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Maneka Gandhi Birthday: 23 साल की उम्र में खोया पति का साथ, जानिए मेनका गांधी के संघर्ष की कहानी
Maneka Gandhi Birthday: मात्र 23 वर्ष की उम्र में सौ दिन के अपने बच्चे को गोद में लेकर एक हादसे में अपने पति को खोने वाली मेनका गांधी का जीवन पति की मौत के बाद बेहद संघर्ष से भरा रहा है।
Maneka Gandhi Birthday: वर्तमान में भाजपा सांसद मेनका गांधी (Maneka Gandhi) ज्यादातर प्रचार प्रसार से दूर रहकर अपना काम करती हैं। वस्तुतः वह अपनी संतुष्टि के लिए काम करती हैं। लेकिन उसका प्रचार करना उनकी शैली में नहीं है ताजा मामला सुलतानपुर का है जहां 21 दिन से डीप फ्रीजर में रखे युवक के शव का दोबारा पोस्टमार्टम मेनका गांधी की पहल पर ही होने की बात सामने आई है।
भारत के पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान (Afghanistan) में चल रहे घटनाक्रम पर उनकी पार्टी की या सरकार की नीति चाहे जो हो लेकिन वह इस पर प्रतिक्रिया देने से पीछे नहीं रहीं और बेबाक टिप्पणी की कि पूरी दुनिया के लिए खतरा है तालिबानी हुकूमत। वह यहीं नहीं रुकीं उन्होंने यह भी कहा कि तालिबान महिलाओं की कद्र नहीं करता है। उन्होंने साफगोई से कहा कि यदि तालिबान ने अपना रवैया नहीं बदला तो चंद दिनों में ही सत्ता से बेदखल हो जाएगा।
पशुओं के अधिकार के लिए समर्पित
26 अगस्त 1956 को दिल्ली में जन्मीं मेनका गांधी पशुओं के अधिकार (Animal Rights) के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं। हाल ही में एक तिरंगे घोड़े की तस्वीर वायरल हुई थी जिस पर मेनका गांधी की संस्था एक्टिव हुई और 'पीपल फॉर एनिमल्स' (People For Animals) ने पशु क्रूरता अधिनियम के तहत उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत की। मेनका इस तरह के मामले में अपनी पार्टी के लोगों को भी नहीं छोड़ती हैं।
पिछले दिनों एक घोड़े को भाजपा के रंग में रंगने का मामला आने पर उनकी संस्था ने इसके खिलाफ भी पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। यह तो घोड़े का मामला है मेनका गांधी तो सड़क के आवारा कुत्तों के लिए भी खड़ी हो जाती हैं। वाराणसी में एक गेस्ट हाउस संचालक ने एक स्ट्रीट डॉग को अपनी गाड़ी से कुचला तो मेनका गांधी एक्टिव हो गई थीं। उनके एक फोन पर हड़कंप मच गया था।
हादसे में पति की मौत
मात्र 23 वर्ष की उम्र में सौ दिन के अपने बच्चे को गोद में लेकर एक हादसे में अपने पति को खोने वाली मेनका गांधी का जीवन पति की मौत के बाद बेहद संघर्ष से भरा रहा है, लेकिन दाद देनी पड़ेगी उनकी गंभीरता की। उन्होंने कभी अपना आपा नहीं खोया। एक बार एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि उन्हें सोनिया (Sonia Gandhi) और राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) के चलते अपनी ससुराल छोड़नी पड़ी थी। अपनी सास इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को उन्होंने एक बेबस मां कहा।
पीएम हाउस से निकलकर वह एक कमरे का घर लेकर रहीं। पति संजय गांधी (Sanjay Gandhi) के ट्रक बेचकर कुछ पैसे जुटाए। किताबें और मैगजीन के लिए लिखना शुरू किया। और धीरे धीरे धीरे खुद को खड़ा किया। आज गांधी परिवार की बहू मेनका गांधी के बेटे (Maneka Gandhi Son) वरुण गांधी एक बड़ा नाम हैं। लेकिन एक समय ऐसा भी था जब वरुण गांधी (Varun Gandhi) खुद को एक गरीब परिवार का सदस्य मानते थे। वरुण को बड़ा होने पर काफी समय बाद यह पता चला कि उनकी दादी प्रधानमंत्री रही थीं और उनके पापा एक समय कांग्रेस में सबसे अधिक पावरफुल थे।
सोनिया परिवार से मेनिका-वरुण की दूरियां
सोनिया परिवार से मेनका गांधी की दूरियां कभी खत्म नहीं हुईं। अलबत्ता राहुल प्रियंका और वरुण में थोड़ा ठीक ठाक तालमेल देखा गया। लेकिन एक समय जब वरुण गांधी के कांग्रेस में जाने की अटकलें लगीं तो वरुण गांधी ने भावुक होकर कहा कि मेरी एक मात्र गुरु मेरी मां हैं। जिन्होंने मात्र 23 साल की उम्र में विधवा होने के बाद पूरी जिंदगी मेरे लिए दांव पर लगा दी। मैं सिर कटा लूंगा लेकिन अपनी मां के सम्मान पर आंच नहीं आने दूंगा। गौरतलब है कि वरुण गांधी की शादी में भी गांधी परिवार का कोई सदस्य शामिल नहीं हुआ था और वरुण ने भी दो टूक कहा राहुल प्रियंका से मेरे रिश्ते औपचारिक हैं पारिवारिक नहीं।
लेकिन फिर भी कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है। टीम मोदी में मेनका गांधी और उनके बेटे वरुण गांधी फिट नहीं हो पा रहे हैं। इसकी एक वजह यह भी कही जाती है कि जब भाजपा को जरूरत थी उस समय मेनका गांधी और वरुण गांधी दोनों ही सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के खिलाफ खुलकर सामने आने को तैयार नहीं हुए जिसका खमियाजा उन्हें पार्टी में हाशिये पर जाकर चुकाना पड़ा।
इसमें वरुण गांधी का बड़बोलापन भी एक वजह बतायी जाती है जिसमें उन्होंने कहा था कि मोदी की सभाओं में भीड़ बढ़ा चढाकर दिखायी जाती है। लेकिन फिलवक्त सच्चाई यही है कि मेनका गांधी भी भाजपा में अपनी स्थिति से संतुष्ट नहीं हैं। पिछले दिनों जेपी नड्डा के साथ बैठक में उन्होंने अपनी अलग थलग कुर्सी लगाकर इशारों में समझाने की कोशिश की लेकिन वर्तमान में अब भाजपा इस को पूरी तरह इग्नोर कर रही है। मेनका गांधी की भी अब कहीं और जाकर कुछ करने की स्थिति नहीं है। इसलिए भाजपा में ही रहना नियति या मजबूरी दोनों हैं।
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