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Parshuram Jayanti: भगवान परशुराम जयंती आज, जानें क्यों पड़ा परशुराम नाम, पिता से मिला पराजित न होने का वरदान
Parshuram Jayanti 2022: वैशाख माह के शुक्ल पक्ष को हर वर्ष अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है। भगवान परशुराम जी को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता हैं।
Parshuram Jayanti 2022: वैशाख माह के शुक्ल पक्ष को हर वर्ष अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है। भगवान परशुराम जी को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता हैं। उनके पिता जमदग्नि और माता का नाम रेणुका था। परशुराम के तीन बड़े भाई थे। भगवान परशुराम को न्याय देवता माना जाता है।
ब्रह्रावैवर्त पुराण के अनुसार, भगवान परशुराम को पिता ने आज्ञा दी कि वो अपनी मां का वध कर दें, परशुराम आज्ञाकारी पुत्र थे, इसलिए उन्होंने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए, अपनी मां का सिर धड़ से अलग कर दिया था। पुत्र को आज्ञा का पालन करते देखकर भगवान परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि बेहद प्रसन्न हुए, उन्होंने वरदान दिया मां को दोबारा जीवित करने और भईया को पुन ठीक करने के साथ ही परशुराम को कभी भी पराजित न होने का वरदान दिया था।
राम से कैसे पड़ा परशुराम नाम
देश में फैली पुरानी कथाओं के अनुसार, परशुराम जी का जन्म अन्याय और पाप कर्मों के विनाश के लिए हुआ था। उनका जन्म के समय नाम "राम" रखा गया था, राम भगवान शिव के परम भक्त थे, और उनकी कठोर साधना करते थे, जिस से प्रसन्न भगवान शिव उन को कई अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए, उन्हीं शस्त्रों में से एक शस्त्र का नाम परशु था, जो इनका मुख्य हथियार था, उस हथियार को धारण करने के बाद नाम परशुराम पड़ गया, भगवान परशुराम को अपने पिता से कभी ना पराजित होने का वर भी प्राप्त है, वहीं यह भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महारथियों के गुरु भी रहे थे।
पिता से मिला परशुराम को वरदान
भगवान परशुराम ने अपने पिता से तीन वरदान मांगे थे। पहले वरदान में माता रेणुका को पुनर्जीवित करने और दूसरा चारों भाइयों को ठीक करने का वरदान मांगा, तीसरे वरदान में उन्होंने कभी पराजय का सामना न करना पड़े और लंबी आयु का वरदान मांगा था, जो कि उनको पिता जमदग्नि से प्राप्त थें।
परशुराम ने तोड़ा गणेशजी का दांत
धार्मिक पुस्तक ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, एक बार परशुराम भगवान शिव के दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत पहुंचे, भगवान गणेश ने उन्हें शिवजी से मिलने नहीं दिया, इस बात से नाराज होकर भगवान परशुराम ने अपने परशु से विघ्नहर्ता का एक दांत तोड़ डाला, इस कारण से भगवान गणेश एकदंत कहा जाने लगे है।