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साल 2021 कोरोना महामारी: उम्मीदों के साथ शुरू हुआ साल, अनिश्चितता के साथ हो रहा खत्म
इस साल जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं रहा जो कोरोना की वजह से प्रभावित नहीं हुआ हो। लाखों जिंदगियां तबाह हो गई और लाखों लोगों की रोजी-रोटी चली गई।
Look Back Year 2021: 2021 की बिदाई होने वाली है और नया साल आने वाला है। 2020 तो कोरोना महामारी (Coronavirus 2020) में ही बीत गया अथा लेकिन 2021 में कोरोना ने भारत में ज्यादा कहर बरपाया। महामारी के चलते इस साल ने लोगों के जहन में कभी न मिटने वाली छाप छोड़ी। इस साल आई कोरोना की भयानक लहर ने हमारे मन में ऐसी खौफनाक छाप छोड़ी कि हजारों साल बाद भी इसके दर्द को महसूस किया जा सकेगा।
इस साल जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं रहा जो कोरोना की वजह से प्रभावित नहीं हुआ हो। लाखों जिंदगियां तबाह हो गई और लाखों लोगों की रोजी-रोटी चली गई। 2021 में कोरोना की पाबंदियां बहुत हट गईं, लेकिन आर्थिक संकट वैसे का वैसा रहा।
2020 में लॉकडाउन (Lockdown 2020) और कोरोना से जुड़े कई प्रतिबंध झेलने के बाद उम्मीद की गयी थी कि 2021 अच्छा बीतेगा और महामारी से छुटकारा मिलेगा लेकिन 2021 की शुरुआत के साथ ये उम्मीद और टूटती हुई नज़र आई। 2021 की शुरुआत कोरोना की दूसरी लहर के साथ हुई, जिसने हर किसी को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से चोट पहुंचाई। 2021 का अंत भी दहशत और अनिश्चितता के साथ हो रहा है।
कोरोना की वैक्सीनें
Coronavirus Vaccine
वर्ष 2021 इस मामले में अच्छा भी रहा कि कोरोना से बचाव की वैक्सीनें रिकार्ड तोड़ समय में तैयार हो कर लांच हो गईं। फाइजर, आस्ट्रा ज़ेनेका, मॉडर्ना, जॉनसन एंड जॉनसन, सिनोवैक, सिनोफार्म, भारत बायोटेक, स्पुतनिक और कोवोवैक्स की वैक्सीनें हमारे बीच आ गईं। यही नहीं, पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन किया गया। वर्ष 2021 इस बात के लिए याद किया जाएगा कि इतिहास में पहली बार रिकार्ड समय में कोई वैक्सीन तैयार करके लोगों को लगने भी लगी।
ये भी ख़ास बात रही कि वैक्सीन की एक नई टेक्नोलॉजी भी डेवलप हो गयी जिससे अब कैंसर की वैक्सीन बनने की उम्मीद जगी है। भारत ने 16 जनवरी 2021 को अपना टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया। शुरुआत में 3,006 टीकाकरण केंद्रों का संचालन किया गया। प्रत्येक टीकाकरण केंद्र पर कोविशील्ड या कोवैक्सिन के टीके लगे। वैक्सीनेशन के पहले दिन 165,714 लोगों का टीकाकरण किया गया।
डेल्टा वेरियंट
Delta Variants
भारत में कोरोना के फ्रंट पर साल की शुरुआत सकारात्मक रही थी, केस काफी घट गए थे और लग रहा था कि बुरा वक्त बीत गया है। लेकिन मार्च के आखिर में अचानक केस बढ़ने लगे और देखते देखते एक विस्फोट जैसा हो गया।
पता चला कि कोरोना वायरस म्यूटेट हो कर नए स्वरुप में आ गया है। इस नए स्वरूप ने मार्च से मई के बीच बहुत तबाही मचाई। इस वेरियंट ने लोगों के लिए सांस लेना मुश्किल कर दिया। इस वेरियंट के बाद डेल्टा प्लस वेरियंट भी काफी फैला।
ऑक्सीजन की कमी
Lack of Oxygen
इस साल भारत ने कोरोना का ऐसा अकाहर देखा जिसमें लोगों को ऑक्सीजन, अस्पताल में बेड, दवाओं आदि के लिए दर दर भटकना पड़ा। ऑक्सीजन और दवाओं की कालाबाजारी हुई। भारत में हाहाकार मच गया।
लांसेट पत्रिका के मुताबिक 10 अप्रैल, 2021 तक भारत तीसरा सबसे बड़ा कोरोना प्रभावित देश बन गया था। मार्च 2021 के मध्य से, दूसरी लहर शुरू हुई और एक मई को देश में 4,01,993 नए मामले आए तो 3523 लोगों की मौत हो गई।
वहीं 18 मई को देश में एक दिन में मौत के रिकॉर्ड टूट गए और सर्वाधिक 4,329 लोगों को कोविड की वजह से अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। प्रमुख प्रभावित राज्यों में महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल रहे।
ब्लैक फंगस
Black Fungus
कोरोना के मामलों के बीच एक दूसरे संक्रमण ने भारत को अपनी चपेट में लिया। ये था ब्लैक फंगस जिसे म्यूकोर्मिकोसिस कहा जाता है। इस भयानक संक्रमण ने कोरोना से उबरने वाले कई रोगियों को प्रभावित किया। इसके साथ साथ व्हाइट फंगस और येलो फंगस के मामले भी सामने आये।
यह फंगल संक्रमण अधिक जानलेवा होता है और कमजोर इम्यूनिटी वाले या डायबिटीज जैसी बीमारी वाले लोगों पर हमला करता है। इसके अलावा इस साल इबोला, निपाह, जीका वायरस(Zika virus), नोरोवायरस और डेंगू भी फैले और लोगों को अपनी चपेट में लिया।
ओमीक्रान वेरिएंट
Omicron Variants
इस साल के अंत तक सब ठीक होने लगा था। सब कुछ ठीक हो जाने की उम्मीद एक बार फिर लौट रही थी। मगर तभी ओमीक्रान वेरिएंट ने सबके मन में फिर डर पैदा कर दिया। ये वेरियंट साउथ अफ्रीका में पता चला और देखते देखते पचासों देशों में फ़ैल गया। भारत भी इसकी चपेट में आ गया। अब तक ओमीक्रान की गहराई पता नहीं चल सकी है, बस इतना पता है कि ये सबसे ज्यादा संक्रामक कोरोना वेरियंट है।
अब तक समझ नहीं पाए कोरोना को
Corona Ka Aant Kab
कोरोना वायरस को इस साल भी ठीक से समझा नहीं जा सका है। विज्ञान के लिए ये वायरस अब भी अबूझ पहेली हैं। वैज्ञानिकों में इस बात पर अब तक कोई सहमति नहीं बन सकी है कि वायरस सजीव हैं अथवा नहीं, क्योंकि ये निष्क्रिय अवस्था में भी लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं।
अन्य वायरस की तरह कोरोना वायरस ने भी बार-बार म्यूटेट किया है, जिसकी वजह बहुत हद तक वैश्विक वैक्सीन असमानता भी है। इसी कारण बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं वाले देशों ने भी संघर्ष किया है।
हालांकि, इसमें एक असामान्य रुझान यह है कि अफ्रीका की तुलना में विकसित देशों में मृत्यु दर अधिक है। अफ्रीका के अंदर भी अपेक्षाकृत समृद्ध दक्षिण अफ्रीका में गरीब हिस्सों की तुलना में मृत्यु दर ज्यादा है।