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Mahendra Singh Tikait: टिकैत की एक हुंकार और घुटनों पर आई सरकारें, ये हैं उनके प्रमुख आंदोलन

Mahendra Singh Tikait: किसान नेता (Kisan Neta) और बाबा टिकैत (Baba Tikait) के नाम से विख्यात चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत हमेशा किसानों के हक के लिए लड़ते रहे। वह किसानों की ऐसी ताकत थे, जिनके आगे सरकारें घुटने तक देती थी।

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Written By amanPublished By Shreya
Published on: 6 Oct 2021 2:35 PM IST
Mahendra Singh Tikait: टिकैत की एक हुंकार और घुटनों पर आई सरकारें, ये हैं उनके प्रमुख आंदोलन
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महेंद्र सिंह टिकैत (फोटो- न्यूजट्रैक) 

Mahendra Singh Tikait Birthday Special: किसान नेता (Kisan Neta) और बाबा टिकैत (Baba Tikait) के नाम से विख्यात चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत (Mahendra Singh Tikait) हमेशा किसानों के हक के लिए लड़ते रहे। वह किसानों की ऐसी ताकत थे, जिनके आगे सरकारें घुटने तक देती थी। आज जब देश में कृषि कानूनों (New Farm Laws) का विरोध चल चल रहा है, ऐसे में किसान नेता उन्हीं के तरीकों को अपनाकर आंदोलन (Kisan Andolan) चला रहे हैं। बाबा टिकैत को किसानों के नब्ज की अच्छी समझ थी। किसानों के इस 'महानायक' की आज (6 अक्टूबर) जयंती है। इस मौके पर महेंद्र सिंह टिकैत के गांव सिसौली (Sisauli) में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया है।

महेंद्र सिंह टिकैत बालियान खाप के प्रमुख थे। इनके पिता का नाम मुखिया चौहल सिंह टिकैत (Chauhal Singh Tikait) और माता का नाम मुख्त्यारी देवी (Mukhtyari Devi) था। बाबा टिकैत का जन्म (Baba Tikait Ka Janm) 6 अक्टूबर, 1935 को मुज़फ्फरनगर के सिसौली में हुआ था। पिता के निधन के बाद उन्हें छोटी उम्र में ही बालियान खाप की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी थी। जीवन भर किसानों के लिए संघर्षों करते रहने की वजह से ही उन्हें 'महात्मा टिकैत' भी कहा जाने लगा। बता दें कि महेंद्र सिंह टिकैत ने 1950 से 2010 तक सर्वखाप की कई महापंचायतों का प्रतिनिधित्व किया जिसमें सामाजिक बुराईयों, नशाखोरी, भ्रूण हत्या, और दहेज प्रथा आदि के खिलाफ अभियान चलाया गया।

हुक्का पीते टिकैत की तस्वीर (साभार- सोशल मीडिया)

बोलने का ठेठ अंदाज थी बाबा टिकैत की पहचान

महेंद्र सिंह टिकैत की पहचान थी उनकी सादगी और बोलने का ठेठ अंदाज। उनके इस अंदाज के सभी कायल थे। शायद यही वजह थी कि किसान उन्हें खुद से जुड़ा पाते थे, क्योंकि उनका गंवई अंदाज उन्हें उनका अपना सा लगता था। कंधे पर एक चादर, पैरों में हवाई चप्पल और सिर पर टोपी यही थी बाबा टिकैत की पहचान। हां, हुक्का जीवनभर उनके साथ-साथ रहा। आप महेंद्र सिंह टिकैत की किसी भी तस्वीर को देखें हुक्का उनके बगल में ही दिखेगा।

एक कहानी कर्नाटक में किसान आंदोलन के दौरान की है, जब हवाई जहाज से जाते वक्त अधिकारियों ने उन्हें हुक्का ले जाने से रोक दिया था। तब बाबा टिकैत ने अपने देहाती अंदाज में कहा, 'हुक्का ना जा तो मैं भी ना जाऊं।' उसके बाद अगले एक घंटे तक एयरपोर्ट प्रबंधन से हुक्का को लेकर मशक्क्त चली, फिर हुक्का ले जाने की मंजूरी देनी ही पड़ी।

महेंद्र सिंह टिकैत स्वभाव से सरल और व्यवहार से संजीदा थे। उनकी बेबाकी और साफगोई उनके व्यक्तित्व का खास हिस्सा था। इतिहास गवाह है कि उनकी एक आवाज पर महापंचायतों और धरना-प्रदर्शनों में किसानों का हुजूम उमड़ पड़ता था। बाबा टिकैत के आंदोलनों की गूंज पर देश-विदेश तक रही हैं। आज भी उनकी स्मृतियां अनमोल धरोहर हैं। 14 मई, 2011 को किसानों का ये सच्चा सेवक इस दुनिया को अलविदा कह गया।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

वो धरना जिससे बन गए महानायक

यह बात है, 27 जनवरी, 1987 को करमूखेड़ी बिजलीघर पर धरना बाबा टिकैत को 'महानायक' बना गया। उस दिन हुआ कुछ यूं था कि करमूखेड़ी बिजलीघर पर गोलीबारी में अकबर और जयपाल सिंह नाम के दो किसानों की मौत हो गई थी। इसके बाद महेंद्र सिंह टिकैत ने विशाल रैली में हुंकार भरी। टिकैत किसानों के मसीहा बनकर उभरे। बावजूद महात्मा टिकैत ने भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) को अराजनैतिक घोषित कर दिया, साथ ही राजनेताओं से हमेशा दूरी बनाए रखी। आखिरकार 11 अगस्त, 1987 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह सिसौली गांव आए और किसानों को मांगें पूरी करने का आश्वासन दिया।

यह घटना है 32 साल पहले की। तब दिल्ली में राजीव गांधी की सरकार हुआ करती थी। कहा जाता है दिल्ली ने तब ऐसा नजारा कभी नहीं देखा था। आज भी दिल्ली के पास किसानों का आंदोलन चल रहा है । लेकिन तब इससे भी बड़े पैमाने पर किसान आकर दिल्ली के 'नाक' बोट क्लब में इकट्ठा हुए थे। वह दौर था किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत का। उनके एक आवाज पर 5 लाख किसान अपनी मांगों के समर्थन में दिल्ली के वोट क्लब में रैली के लिए जुट गए थे।

यह रैली कितनी बड़ी थी इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि इसमें करीब 14 राज्यों के करीब 5 लाख किसान दिल्ली पहुंच गए थे। तब किसानों ने अपनी बैल गाड़ियां और ट्रैक्टर-ट्रॉली दिल्ली के मशहूर बोट क्‍लब में खड़े कर दिए थे। पूरी दिल्‍ली थम सी गई थी। विजय चौक से लेकर इंडिया गेट पर अब किसानों का कब्ज़ा था। किसानों ने यह मौका ढूंढकर चुना था।

लाठीचार्ज करती पुलिस (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

आखिरकार खत्म हो गया धरना

दरअसल, उन दिनों बोट क्‍लब में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पुण्‍यतिथि (30 अक्‍टूबर) की तैयारियां चल रही थीं। मंच बना दिया गया था। उसी मंच पर ही किसान आकर बैठ गए। टिकैत के नेतृत्व में एक सप्ताह तक किसानों ने वहां धरना दिया था। किसानों को हटाने के लिए सरकार ने 30 अक्टूबर को लाठीचार्ज भी किया। लेकिन मजाल कि वो टस-से-मस हों। आखिरकार, उस वक़्त की राजीव गांधी सरकार ने ही अपने आयोजन स्‍थल को बदल लिया। बोट क्‍लब की जगह लालकिले के पीछे मैदान में कार्यक्रम हुआ।

वोट क्‍लब में किसानों का धरना 31 अक्टूबर, 1988 को समाप्त हो गया। यह धरना यूं ही ख़त्म नहीं हुआ, बल्कि राजीव गांधी सरकार के उस आश्‍वासन के साथ समाप्त हुआ कि किसानों की सभी मांगों पर फैसला लिया जाएगा। इस आंदोलन के बाद महेंद्र सिंह टिकैत का रुतबा और कद बहुत ज्‍यादा बढ़ गया था।

यह बात है साल 2008 की। तब उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सरकार थी और मायावती मुख्यमंत्री। इसी दौरान किसानों के उत्पीड़न के खिलाफ बिजनौर में एक सभा का आयोजन हुआ। इस सभा में चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत भी पहुंचे। कहा जाता है अपने संबोधन में बाबा टिकैत ने कथित तौर पर मायावती के खिलाफ कुछ ऐसी टिप्पणी कर दी, जो उन्हें नागवार गुजरी। देखते ही देखते मामला गरमा गया। मायावती ने पुलिस के आला अफसरों से दो टूक कही, टिकैत की गिरफ्तारी होनी चाहिए। अब मामला मुख्यमंत्री से जुड़ा था। इसलिए अफसरों के सामने भी आदेश मानने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

टिकैत की गिरफ्तारी नहीं कर पाया था प्रशासन

महेंद्र सिंह टिकैत के खिलाफ शहर कोतवाली में केस दर्ज हुआ। इसके बाद स्थानीय प्रशासन ने उनकी गिरफ्तारी की तैयारी शुरू की। इस बात की खबर जब किसानों को मिली तो वे बाबा टिकैत के समर्थन में लामबंद होने लगे। कुछ ही समय में हजारों की तादाद में किसान ट्रैक्टर, ट्रॉली आदि के साथ महेंद्र सिंह टिकैत के गांव सिसौली पहुंच गए। वहां आने-जाने वाले सभी रास्तों को बंद कर दिया। किसानों का गुस्सा देखकर प्रशासन के भी पसीने छूट गए थे।

इस घटना के बारे में महेंद्र सिंह टिकैत के पुत्र और भाकियू के नेता राकेश टिकैत ने अपने एक साक्षात्कार में बताया था, "बाबा ने कहा था कि अगर गिरफ्तारी की सूरत बने तो मुझे गोली मार देना। दुर्व्यवहार से अच्छा है मेरा मर जाना।" राकेश आगे बताते हैं, "हमने भी पुलिस और प्रशासन से साफ-साफ कह दिया था कि बाबा कहीं नहीं जाएंगे।" बता दें कि बाद में महेंद्र सिंह टिकैत ने बिजनौर कोर्ट में सरेंडर किया था। उन्हें उसी दिन जमानत भी मिल गई थी। ये थी टिकैत की ताकत और रसूख। लेकिन महेंद्र सिंह टिकैत हिंसा के विरोधी थे। उनका कहना था कि आंदोलन के दौरान किसानों को संयम रखना आना चाहिए।

आंदोलन के दौरान टिकैत (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

महेंद्र सिंह टिकैत के कुछ प्रमुख आंदोलन (Mahendra Singh Tikait Ke Andolan)

-27 जनवरी, 1987 से 30 जनवरी, 1987 तक करमूखेड़ी (मुजफ्फरनगर) बिजलीघर पर धरना।

-27 दिसंबर, 1987 से 19 फरवरी, 1988 तक कमिश्नरी मेरठ पर 35 सूत्रीय मांगों को लेकर धरना।

-06 मार्च, 1988 से 23 जून, 1988 तक रजबपुर (मुरादाबाद) में धरना एवं रेल रोको अभियान।

-25 अक्टूबर, 1988 से 31 अक्टूबर, 1988 तक नई दिल्ली वोट क्लब पर धरना।

-03 अगस्त, 1989 से 10 सितंबर, 1989 तक गंग नहर के किनारे कस्बे भोपा में नईमा कांड पर धरना।

-02 अक्टूबर, 1989 को देश के कई किसान संगठनों के साथ दिल्ली के वोट क्लब पर धरना।

-14 जुलाई, 1990 से 22 जुलाई, 1990 तक लखनऊ में धरना।

-02 अक्टूबर, 1991 को नई दिल्ली में खाद की सब्सिडी एवं अन्य समस्याओं को लेकर धरना।

-31 दिसंबर, 1991 से 17 जनवरी, 1992 तक लखनऊ में किसानों की मांगों को लेकर धरना।

-03 मार्च,,1993 से 4 मार्च, 1993 तक नई दिल्ली में डंकल प्रस्ताव एवं बीज सत्याग्रह को लेकर धरना।

-02 जून, 1992 से 3 जुलाई, 1992 तक लखनऊ में किसानों की 7 सूत्रीय मांगों पर धरना।




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