचानक एक रूसी महिला ने दस्तक दी. महिला ने उन्हें बताया की भारत के प्रधानमंत्री की मृत्यु हो चुकी है. यह सुचना मिलते है वह शास्त्री जी के कमरे की तरफ दौड़े जहाँ उन्हें रूसी प्रधानमंत्री एलेक्सी कोस्गेन बरामदे ने इशारे से बताया कि शास्त्री नहीं रहे." बताया जाता है की शास्त्री जी को आखरी बार लड़खड़ते हुए अपने कमरे में टहलते देखा गया था. करीब 2 बजे जब दुनिया को यह खबर मिली की भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री नहीं रहे तो सब सकते में रह गए.

मौत के बाद नीला पड़ गया था शास्त्री जी का शरीर

कई लोगों का कहना है की शास्त्री की मौत हुई ज़हर के वजह से हुई थी. क्योकि उनकी मौत के बाद शरीर के नीला पड़ने लगा था. उनकी पत्नी का भी यही मानना था. ऐसा इसलिए भी है की कहा जाता है की उस रात शास्त्री जी का खाना उनके निजी सहायक रामनाथ ने नहीं, बल्कि सोवियत रूस में भारतीय राजदूत टीएन कौल के कुक जान मोहम्मद ने बनाया था. जिसके कारण लोगों ने आशंका जताई थी कि शायद उनके खाने में जहर मिला दिया गया था. लेकिन वहीं कुलदीप के अनुसार शास्त्री की के पार्थिव शरीर पर बाम लगाया गया था ताकि वो खराब ना हो. इसी वजह से शरीर नीला रंग हो गया था.

धीरे धीरे और गहराया शास्त्री जी की मौत पर संदेह

सबसे पहले शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री ने दावा कि उनकी मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई है. उन्होंने जानना चाहा की अगर दिल का दौरा पड़ा भी था तो उनका शरीर नीला क्यों पड़ा और उस पर सफेद चकत्ते कैसे पड़ गए. शास्त्री की मौत पर लगातार उठ रहे सवालों को देखते हुए 2 अक्टूबर 1970 को शास्त्री के जन्मदिन के मौके पर ललिता शास्त्री ने एक जांच की मांग की थी. इस मामले में संशय तब और बढ़ गया जब सरकार द्वारा शास्त्री की मौत पर जांच के लिए गठित की गई समिति के निजी डॉक्टर आर.एन. सिंह और निजी सहायक रामनाथ की मौत अलग-अलग हादसों में हो गई. चुकाने वाली बात यह भी थी की ये दोनों लोग ताशकंद के दौरे शास्त्री के साथ थे.

लाल बहादुर शास्त्री के शव के पोस्टमार्टम को लेकर भी कई बार सवाल उठते है, की आखिर क्यों एक प्रधानमंत्री की अचानक मृत्यु हो जाने के बाद भी उनके शव का पोस्टमार्टम नहीं कराया. लोगों का कहना है की अगर पोस्टमार्टम कराया जाता तो उनकी मौत की असली वजह सामने आ सकती थी. कई लोगों का तो यहां तक मानना है की उनकी बॉडी पर कट के निशान थे. लेकिन पोस्टमार्टम न होने के कारण कभी पता नहीं चला कि ये निशान क्यों थे. ऐसी ही कई बातें है जो प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत पर संदेह करातीं है.



Anshul Thakur

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