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M. Karunanidhi ने मुख्यमंत्रियों को दिलाया था ध्वजारोहण का अधिकार

राजनीति में वंशवाद भले ही हावी होता दिख रहा हो, पर इससे इतर अपनी पहचान बनाने वाले हमेशा याद किए जाएंगे।

Raghvendra Prasad Mishra
Published on: 3 Jun 2021 4:59 PM IST
M. Karunanidhi
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द्रमुक के दिवंगत अध्यक्ष एम. करुणानिधि की फाइल तस्वीर (फोटो साभार-सोशल मीडिया)

M. Karunanidhi : राजनीति में वंशवाद व विरासत भले ही हावी होता दिख रहा हो, पर उन लोगों को हमेशा याद किया जाएगा जो अपने बदौलत न सिर्फ अपनी पहचान बनाई बल्कि पार्टी को शिखर पर पहुंचाया। ऐसे नेताओं में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) के दिवंगत अध्यक्ष एम. करुणानिधि का नाम सबसे ऊपर देखा जा सकता है। एम. करुणानिधि का जीवन काफी चुनौतियों व संघर्ष पूर्ण रहा। लेकिन असफलता उनके सामने टिक नहीं पाई। राजनीति में उन्होंने कई बड़े फैसले लिए, उनकी वजह से जो बड़ा फैसला लिया गया उसके बारे में शायद कुछ लोगों को ही पता हो। एम. करुणानिधि की वजह से स्वतंत्रता दिवस पर देश के राज्यों में मुख्यमत्रियों को ध्वजारोहण का अधिकार मिला।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लिखा था पत्र

वर्ष 1974 से पहले आजाद भारत में गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौकों पर केवल राज्यों के राज्यपालों को ध्वजारोहण करने की परंपरा थी। इससे पहले मुख्यमंत्री तिरंगा नहीं फहराते थे। दिवंगत नेता एम. करुणानिधि ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मुख्यमंत्रियों की तरफ से झंडा फहराने की परंपरा की शुरुआत की थी। करुणनिधि ने वर्ष 1974 में बतौर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर अलग मापदंड अपनाने का हवाला देते हुए मुख्यमंत्रियों को ध्वजारोहण करने का अधिकार दिए जाने की बात कही थी। उन्होंने हवाला दिया था कि गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति और स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री झंडा फहराते हैं।


उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से कहा था कि मुख्यमंत्रियों को भी स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराने का मौका दिया जाना चाहिए। केंद्र सरकार ने करुणानिधि के इस सलाह को स्वीकार कर लिया और राज्य सरकारों को झंडा फहराने के लिए सूचित कर दिया।

14 वर्ष की आयु में राजनीति में की एंट्री

एम. करुणानिधि मात्र 14 वर्ष की आयु में राजनीति में आ गए। उस समय हिन्दी विरोधी आंदोलन चल रहा था, उन्होंने राजनीति में एंट्री मारते हुए इन आंदोलनों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। इसके बाद उन्होंने द्रविड़ राजनीति के नाम से एक छात्र संगठन भी बनाया। इतना ही नहीं अपने सहयोगियों के लिए उन्होंने 'मुरासोली' नाम से एक समाचार पत्र का भी प्रकाशन किया। करुणानिधि वर्ष 1957 में पहली बार तमिलनाडु विधानसभा के विधायक चुने गए। वर्ष 1967 में उन्हें सत्ता में आने का मौका मिला और उन्हें लोक निर्माण मंत्री का दायित्व मिला। वर्ष 1969 में अन्ना दुराई के निधन के बाद वह राज्य के मुख्यमंत्री चुने गए। करुणानिधि को 5 बार राज्य का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला तथा 12 बार विधानसभा सदस्य भी रहे।

कई प्रतिभाओं के धनी थे करुणानिधि

कहते हैं सफलता के लिए व्यक्ति में प्रतिभा होनी चाहिए। एम. करुणानिधि की बात करें तो वह कई प्रतिभाओं के धनी थे। उनमें एक सफल नेता, मुख्यमंत्री, साहित्यकार, फिल्म लेखक, पत्रकार, प्रकाशक और कार्टूनिस्ट की प्रतिभा थी। उनकी सौ से ऊपर पुस्तकें प्रकाशित भी हुईं। उन्होंने अपने कार्यकाल में सबसे ज्यादा सड़कों और पुलों के निर्माण में दिलचस्पी दिखाई।

अपना मकान तक कर दिया था दान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरह एम. करुणानिधि की जिंदगी भी काफी सादगी पूर्ण रही। उन्होंने अपने जीते जी अपना मकान दान कर दिया था। उनकी इच्छानुसार मौत के बाद उनके घर को गरीबों के लिए एक अस्पताल में बदल दिया गया। एम. करुणनिधि देश के वरिष्ठम नेताओं में से थे। द्रमुक के संस्थापक सीएन अन्नादुराई की मौत के बाद वह पार्टी प्रमुख बने थे। मुथूवेल करुणानिधि का जन्म 3 जून, 1924 को तिरुवरूर के तिरुकुवालाई में हुआ था और उनकी मृत्यु 18 अगस्त, 2018 में हुई।

Raghvendra Prasad Mishra

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