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इस बड़ी वजह से बढ़ेंगे भूकंप आएगी भारी तबाही, चेतावनी हैं ये संकेत
पृथ्वी के घूर्णन की गति धीमी हो रही है जिससे भूकंपों की संख्या दो से तीन गुना बढ़ जाने की आशंका हो गई है।
World Environment Day: पर्यावरणविद व स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट साइंसेज के महानिदेशक डॉ. भरत राज सिंह ने दावा किया है कि भारत में जनसंख्या वृद्धि और तीव्र औद्योगीकरण की बढ़ती मांग से विश्व के पर्यावरण असंतुलन और पारिस्थितिकी पर जबर्दस्त दुष्प्रभाव पड़ा है जिसके चलते पृथ्वी के घूर्णन की गति धीमी हो रही है जिससे भूकंपों की संख्या दो से तीन गुना बढ़ जाने की आशंका हो गई है। इस बात का उल्लेख उन्होने 2015 में अपनी किताब ग्लोबल वार्मिंग में भी कर रखा है।
डॉ. सिंह के इस कार्य पर अल्बर्टा विश्वविद्यालय, कनाडा तथा यूके व नासा ने भी आगे शोध कार्य किया और वर्ष 2017 में बताया कि अब पृथ्वी की घूर्णन गति में 0.4 सेकंड की धीमी हो चुकी है। उनके शोध अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है की यदि गति में यदि 3 से 4 सेकण्ड की कमी हुई तो आये दिन 7 से 8 रेक्टर स्केल से अधिक तीब्रता के 15 से 20 भूकंप, हर महीने दुनिया में कहीं न कहीं आयेंगे और जान माल का नुकसान बहुत बढ़ जाएगा।
मकान आदि सभी जमीं दोज हो जायेंगे
यहाँ तक कि मकान आदि सभी जमीं दोज हो जायेंगे। वहीं दूसरी ओर तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर के कारण समुद्र की सतह में भी 12 से 13 फुट बढ़ोत्तरी हो जाने की संभावना बनी हुई है। इसके कारण मैक्सिको आदि देशों का अधिकांश भाग जलप्लावन से डूब जाएगा।
उन्होंने यह भी जिक्र किया कि हमें पारिस्थितिकी की बहाली के लिए पेड़ों को अधिकाधिक लगाना व वाहनों के उपयोग की संख्या कम करनी होगी अन्यथा महामारी , भूकंप , ग्लेशियर का टूटना , प्रलयकारी तूफानों आदि से बच नहीं पाएंगे।
यह जानकारी डॉ. सिंह ने विश्व पर्यावरण दिवस पर पारिस्थितिकी तंत्र बहाली विषय पर आयोजित वेबिनार में दी। इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) ने विश्व पर्यावरण दिवस पर पारिस्थितिकी तंत्र बहाली विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया था। इस अवसर पर मुख्य अतिथि इंजीनियर ए के गुप्ता, अपर निदेशक, आरसीयूईएस, लखनऊ थे।
वृक्षारोपण से पारिस्थितिक बहाली हो सकती है-इंजीनियर गुप्ता
इंजीनियर गुप्ता ने बताया पारिस्थितिक बहाली से तात्पर्य पुनर्वास, पुनर्ग्रहण, पुन: निर्माण और बंजर भूमि की वसूली से है। ये प्रयास या तो छोटे पैमाने पर किए जा सकते हैं जैसे वृक्षारोपण या इसमें प्रमुख मानव और तकनीकी प्रयास शामिल हो सकते हैं जैसे आर्द्रभूमि का पुन: निर्माण, एसिड लेक न्यूट्रलाइजेशन।
उन्होंने यह भी बताया कि कृषि-रसायनों, औद्योगिक से पानी की गुणवत्ता में गिरावट, पर्यावरणीय समस्याएं और घरेलू प्रदूषण, भूजल की कमी, जल जमाव, मिट्टी का स्टालिनाइजेशन, गाद, बंजर भूमि का क्षरण, पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव और विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हुई हैं जो चिंता का विषय है। ऊर्जा और बुनियादी ढांचे के परिणाम से देश के पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता है।
कार्यक्रम की शुरुआत में इंजीनियर आरके त्रिवेदी, अध्यक्ष, इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया), यूपी स्टेट सेंटर, लखनऊ ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर राष्ट्रीय परिषद सदस्य इंजीनियर वीबी सिंह भी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन इंजीनियर वीके कथूरिया, एससीसी सदस्य, संयोजक ने सफलतापूर्वक किया। कार्यक्रम का समापन इंजीनियर प्रभात किरण चौरसिया, मानद सचिव, आईईआई, यूपी स्टेट सेंटर के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।