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Mahatma Gandhi: जिन्ना नहीं मानते थे बापू को 'महात्मा', मिस्टर गांधी कहकर किया संबोधित
मोहम्मद अली जिन्ना ने बैठक के दौरान गांधीजी को 'मिस्टर गांधी' कहकर संबोधित किया, लेकिन जिन्ना ने...
Mahatma Gandhi: महात्मा गांधी के जन्मदिवस (Mahatma Gandhi Birthday) पर हम उनसे जुड़े कुछ ऐसे किस्सों की चर्चा करना ज़रूरी समझते हैं, जिसमें भारी-भरकम शब्दों का मायाजाल न लगे । बल्कि उन कहानियों के माध्यम से आप बापू (Bapu) के व्यक्तित्व से रूबरू हों सरे, तो इसी कड़ी में कुछ ऐसी कहानियां जो आपको प्रेरणा भी देगी और इतिहास की जानकारी भी।
जिन्ना का गांधी को 'महात्मा' कहने से इनकार
यह बात है दिसंबर 1920 की। तब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक हुई थी। उस समय तक गांधीजी को 'महात्मा गांधी' कहने का रिवाज बन चला था। उस बैठक में मोहम्मद अली जिन्ना भी मौजूद थे। बैठक के दौरान जिन्ना ने गांधीजी को 'मिस्टर गांधी' कहकर संबोधित किया। जिन्ना के ऐसा कहने पर खिलाफत आंदोलन के नेता मौलाना मोहम्मद अली ने जिन्ना से रिक्वेस्ट किया कि वो गांधीजी को 'महात्मा' कहकर संबोधित करें। इसके अलावा बैठक में मौजूद कई अन्य प्रतिनिधि भी जिन्ना पर चिल्लाए और उनसे 'महात्मा गांधी' कहने को कहा। लेकिन जिन्ना अड़ गए। उनकी भी जिद थी कि वो गांधी को महात्मा नहीं कहेंगे। तब वहां मौजूद लोगों के एक वर्ग ने जिन्ना को बैठ जाने को कहा। बावजूद जिन्ना अपनी जिद पर कायम रहे। तब गांधीजी खड़े हुए और बोले, "मैं महात्मा नहीं हूं। मैं एक साधारण आदमी हूं। जिन्ना साहब को कोई खास शब्द बोलने को कहकर आप मेरा सम्मान नहीं कर रहे हैं। हम दूसरों पर अपना विचार थोपकर असली आजादी हासिल नहीं कर सकते। जब तक किसी व्यक्ति की भाषा में कुछ आपत्तिजनक या अपमानजनक न हो। उनको अपनी मर्जी से सोचने और बोलने की आजादी है।" गांधीजी के इतना कहने के बाद वहां मौजूद लोग शांत हो गए।
वाल्मीकि बस्ती में रहे 214 दिन
साल 1946 में गांधीजी दिल्ली में मंदिर मार्ग स्थित वाल्मीकि कॉलोनी में गए थे। वह वहां करीब 214 दिनों तक रहे। वाल्मीकि कॉलोनी में रहने के दौरान गांधीजी को पता चला कि इस बस्ती में रहने वाले अधिकतर लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं। इस पर गांधीजी को बहुत हैरानी हुई। उन्होंने वहां रहने वालों से कहा कि अपने बच्चों को भेजो, मैं पढ़ाऊंगा। जब गांधीजी ने पढ़ाना शुरू किया तो गोल मार्केट, पहाड़गंज, इरविन रोड सहित आसपास के इलाकों के बच्चे भी पढ़ने आने लगे। बच्चों की संख्या बढ़ती रही। गांधीजी ने करीब 30 छात्रों से शुरुआत की जो जल्द ही बढ़कर 75 तक पहुंच गई। बता दें कि आज भी वाल्मीकि मंदिर के अंदर महात्मा गांधी का एक कमरा है। उस कमरे में लकड़ी की एक मेज है । जिसका इस्तेमाल गांधीजी करते थे। वहां गांधीजी का छोटा चरखा भी है।
जब गांधी के नाम पर डकैत ने छोड़ा
महात्मा गांधी का असर आम लोगों पर ही नहीं था। एक बार एक सुनार की जिंदगी डकैतों ने सिर्फ इसलिए बख्श दी क्योंकि उसका जुड़ाव गांधीजी से था। हुआ कुछ यूं था कि एक सुनार कहीं जा रहा था। उसका रास्ता मध्य प्रदेश की सिंगरौली पहाड़ी इलाके से होकर गुजरती थी। वहां उसे डाकुओं ने घेर लिया। तब सुनार ने डकैतों का स्वागत 'वंदे मातरम' से किया। उसने डाकुओं को अपना खादी का कपड़ा भी दिखाया। सुनार ने डकैतों को बताया कि वह गांधीजी का अनुयायी है। इतना सुनते ही डकैतों ने सुनार की जान बख्श दी और वापस जंगल में चले गए। सुनार ने यह बात गांधीजी के एक साथी श्री राम चौधरी को बताई थी। तब जाकर सबको यह बात मालूम हुई।
गांधीजी आश्रम और चिकन सूप
आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने वाले प्रमुख नेताओं में एक थे बिहार के डॉ.सैयद महमूद। डॉ.महमूद एक बार सेवाग्राम स्थित गांधीजी के आश्रम उनसे मिलने गए थे। उस समय डॉ. महमूद बीमार थे। जब गांधीजी ने उन्हें उस हालत में देखा तब डॉ. महमूद को तबीयत ठीक होने तक सेवाग्राम आश्रम में रहने को कहा। लेकिन डॉ.महमूद ने इनकार कर दिया। जब गांधीजी ने जोर दिया तो उन्होंने मजबूरी बताई। दरअसल, डॉक्टरों ने उनको बीमारी से सही होने के लिए 'चिकन सूप' लेने को कहा था। लेकिन आश्रम में मांसाहारी खाने की अनुमति नहीं थी। इसलिए डॉ.महमूद वहां रहने में खुद को असमर्थ पा रहे थे। तब गांधीजी ने कहा "उन्हें आश्रम छोड़ने की कोई जरूरत नहीं है। क्या आश्रम में रहने वाले लोग इस बात को नहीं समझेंगे? मैं सुनिश्चित करूंगा कि आपको अच्छी तरह बना चिकन सूप मिले।" इसके बाद डॉ.महमूद आश्रम में रुक गए।
गांधी की खेलों में नहीं थी रुचि
दूसरी कहानी, गांधीजी के शुरुआती दिनों की है। तब गांधीजी की दिलचस्पी खेलों में नहीं थी। उस वक्त गांधीजी राजकोट के एक स्कूल में पढ़ते थे। उस स्कूल के हेडमास्टर नाम दोराबजी एडलजी जिमी था जो पारी थी। उन्होंने स्कूल में क्रिकेट और जिम्नास्टिक को अनिवार्य कर दिया था। तब गांधीजी को मजबूरन इन खेलों में हिस्सा लेना पड़ा। इसका उद्धरण गांधी की आत्मकथा में भी है। आत्मकथा में वह लिखते हैं, "जब तक कि अनिवार्य नहीं बना दिया गया, तब तक मैंने कभी भी किसी अभ्यास, क्रिकेट या फुटबॉल में हिस्सा नहीं लिया।" हालांकि बाद में गांधी स्कूली पाठ्यक्रम में शारीरिक प्रशिक्षण को भी शामिल करने के पक्षधर दिखे।
जब क्रिकेट का किया था विरोध
महात्मा गांधी ने एक वक्त क्रिकेट का भी विरोध किया था। उस समय पेंटेंगुलर मैच होता था। पेंटेंगुलर यानी पंचकोणीय या पांच टीमों वाला मैच। इसमें पांच टीमें सांप्रदायिक आधार पर होती थीं। गांधीजी ने सांप्रदायिक आधार पर मैच का खुलकर विरोध किया। उनके इस बयान को तब अखबारों में प्रमुखता से छापा गया था। फिर जनवरी 1946 में पेंटेंगुलर मैच की परंपरा ही खत्म कर दी गई। उसी की जगह पर बाद में रणजी ट्रॉफी का आयोजन शुरू हुआ।