नई दिल्ली: प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल द लांसेट ने देश में व्याप्त मौजूदा कोरोना संकट के लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहराया है। पत्रिका के संपादकीय में कहा गया है कि सरकार ने न केवल सुपरस्प्रेडर धार्मिक और राजनीतिक आयोजनों की अनुमति दी, बल्कि सरकार की लापरवाही के कारण देश में वैक्सीनेशन का कैंपेन भी धीमा पड़ गया। कोरोना की मौजूदा भयानक लहर से निपटने में भारत सरकार की पूर्ण विफलता पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मीडिया, वैज्ञानिकों, एक्सपर्ट्स और संगठनों द्वारा कड़ी आलोचना पहले से ही की जा रही है। इसी कड़ी में विश्व प्रसिद्ध मेडिकल पत्रिका 'लांसेट' ने मोदी सरकार को कस कर लताड़ते हुए अपने संपादकीय में लिखा है कि मोदी सरकार कोरोना संकट से जिस तरह निपट रही थी उससे यही लगता है कि वह महामारी से निपटने से कहीं ज्यादा ट्विटर पर अपनी आलोचना वाले पोस्ट्स हटवाने के काम में व्यस्त थी। पत्रिका ने लिखा है कि इस संकट के दौरान आलोचना और मुक्त विमर्श को दबाने की मोदी की कोशिशें अक्षम्य हैं।
लांसेट ने इंस्टिट्यूट फ़ॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के अनुमान का हवाला देते हुए कहा है कि एक अगस्त तक भारत में कोरोना से मौतों की संख्या दस लाख पहुंच सकती है और अगर ऐसा हुआ तो मोदी सरकार की एक राष्ट्रीय त्रासदी को खुद अपने ऊपर लाने की जिम्मेदार होगी। लांसेट ने साफ साफ कहा कि भारत ने कोरोना को कंट्रोल करने की शुरुआती सफलता को हाथ से फिसल जाने दिया। इस अप्रैल तक आलम यह था कि सरकार की कोविड टास्क फोर्स की कई महीनों से बैठक ही नहीं हुई थी। इनके परिणाम साफ-साफ हमारे सामने हैं।
पत्रिका ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली पर तल्ख टिप्पणी करते हुए लिखा है कि उनका काम माफी के लायक नहीं है। पत्रिका का यह भी कहना है कि पिछले साल देश ने कोरोना महामारी पर सफल नियंत्रण हासिल किया था मगर दूसरी लहर से निपटने में गलतियां की गईं और प्रधानमंत्री को इन गलतियों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
चेतावनी की अनदेखी से 10 लाख लोगों की हो सकती है मौत
पत्रिका के मुताबिक सुपरस्प्रेडर आयोजनों के जोखिम को लेकर चेतावनी दी गई थी मगर इसके बावजूद सरकार ने आयोजनों पर रोक नहीं लगाई। इन आयोजनों में देश के लाखों लोगों ने हिस्सा लिया। इसके साथ ही बड़ी-बड़ी चुनावी रैलियां की गईं जिनमें कोविड-19 की रोकथाम से जुड़े नियमों को पूरी तरह ताक पर रख दिया गया।
इस प्रसिद्ध पत्रिका के संपादकीय में अनुमान लगाया गया है कि भारत में इस साल एक अगस्त तक कोरोना से दस लाख लोगों की मौत हो सकती है। संपादकीय के मुताबिक अगर ऐसा हुआ तो मोदी सरकार राष्ट्रीय तबाही के लिए जिम्मेदार मानी जाएगी, क्योंकि उसने चेतावनी को अनदेखा किया और धार्मिक और चुनावी रैलियों के आयोजन को अनुमति दी।
एक रैली के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो: सोशल मीडिया)
आलोचनाओं से सबक लेने की जगह लगाम लगाने की कोशिश
लांसेट का कहना है कि मोदी सरकार कोरोना महामारी पर नियंत्रण पाने के बजाय अपनी आलोचनाओं पर लगाम लगाने की कोशिश में लगी हुई है। पत्रिका के मुताबिक ट्विटर पर हो रही आलोचनाओं और खुली बहस पर लगाम लगाने पर सरकार का ध्यान ज्यादा है। पत्रिका ने केंद्र सरकार की वैक्सीन पॉलिसी की आलोचना करते हुए कहा कि सरकार ने राज्यों के साथ चर्चा किए बिना नीति में फेरबदल किया और इसी का नतीजा है कि अभी तक सिर्फ दो फ़ीसदी लोगों का ही टीकाकरण किया जा सका है।
सरकार ने दिया जीत का झूठा संदेश
लांसेट के संपादकीय में लिखा है कि सरकार के टॉप अधिकारियों ने जल्दबाजी में कोरोना पर जीत का ऐलान कर दिया। जिसके चलते सब निश्चिंतता की स्थिति में आ गए और आगे के लिए पर्याप्त तैयारियां तक नहीं की गईं।
पत्रिका ने स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के बयान का जिक्र किया है जिसमें उन्होंने कहा था कि हम कोरोना के खात्मे की स्थिति में पहुंच गए हैं। पत्रिका ने लिखा है कि सरकार के रवैये से यह संकेत गया कि भारत ने कोरोना को शिकस्त दे दी है, क्योंकि कई महीनों तक कम तादाद में कोरोना के केस आ रहे थे। जबकि बारबार कोरोना की दूसरी लहर के खतरों की चेतावनी दी जा रही थी और कोरोना के नए स्ट्रेन सामने आ गये थे।
इतना ही नहीं आंकड़ों के मॉडल पर यह गलत कहा गया कि भारत में हर्ड इम्यूनिटी आ गई है। इससे निश्चिंतता को बढ़ावा मिला और पर्याप्त तैयारियां नहीं की गईं। सच्चाई यह थी कि जनवरी में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के एक सीरो सर्वे से पता चला था कि सिर्फ 21 फीसदी आबादी में कोरोना वायरस के खिलाफ एन्टीबॉडी है।
सरकार की गलती से पैदा हुआ संकट
पूरी दुनिया में प्रसिद्ध इस मेडिकल जर्नल का कहना है कि पिछले साल कोरोना के शुरुआती दौर में सरकार की ओर से महामारी पर नियंत्रण पाने में बेहतरीन काम किया गया था, लेकिन दूसरी लहर में सरकार ने बड़ी गलतियां करके देश को एक संकट की ओर धकेल दिया। महामारी के बढ़ते संकट के बीच सरकार को एक बार फिर जिम्मेदार और पारदर्शी ढंग से काम करना चाहिए ताकि देश के लोगों को इस मुसीबत से निजात मिल सके।
एक कार्यक्रम के दौरान नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो: सोशल मीडिया)
वैक्सीनेशन में तेजी की जरूरत
पत्रिका ने भारत के टीकाकरण अभियान की प्लानिंग की भी बखिया उधेड़ कर रख दी है। लांसेट ने लिखा है कि टीकाकरण का आलम यह है कि अभी तक कुल जनसंख्या के 2 फीसदी का टीकाकरण हुआ है। संघीय यानी केंद्रीय स्तर पर भारत की टीकाकरण योजना देखते-देखते ध्वस्त हो गई। सरकार ने राज्यों से विचार विमर्श किये बगैर अचानक नीति बदल दी और टीकाकरण का दायरा 18 वर्ष से ज्यादा उम्र वालों के लिए बढ़ा दिया। इससे सप्लाई बेपटरी हो गई, व्यापक कंफ्यूजन पैदा हो गया और वैक्सीनों का एक ऐसा बाजार बन गया जिसमें राज्य और अस्पतालों के सिस्टम आपस में ही प्रतिस्पर्धा में उलझ गए।
लांसेट ने कहा है कि भारत के बिगड़े हुई टीकाकरण अभियान को तत्काल दुरुस्त किया जाना चाहिए और इसे सही तरीके से लागू करना चाहिए। लांसेट ने भारत के टीकाकरण अभियान में फिलवक्त दो रुकावटें गिनाई हैं - वैक्सीनों की सप्लाई और वितरण सिस्टम। पत्रिका ने कहा है कि एक ऐसा वितरण सिस्टम बने जिसमें ग्रामीण इलाके और गरीब लोग भी कवर किये जायें। ये दो वर्ग ऐसे हैं जिनके पास चिकित्सा और देखभाल की कोई सहूलियत नहीं है।
पत्रिका का कहना है कि सरकार को वैक्सीनेशन के कार्यक्रम को बेहतर ढंग से चलाना चाहिए और इसमें तेजी लाई जानी चाहिए। इसके साथ ही जनता को सही आंकड़े और जानकारियां भी दी जानी चाहिए।
आईसीएमआर के महामारी विज्ञान विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ ललित कांत ने लांसेट में छपे संपादकीय से सहमति जताई है। उनका कहना है कि आज देश में कोरोना के कारण जो गंभीर स्थिति पैदा हुई है, उसकी सरकार को जिम्मेदारी लेनी चाहिए। हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से अभी तक इस बाबत कोई टिप्पणी नहीं की गई है।
राष्ट्रीय लॉकडाउन जरूरी
लांसेट ने कहा है कि लोगों को वैक्सीन लगाने के अभियान के दौरान वायरस के फैलाव के काम को गहन तरीके से करना होगा। सरकार नियमित समय पर सही डेटा प्रकाशित कर और जनता को बताए कि क्या हो रहा है और महामारी पर लगाम लगाने के लिए क्या किया जाना है। पत्रिका ने कहा है कि सरकार को राष्ट्रीय लॉकडाउन लगाने पर विचार करना चाहिए।
जनता को बताएं, समझाएं
लांसेट ने कहा है कि केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका है कि वो जनता को मास्क पहनने, सोशल डिस्टेनसिंग, स्व क्वारंटाइन और टेस्टिंग की जरूरत को समझाए और भीड़ वाले आयोजनों को रोके। सरकार को वायरस के जीनोम सिक्वेंसिंग का विस्तार करना चाहिए ताकि नए वेरिएंट को समझ कर उन्हें नियंत्रित किया जा सके।
भारत को अब इस संकट से निपटने में अपना रुख फिर से तैयार करना होगा। इस रिस्पांस की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार अपनी गलतियां स्वीकार करे, जिम्मेदारराना लीडरशिप उपलब्ध कराए और एक ऐसा सार्वजनिक स्वास्थ्य सिस्टम लागू करे जो पूरी तरह साइंटिफिक हो।