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क्रांति की मिशाल जलाने वाले महर्षि अरविंदो घोष, जिनसे खौफ खाते थे अंग्रेज

क्रांति की लौ जलाने वाले अनगिनत वीर योद्धा हुए हैं लेकिन इनमें अरविंदो घोष सबसे अलग हैं...

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Ragini Sinha
Published on: 14 Aug 2021 6:38 PM IST
Maharishi Aurobindo Ghosh
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महर्षि अरविंदो घोष (social media)

इस देश में क्रांति की लौ जलाने वाले अनगिनत वीर योद्धा हुए हैं लेकिन इनमें अरविंदो घोष सबसे अलग हैं। वह पहले मेधावी छात्र और पिता के आज्ञाकारी बने। पिता की इच्छा का सम्मान कर मात्र 18 साल की उम्र में आईसीएस की परीक्षा पास कर पिता के सपनों को पूरा किया और बाद में क्रातिंकारी, पत्रकार, शिक्षक, योगी दार्शनिक और अंत में आध्यात्मिक गुरु के रूप में प्रसिद्ध हुए। देश और दुनिया में उनके न रहने के बाद भी हजारों अनुयायी हैं जो उनकी विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं।

अरविंदो का जन्म कोलकाता में हुआ

ये अद्भुत संयोग है कि अरविंदो घोष का जन्म 15 अगस्त को हुआ था जिस दिन बाद में देश आजाद हुआ। अरविंदो का जन्म 1872 में कोलकाता में एक बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता, कृष्ण धुन घोष, एक डॉक्टर थे । उनकी मां स्वर्णलता देवी थीं। अरबिंदो के दो बड़े भाई-बहन थे, बेनॉयभूषण और मनमोहन, एक छोटी बहन, सरोजिनी और एक छोटा भाई, बरिंद्र कुमार थे। अरविंदो के पिता ब्रिटिश संस्कृति को श्रेष्ठ मानते थे। इसलिए अरविंदो और उनके दो बड़े भाई-बहनों को दार्जिलिंग में लोरेटो हाउस बोर्डिंग स्कूल में भेजा गया था, ताकि उनके भाषा कौशल में सुधार किया जा सके। सात साल की उम्र में वह शिक्षा ग्रहण करने इंग्लैंड चले गए। जहां उन्होंने आईसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण की लेकिन उनके दिमाग में ये नौकरी नहीं थी इसीलिए जानबूझकर घुडसवारी की परीक्षा नहीं दी। जिससे ब्रिटिश सरकार की सेवा में जाने से बच गए। जब वह वापस लौट रहे थे तो एक बड़ा हादसा हुआ जिसमें पुर्तगाल में एक जहाज डूब गया। इनके पिता को यह सूचना दे दी गई कि आपका पुत्र डूब गया। पिता ये सदमा नहीं बर्दाश्त कर पाए और चल बसे।

शिक्षा शास्त्री के रूप में नियुक्त कर लिया

अरविंदो घोष की प्रतिभा से प्रभावित बड़ौदा नरेश ने इन्हें अपनी रियासत में शिक्षा शास्त्री के रूप में नियुक्त कर लिया। बडौदा में ये प्राध्यापक, वाइस प्रिंसिपल, निजी सचिव आदि कार्य योग्यता पूर्वक करते रहे और इस दौरान हजारों छात्रों को चरित्रवान देशभक्त बनाया। 1896 से 1905 तक उन्होंने बड़ौदा रियासत में राजस्व अधिकारी से लेकर बड़ौदा कालेज के फ्रेंच अध्यापक और उपाचार्य रहने तक रियासत की सेना में क्रान्तिकारियों को प्रशिक्षण भी दिलाया था। हजारों युवकों को उन्होंने क्रान्ति की दीक्षा दी थी। वे निजी रुपये-पैसे का हिसाब नहीं रखते थे परन्तु राजस्व विभाग में कार्य करते समय उन्होंने जो विश्व की प्रथम आर्थिक विकास योजना बनायी उसका कार्यान्वयन करके बड़ौदा राज्य देशी रियासतों में अग्रणी बन गया।

आंदोलन में अरविन्द घोष ने सक्रिय रूप से भाग लिया

इस बीच एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुआ। लार्ड कर्जन के बंग-भंग की योजना से सारा देश तिलमिला उठा। अरविंदों के लिए भी यह असह्य था वह बड़ौदा छोड़कर कोलकाता आ गए। और बंगाल में इसके खिलाफ आंदोलन में अरविन्द घोष ने सक्रिय रूप से भाग लिया। अरविन्दो कलकत्ता आये तो राजा सुबोध मलिक ने इन्हें अपने भव्य महल में ठहराया लेकिन यहां जन-साधारण को इनसे मिलने में संकोच होता था। अत: अरविंदो सबको विस्मित करते हुए कोलकाता की छक्कू खानसामा गली में आ गये। इसके बाद उन्होंने किशोरगंज (वर्तमान में बंगलादेश में) में स्वदेशी आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। तब तक वे केवल धोती, कुर्ता और चादर ही पहनने लगे थे। इसके बाद उन्होंने अग्निवर्षी पत्रिका बन्दे मातरम् (पत्रिका) का प्रकाशन प्रारम्भ किया। अरविंद घोष का कहना था कि 'राजनीतिक स्वतंत्रता राष्ट्र की प्राण वायु है. राजनीतिक स्वतंत्रता के लक्ष्य के बगैर सामाजिक सुधार, शैक्षणिक सुधार, औद्योगिक विस्तार और नस्ल का नैतिक सुधार बहुत बड़ी लापरवाह और व्यर्थ है।

अरविंदो को भी गिरफ्तार कर लिया गया

1908 में 'अलीपुर षडयन्त्र केस' हुआ जिसमें 40 नवयुवकों को पकड़ा गया। तबतक ब्रिटिश सरकार इनके क्रन्तिकारी विचारों और कार्यों से अत्यधिक आतंकित हो चुकी थी। अरविंदो को भी गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें एक वर्ष तक अलीपुर जेल में कैद रखा गया। जेल में ही उन्हें हिन्दू धर्म एवं हिन्दू-राष्ट्र विषयक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभूति हुई। प्रसिद्ध बैरिस्टर चितरंजन दास ने मुकदमे की पैरवी की और अपने प्रबल तर्कों के बल पर अरविन्दो को सारे अभियोगों से मुक्त घोषित करा लिया। इसके बाद 30 मई 1909 को उत्तरपाड़ा में एक सभा की गयी वहाँ अरविन्दो का एक प्रभावशाली व्याख्यान हुआ जो इतिहास में उत्तरपाड़ा अभिभाषण के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने अपने इस अभिभाषण में धर्म एवं राष्ट्र विषयक कारावास-अनुभूति का विशद विवेचन करते हुए कहा था।

जब मुझे आप लोगों के द्वारा आपकी सभा में कुछ कहने के लिए कहा गया तो मै आज एक विषय हिन्दू धर्म पर कहूँगा। मुझे नहीं पता कि मैं अपना आशय पूर्ण कर पाउँगा या नहीं। जब में यहाँ बैठा था तो मेरे मन में आया कि मुझे आपसे बात करनी चाहिए। एक शब्द पूरे भारत से कहना चाहिये। यही शब्द मुझसे सबसे पहले जेल में कहा गया और अब यह आपको कहने के लिये मैं जेल से बाहर आया हूँ। एक साल हो गया है मुझे यहाँ आए हुए। पिछली बार आया था तो यहाँ राष्ट्रीयता के बड़े-बड़े प्रवर्तक मेरे साथ बैठे थे। यह तो वह सब था जो एकान्त से बाहर आया जिसे ईश्वर ने भेजा था ताकि जेल के एकान्त में वह ईश्वर के शब्दों को सुन सके। यह तो वह ईश्वर ही था जिसके कारण आप यहाँ हजारों की संख्या में आये। अब वह बहुत दूर है हजारों मील दूर। बाद में पांडिचेरी में उन्होने अपने आश्रम की शुरुआत की जो आज काफी व्यापक रूप से फैल चुका है और अरविंदो घोष के विचारों को फैलाने में लगा है।



Ragini Sinha

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