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5 जून विश्व पर्यावरण दिवस: अगर पर्यावरण को बचाना है तो नीति है जरूरी
कई सालों से चल रहे प्रयास के बाद भी प्रदेश की पर्यावरण नीति को नहीं मिला कोई ठोस आकार
लखनऊ। कल यानी 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस दिन के महत्व को बताने के लिए कार्यक्रम भी कराए जाते हैं। विश्व पर्यावरण दिवस साल 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मनाया गया था लेकिन विश्व स्तर पर पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत 5 जून 1974 को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुई थी। तभी से विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाने लगा। पर अफसोस देश में बहुत कम लोग ही ऐसे हैं जो पर्यावरण को बचाने की सोचते हैं। अगर आज की बात करें तो कोरोना महामारी के समय कुछ लोगों ने पर्यावरण को इस कदर दूषित कर दिया कि पूरी मानवता को ही शर्मसार कर दिया। अगर पर्यावरण को बचाना है तो हर एक को पर्यावरण नीति का पालन करना होगा।
विश्व पर्यावरण दिवस के आलोक में एक बार फिर राज्य पर्यावरण नीति चर्चा में आ गई है। 2008 से इसके लिए प्रयास किये जा रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी की सरकारों में भी इस दिशा में सिर्फ प्रयास ही किये गये। अब योगी आदित्यनाथ की सरकार को भी चार वर्ष पूरे हो चुके हैं लेकिन प्रदेश की पर्यावरण नीति ठोस आकार नहीं ले सकी है।
इस संबंध में बात करने पर कहा जाता है कि पर्यावरण निदेशालय द्वारा संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास विजन 2030 के तहत नीति बनाने पर काम चल रहा है। इसके लागू हो जाने से सरकार द्वारा तय किए गए लक्ष्यों और पर्यावरण प्रबंधन में हितधारकों की जिम्मेदारी सुनिश्चित की जा सकेगी। कहते हैं 14 साल में घूरे के दिन भी फिर जाते हैं, लेकिन पर्यावरण नीति पर नौ दिन चले अढ़ाई कोस वाला जुमला फिट बैठता है। पर्यावरण नीति बनाने की अब तक की सारी कवायद फाइलों से बाहर नहीं आ सकी है।
ये कहा जाता है कि रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ। इसके मूल में नौकरशाही की नकारा कार्यशैली मुख्य अड़चन बन रही है। क्योंकि यदि ठोस पर्यावरण नीति बन जाएगी और जवाबदेही तय हो जाएगी तो बहुत सारे कार्य जो पर्यावरण नीति की गैरहाजिरी में अंजाम दिये जाते हैं उन पर विराम लग जाएगा। इसके अलावा पर्यावरण नीति बन जाने से जिम्मेदार विभागों को क्या करना होगा, उसके लिए धन की व्यवस्था कहां से होगी इन सभी बातों पर गंभीरता से विचार करना होगा। फिलहाल तो पर्यावरण विभाग से जुड़े जिम्मेदार अफसरों के पास कोरोना काल का होना सबसे मुफीद बहाना है।
बात करने पर विभाग के जिम्मेदार अधिकारी कहते हैं कि वायु प्रदूषण काफी कम हुआ है। कुछ जगह तो ग्रीन भी हो गया है। लेकिन कोरोना कर्फ्यू या लॉकडाउन की ये उपलब्धि क्या स्थाई है इस बारे में कोई कुछ नहीं कहता। कल सामान्य जीवन बहाल हो जाएगा तब फिर से वही स्थिति हो जाएगी।
लापरवाही
यही हाल नदियों के प्रदूषण की स्थिति का है। अभी अप्रैल मई के आंकड़े भी नहीं आए हैं। तर्क है कि कोरोना काल के चलते कुछ काम पर असर पड़ा है। 50 फीसदी स्टाफ ही आ रहा है। कई अधिकारी कोरोना संक्रमित हो भी चुके हैं। मूलतः पर्यावरण नीति को न तो पर्यावरण विभाग और न ही अन्य जिम्मेदार विभागों द्वारा गंभीरता से लिया गया। इसलिए यह फाइल अलमारी में बंद होकर रह गई। पूछने पर कहा जाता है जिलों से रिपोर्ट मांगी गई थी, आ गई होगी।
पर्यावरण नीति है जरूरी
इस बीच बढ़ता वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, जल संरक्षण, नदियों का पर्यावरणीय प्रभाव सहित कई अन्य चुनौतियां और अधिक विकराल हो चुकी हैं। वही जलवायु परिवर्तन भी एक बड़ी गंभीर चुनौती बन चुका है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषण के चलते प्रदेश में हर साल 94 लाख से अधिक मानव वर्ष की क्षति होती है, जिसकी अनुमानित लागत 6170 करोड़ के करीब है। वहीं दूषित पर्यावरण के कारण लोगों की सेहत दांव पर है।
जानकारों का कहना है कि पर्यावरण नीति बन जाने से प्रदेश में मौजूदा पर्यावरणीय समस्याओं को चिन्हित कर विभिन्न विभागों की जिम्मेदारी व उनका योगदान सुनिश्चित किया जा सकेगा। प्रदेश में मौजूदा पर्यावरणीय समस्याओं के क्या समाधान होंगे और उसमें विभिन्न विभागों का क्या योगदान होगा, उनसे जुड़े सभी कार्य बिंदुओं पर विचार हो सकेगा। इनके क्रियान्वयन को भी स्पष्ट रूप से रेखांकित किया जा सकेगा।